केंद्रीय कैबिनेट ने 'एक देश, एक चुनाव' बिल (One Nation, One Election) को मंजूरी दे दी है. NDTV ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि इस बिल को संसद के इसी शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है.
मोदी कैबिनेट ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' के प्रस्ताव को 18 सितंबर को मंजूरी दी थी और अब बिल को मंजूरी दी गई है. बता दें कि 'एक देश, एक चुनाव' मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है.
केंद्र की मोदी सरकार लंबे समय से 'एक देश, एक चुनाव' के लिए जोर दे रही है. सरकार का मानना है कि चुनाव की मौजूदा व्यवस्था में समय, पैसे और वर्कफोर्स की बर्बादी होती है.
सितंबर में गठित और पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नेतृत्व वाले पैनल ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे कैबिनेट ने स्वीकार किया था. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों सहित 32 दलों और प्रमुख न्यायिक हस्तियों का समर्थन हासिल है. वहीं, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, AITMC और RJD समेत कई विपक्षी पार्टियां इसके विरोध में है.
अपनी रिपोर्ट में कोविंद कमिटी ने वन नेशन वन इलेक्शन के ढेरों फायदे गिनाए थे. कमिटी के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने से 'चुनावी प्रक्रिया (और) शासन में बदलाव आएगा' और 'संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा'.
पैनल ने कहा कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के कई फायदे हैं, ये मतदाताओं के लिए चुनावी प्रक्रिया को आसान बनाता है. इससे इकोनॉमी में स्थिरता आएगी. इससे व्यवसायों और कॉरपोरेट फर्म्स को नीतियों में बदलाव का डर नहीं रहेगा, उनको फैसले लेने में आसानी होगी.
उनके मुताबिक, सभी तीन स्तरों (लोकसभा, राज्य की विधानसभाओं और पंचायतों) के लिए चुनाव कराने से 'प्रवासी श्रमिकों के मतदान के लिए छुट्टी मांगने के कारण सप्लाई चेन और प्रोडक्शन साइकल में व्यवधान से बचा जा सकेगा.
हाई लेवल कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 1951 और 1967 के बीच में भी चुनाव एक साथ कराए गए थे. इन सिफारिशों के तहत, इसे दो चरणों में लागू किया जाएगा.
पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करवाया जाएगा.
दूसरे चरण में लोकल बॉडी इलेक्शन जैसे- पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनाव होंगे.
ये आम चुनाव के 100 दिनों के बाद कराए जाएंगे. सभी चुनावों के लिए एक कॉमन इलेक्टोरल रोल होगा. इसे लेकर पूरे देश में चर्चा की जाएगी. इसे लागू करने के लिए एक इंप्लीमेंटेशन ग्रुप का गठन किया जाएगा
पहले चरण में लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव हों
दूसरे चरण में लोकसभा-विधानसभा के साथ स्थानीय निकाय चुनाव हों
पूरे देश मे सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची होनी चाहिए
सभी के लिए वोटर आई कार्ड भी एक ही जैसा होना चाहिए
पैनल ने मार्च में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. अपनी रिपोर्ट में पैनल ने कहा कि उसने अपना फैसला देने से पहले दुनिया के कई देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन किया था, और अर्थशास्त्रियों और चुनाव आयोग से सलाह मशवरा भी किया था. हाई लेवल कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 1951 और 1967 के बीच में भी चुनाव एक साथ कराए गए थे.
उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा.
गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा का कार्यकाल भी 13 से 17 माह घटेगा.
असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी का कार्यकाल कम होगा.
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संघवाद की चिंता भी है. NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, जानकारों का कहना है कि इससे भारत की राजनीतिक व्यवस्था के संघीय ढांचे पर असर पड़ेगा. राज्य सरकारों की स्वायत्तता कम होगी. विधि आयोग भी मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में एक साथ चुनाव की व्यावहारिकता पर सवाल उठा चुका है.
व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो एक साथ चुनाव कराने में भारी मात्रा में संसाधनों की जरूरत पड़ेगी, जिसका इंतजाम करना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है. एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी मात्रा में EVM और प्रशिक्षित लोगों की जरूरत पड़ेगी और साथ ही बड़ी संया में फोर्स की भी जरूरत होगी.
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व का भी सवाल है. अलग-अलग होने वाले चुनावों के जरिए जनता समय-समय पर अपनी पसंद तय कर सकती है, बदल भी सकती है. इसका एक बड़ा उदाहरण दिल्ली है, जहां लाेकसभा चुनाव में जनता BJP को चुनती है, जबकि विधानसभा में नहीं. नई व्यवस्था में 5 साल बाद चुनाव होंगे तो जनता को अपनी बदली हुई पसंद जाहिर करने में दिक्कत आएगी.
सरकार के लिए आम सहमति के अभाव में मौजूदा इलेक्शन के सिस्टम को बदलना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा. 'एक राष्ट्र एक चुनाव' को लागू करने में संविधान में संशोधन करना होगा और इसके लिए कम से कम 6 विधेयक होंगे.
सरकार को संसद में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी. NDA के पास संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा में सामान्य बहुमत है. लेकिन, किसी भी सदन में दो-तिहाई बहुमत हासिल करना चुनौती हो सकता है.
राज्यसभा की 245 सीटों में से NDA के पास 112 सीटें हैं, जबकि विपक्षी दलों के पास 85 सीटें हैं. दो-तिहाई बहुमत के लिए सरकार को कम से कम 164 वोट चाहिए.
वहीं, लोकसभा में NDA के पास 545 में से 292 सीटें हैं. लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 364 है. लेकिन, स्थिति गतिशील हो सकती है, क्योंकि बहुमत की गिनती सदन में मौजूद सांसद और वोट करने वाले सदस्यों पर निर्भर होगी.