Top 5 Large Cap Mutual Funds: म्यूचुअल फंड के जरिए इक्विटी में निवेश करने का ट्रेंड लगातार बढ़ रहा है. जो निवेशक सीधे इक्विटी में पैसे लगाने का रिस्क नहीं लेना चाहते, उनके लिए म्यूचुअल फंड एक बेहतर विकल्प है. इसमें आपका पोर्टफोलियो फंड मैनेजर की देख रेख में अच्छी तरह डाइवर्सिफाई हो जाता है. इक्विटी फंड में भी लार्जकैप फंड ज्यादा सुरक्षित माने जाते हैं, जिनमें बाजार के उतार-चढ़ाव को झेलने की बेहतर क्षमता होती है. अगर आप भी ऐसे निवेशक हैं जो ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहते, तो लार्ज कैप म्यूचुअल फंड (Large Cap mutual funds) में पैसे लगाने पर विचार कर सकते हैं. लार्जकैप फंड्स के पुराने रिटर्न बताते हैं कि ये फंड किस तरह लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएटर साबित हो सकते हैं.
लार्ज-कैप फंड म्यूचुअल फंड की वह कैटेगरी है, जो लार्ज मार्केट कैपिटलाइजेशन वाली कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं. इनमें आमतौर पर मार्केट कैपिटलाइजेशन के लिहाज से टॉप 100 कंपनियां शामिल होती हैं. मसलन रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL), TCS, HUL, SBI, ITC, HDFC बैंक, ICICI बैंक. इन बड़ी और मजबूत कंपनियों में बाजार की चुनौतियों से निपटने की अधिक क्षमता होती है और इनका ट्रैक रिकॉर्ड भी बेहतर होता है. लार्ज-कैप फंड में लंबे अवधि के दौरान लगातार बेहतर रिटर्न मिलने की गुंजाइश रहती है और वे बाकी इक्विटी फंड्स के मुकाबले सुरक्षित माने जाते हैं.
1 साल में 18% से 36% रिटर्न देने वाले लार्ज कैप फंड
लार्ज-कैप फंड उन लोगों के लिए बेहतर है, जिन वित्तीय जोखिम लेने की क्षमता अधिक नहीं होती और जो नहीं चाहते कि उनके निवेश पर बाजार की उथल-पुथल का ज्यादा असर पड़े. ऐसा नहीं है कि लार्ज-कैप फंड में उतार-चढ़ाव या रिस्क बिलकुल नहीं होता. लेकिन कुल मिलाकर इनमें मिडकैप और स्मॉलकैप फंड्स की तुलना में लंबी अवधि में ज्यादा स्थिर रिटर्न मिलता है.
लार्ज-कैप फंड उन निवेशकों के लिए भी सही हैं, जो अलग-अलग सेक्टर की लीडिंग कंपनियों के शेयरों में निवेश करके अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई करना चाहते हैं. अगर एक सेक्टर पर कुछ दबाव रहता है तो दूसरे सेक्टर की तेजी पोर्टफोलियो को बैलेंस कर देती है.
लार्ज कैप फंड में उतार-चढ़ाव कम होता है, इसलिए रिस्क भी कम होता है. ये फंड उन नए निवेशकों के लिए भी बेहतर होते हैं, जो बाजार में पहली बार उतरने जा रहे हैं या बाजार के बारे में जानकारी लेनी शुरू की है.
म्यूचुअल फंड में निवेश पर दो तरीके से रिटर्न मिलता है- डिविडेंड और कैपिटल गेंस. लार्ज-कैप फंड पर भी टैक्स के वही नियम लागू होते हैं, जो बाकी इक्विटी फंड्स के लिए हैं.
डिविडेंड पर टैक्स: म्यूचुअल फंड्स से होने वाली डिविडेंड इनकम पर इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है.
कैपिटल गेंस पर टैक्स: अगर इक्विटी फंड्स का होल्डिंग पीरियड 12 महीने से कम का है तो इस पर मिलने वाला प्रॉफिट शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस माना जाता है और उस पर 15% की दर से टैक्स लगता है. 12 महीने से अधिक की होल्डिंग पर 10% की दर से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस लगता है. लेकिन एक वित्त वर्ष के दौरान 1 लाख रुपये तक का लॉन्ग टर्म गेन टैक्स-फ्री है. यानी एक साल में 1 लाख रुपये से अधिक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 10% की दर से टैक्स होता है. इस पर किसी तरह का इंडेक्सेशन बेनिफिट नहीं मिलता है.
ELSS पर 80C के तहत टैक्स छूट: अगर आप म्यूचुअल फंड्स में ELSS के जरिए पैसे लगाते हैं तो सालाना 1.5 लाख रुपये तक के निवेश पर इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत टैक्स छूट का लाभ ले सकते हैं. टैक्स सेविंग ELSS में कम से कम 3 साल का लॉक-इन होता है.
लार्ज-कैप फंड भी इक्विटी फंड हैं. लिहाजा किसी भी इक्विटी निवेश की तरह इसमें लगाए गए पैसों और रिटर्न पर भी मार्केट का असर पड़ता ही है. लिहाजा ये फंड भी मार्केट से जुड़े रिस्क से अछूते नहीं हैं.
मार्केट रिस्क: बाजार के प्रदर्शन में उतार-चढ़ाव आने का जोखिम हमेशा बना रहता है. इसमें आर्थिक कारणों के अलावा जियो-पॉलिटिकल रिस्क फैक्टर भी शामिल हैं. हालांकि आमतौर पर स्मॉल कैप और मिड कैप फंड्स की तुलना में लार्ज कैप फंड्स के NAV में कम उतार-चढ़ाव होते हैं.
ब्याज दर का रिस्क: बढ़ती ब्याज दरें सिक्योरिटीज की कीमत को विपरीत दिशा में ले जा सकती हैं. जिसका असर म्यूचुअल फंड्स पर भी पड़ सकता है.
इनवेस्टमेंट होराइजन से जुड़ा रिस्क: लार्ज कैप फंड्स आम तौर पर 3 से 5 साल या उससे भी लंबे निवेश के दौरान बेहतर प्रदर्शन करते हैं. कम समय में हाई रिटर्न की ख्वाहिश रखने वालों को इनके रिटर्न कई बार निराश कर सकते हैं.
रिडेम्पशन की टाइमिंग से जुड़ा रिस्क: बाजार से जुड़े होने के कारण म्यूचुअल फंड्स की NAV में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं. इसलिए यह संभव है कि जिस वक्त आप अपने निवेश को निकालना चाहते हों, उस वक्त एनएवी बहुत अच्छी न हो. यानी अगर आपको पूरा लाभ लेना है, तो पैसे निकालने के सही वक्त मामले में फ्लेक्सिबल होना बेहतर रहता है.
(सोर्स : वैल्यू रिसर्च, क्लियर टैक्स)