केंद्र सरकार का कैपिटल एक्सपेंडिचर FY2024-25 के दूसरे हाफ की शुरुआत में केंद्र सरकार का कैपिटल एक्सपेंडिचर काफी कम रहा. अब जब ग्रोथ में वापस तेजी आने की उम्मीद की जा रही है, ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से खर्च में कटौती से इन उम्मीदों को झटका लग सकता है.
जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की रियल GDP ग्रोथ सात तिमाही के सबसे निचले स्तर 5.4% पर पहुंच गई. जबकि इससे पिछली तिमाही में ये 6.7% थी. हालांकि सरकार का खर्च सालाना आधार पर 4% बढ़ा है, लेकिन कैपिटल एक्सपेंडिचर की ग्रोथ धीमी होकर 5.4% पर पहुंच गई.
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल-अक्टूबर के दौरान कैपिटल एक्सपेंडिचर में 15% की गिरावट आई और ये 4.66 लाख करोड़ रुपये रहा. ये पूरे साल के लिए रखे गए 11.11 लाख करोड़ रुपये का टारगेट का 42% है. जबकि इस दौरान रेवेन्यू एक्सपेंडिचर 8.6% की ज्यादा तेज रफ्तार से बढ़ा और 20.1 लाख करोड़ पर पहुंच गया, जो फिस्कल टारगेट का 54.1% है.
SBI में चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष के मुताबिक, 'राज्यों के लिए स्थिति तो और भी खराब है. 17 बड़े राज्यों में से केवल 5 राज्यों ने ही पहले हाफ में एक्सपेंडिचर में बढ़ोतरी दर्ज की है. माना गया कि मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में ग्रोथ में जो गिरावट आई है, उसमें इसने बड़ा योगदान दिया है. चूंकि राज्यों के खर्च पर कठोर शर्तें लगाई गई हैं, ऐसे में वित्त वर्ष के दूसरे हाफ में भी राज्यों के खर्च में कोई भी बहुत इजाफा होने की उम्मीद नहीं है.' घोष के मुताबिक इसके चलते मौजूदा वित्त वर्ष में ग्रोथ का आंकड़ा 6% से 6.5% के बीच रह सकता है.
राज्यों को दिए जाने वाले कैपिटल एक्सपेंडिचर लोन में भी गिरावट आई है. अब तक ये 52,100 करोड़ रुपये रहा है, जो सालाना आधार पर 21% की गिरावट दिखाता है. जबकि बजट अनुमानों में FY25 में 22% की ग्रोथ का अनुमान लगाया गया था.
एमके में लीड इकोनॉमिस्ट माधवी अरोड़ा कहती हैं कि अब अगर बचे हुए वित्त वर्ष के कैपिटल एक्सपेंडिचर को पाना है तो बचे हुए वित्त वर्ष में बीते साल की तुलना में 61% ज्यादा खर्च करना होगा. वे कहती हैं कि अब मंथली रन रेट 1.3 लाख करोड़ रुपये पर आ गई है. जहां रोड, डिफेंस और रेलवेज जैसी बड़ी कैटेगरीज में खर्च के बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन राज्यों को दिया जाने वाला कैपिटल एक्सपेंडिचर लोन टारगेट के नीचे बने रहने की संभावना है.
अगर ऐसा होता है तो FY25 में तय किए गए 11.11 लाख करोड़ के कैपिटल एक्सपेंडिचर से कुल खर्च कम रह जाएगा.
Citi में चीफ इकोनॉमिस्ट समीरन चक्रबर्ती कहते हैं कि नवंबर से मार्च 2025 के बीच केंद्र सरकार का कैपिटल एक्सपेंडिचर सालाना आधार पर 20% की दर से बढ़ेगा. जबकि UBS में चीफ इकोनॉमिस्ट तनवी गुप्ता का अनुमान है कि वित्त वर्ष के दूसरे हाफ में कैपिटल एक्सपेंडिचर सालाना आधार पर 25-30% की दर से बढ़ेगा.
JP मोर्गन अर्थव्यवस्था में घरेलू मांग में स्पष्ट कमी का मतलब है कि प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में भी कमी है, जिसके चलते सरकारी निवेश पर निर्भरता ज्यादा बढ़ गई है. जैसा दो तिमाही में देखा गया है, अगर सरकारी निवेश कम होता है तो प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में आई कमजोरी स्पष्ट दिखने लगेगी. निर्मल बंग इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज में इकोनॉमिस्ट टेरेसा जॉन ने भी ऐसी ही चिंताएं जताई हैं.