होम लोन बड़ी राशि का कर्ज होता है, जिसका भुगतान काफी लंबे समय तक चलता है. अभी बैंक आमतौर पर जो लोन ऑफर करते हैं उसकी अवधि 30 साल तक होती है. लेकिन अब 40 साल का लोन भी बाजार में उपलब्ध है. ये लंबी अवधि के लोन लोगों को अपनी जरूरतों के हिसाब से अवधि तय करने का मौका देते है. इन लंबी अवधि के लोन में बहुत सहूलियत होती है, लेकिन इसकी अपनी ही एक कीमत भी होती है.
लोन की अवधि का मतलब है कि वो समयावधि जिसमें व्यक्ति पूरे होम लोन का भुगतान कर सकेगा, अगर कर्जधारक उसी इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट (EMI) शेड्यूल के साथ चलते हैं, जो बैंक या वित्तीय संस्थान ने तय किया है. हाउसिंग लोन बड़ा कर्ज होता है, जहां लोन की राशि बड़ी होती है और इसलिए एक बार में लोन की पूरी राशि चुकाना मुश्किल होता है. इसलिए लंबी अवधि की वजह से कर्जधारक पर तुरंत आया बोझ घट जाता है.
लेकिन लंबी रीपेमेंट अवधि का मतलब है कि जिस व्यक्ति ने लोन लिया है, उसे काफी उम्र तक उसे चुकाना पड़ेगा. उदाहरण के लिए, बाजार में उपलब्ध 40 साल के लोन के लिए, व्यक्ति 75 साल की उम्र पर पहुंचने तक लोन चुका सकता है. ये बाद की उम्र कागजों में अच्छी लगती है. लेकिन व्यक्ति को ये सोचना होगा कि वो रिटायर होने के बाद पैसा कैसे चुकाएगा, क्योंकि इस उम्र में भी वो काम करता रहे, ऐसा नहीं हो सकता.
लोन की अवधि बढ़ाने का फायदा ये है कि हर महीने EMI घटती चली जाती है. इससे लोन किफायती बनता है, क्योंकि व्यक्ति लोन में EMI की राशि के साथ ये ही देखता है कि उसकी इनकम के आधार पर वो किफायती है या नहीं. ऐसा हो सकता है कि व्यक्ति को बड़ी लोन राशि की जरूरत हो, लेकिन अगर वो 20 से 25 साल की अवधि पर रहता है, तो EMI की राशि बहुत ज्यादा होगी. इसलिए, ऐसे में बड़ी अवधि EMI को कम करने में मदद करेगी और उसे किफायती बनाएगी, लेकिन इसका किफायती दिखना धोखा भी हो सकता है.
अगर आप ज्यादा राशि का लोन लंबी अवधि के साथ लेते हैं, तो इसका एक नकारात्मक असर भी होगा. वो है ब्याज. एक ये है कि लोन की अवधि लंबी होगी, तो जिस ब्याज का आप भुगतान करेंगे, वो ज्यादा होगा. आपको लोन लेने से पहले लागत को लेकर विश्लेषण कर लेना चाहिए और इसे रीपेमेंट के प्लान में शामिल करना चाहिए. इसके अलावा व्यक्ति लोन के शुरुआती वर्षों में उपलब्ध फंड्स से लोन की कुछ राशि को चुका सकता है, क्योंकि इससे ब्याज की लागत में कमी आएगी.
होम लोन लेते समय एक चीज जिसका ध्यान रखना चाहिए, वो है लोन की राशि और उसे चुकाने के तरीके को लेकर साफ रणनीति होनी चाहिए. लोन की राशि बड़ी है और रीपेमेंट की अवधि लंबी है, तो इसका असर भी बड़ा होगा. लेकिन इसे लेकर साफ योजना होनी चाहिए, कि लोन का कैसे पुनर्भुगतान कैसे होगा. शुरुआती सालों में लोन के कुछ हिस्से को चुका देने से बहुत ब्याज बचेगा. तो, इस पर भी ध्यान देना चाहिए. बहुत से लोग एक ही चीज को देखते हैं, EMI की राशि या ब्याज दर और फिर फैसला ले लेते हैं.
लेकिन ये सही तरीका नहीं है. अगर ब्याज दरें बढ़ रही हैं, तो उसके मुताबिक लोन की लागत और असर को भी कैलकुलेशन में शामिल करना होगा. क्योंकि ज्यादातर होम लोन फ्लोटिंग होते हैं. व्यक्ति के पास ये तय करने के लिए पूरा मौका होना चाहिए कि अगर ब्याज दरों के मोर्चे पर चीजें सही नहीं रहती हैं तो उसकी वित्तीय स्थिति पर कोई दबाव नहीं पड़ेगा. लंबी अवधि से लोन किफायती दिख सकता है, लेकिन इसकी लागत ज्यादा होती है.
अर्णव पंड्या
(लेखक Moneyeduschool के फाउंडर हैं)