Dark Pattern Explained: शॉपिंग के लिए लुभाकर चूना लगाते हैं 'डार्क पैटर्न', एक्‍सपर्ट बोले- ऑफर्स देख चौंकिए नहीं, संदेह कीजिए

इस तरह की बिजनेस प्रैक्टिसेस ने नैतिकता और उपभोक्ताओं के भरोसे को लेकर व्यापक चर्चा को जन्म दिया है.

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हाल के महीनों में ग्रॉसरी आइटम्‍स के दाम खूब बढ़े हैं. इनमें सरसों तेल (Branded Mustard Oil) एक ऐसा आइटम है, जिसका भाव 165-170 रुपये/लीटर से बढ़ कर 200 रुपये/लीटर के पार चला गया है.

नोएडा सेक्‍टर-15 के रहने वाले अमृतांशु ने बीते महीने एक ई-कॉमर्स साइट से इसी बढ़े हुए भाव पर खरीदारी की, लेकिन उसके फ्लैटमेट ने इस महीने 350 रुपये में ही 2 लीटर तेल मंगवा लिए. अमृतांशु ने फिर से अपने फोन पर चेक किया तो उसे 175 रुपये की बजाय 205 रुपये का भाव शो हो रहा था.

गौर करने पर 2-3 चीजें नोट करने लायक दिखीं. ऑर्डर करने का समय, सामान की क्‍वांटिटी और एक और अहम चीज थी- दोनों का मोबाइल हैंडसेट.

तीसरा प्‍वाइंट, यानी सस्‍ते-महंगे मोबाइल से ऑर्डर का पैटर्न, हाल में वायरल हुए उस Reddit पोस्‍ट से मेल खाता है, जिसमें क्विक कॉमर्स प्‍लेटफॉर्म जेप्‍टो (Zepto) पर महंगे फोन वाले यूजर्स से ज्‍यादा पैसे चार्ज किए जाने के आरोप लगाए गए हैं.

Zepto पर डार्क पैटर्न के आरोप!

सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म रेडिट पर Scary_Split3157 नाम के एक यूजर ने खुद को जेप्‍टो का पुराना कर्मी बताते हुए आरोप लगाया है कि क्विक कॉमर्स प्‍लेटफॉर्म, अपने ऐप में डार्क पैटर्न का इस्‍तेमाल कर अलग-अलग तरीकों से पैसे ऐंठता है. इनमें 30,000 रुपये से अधिक महंगे फोन वाले ग्राहकों से अधिक शुल्क वसूलना भी शामिल है.

पोस्‍ट में यूजर्स के डेटा की प्रोफाइलिंग के भी आरोप हैं. साथ ही कंपनी में टॉक्सिक वर्क कल्‍चर को बढ़ावा देने के भी आरोप लगाए गए हैं.

जेप्‍टो की ओर से CEO आदित पालीचा के X पोस्‍ट को वर्क कल्‍चर पर जवाब माना गया, जिसमें उन्‍होंने आलोचनात्‍मक तरीके से वर्क लाइफ बैलेंस पर टिप्‍पणी की और समर्थन भी दिखाया. हालांकि खबर लिखे जाने तक डार्क पैटर्न के आरोपों पर जेप्‍टो की कोई पब्लिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.

सवाल तो पहले से भी उठ रहे हैं!

ऐसे मसलों ने और इस तरह की बिजनेस प्रैक्टिसेस ने नैतिकता और उपभोक्ताओं के भरोसे को लेकर व्यापक चर्चा को जन्म दिया है.

हो सकता है आपने अभी-अभी अपनी ऑनलाइन डिलीवरी के लिए जो पेमेंट किया है, वो ग्रॉसरी स्‍टोर की तुलना में कहीं ज्‍यादा है. फिर आप सोचेंगे कि घर पर डिलीवरी भी तो मिली है, लेकिन क्‍या पेमेंट में केवल डिलीवरी चार्ज यानी 20-30 रुपये का अंतर है? शायद नहीं! यानी आप 'डार्क पैटर्न' के शिकार हो चुके हैं.

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और बात केवल किसी एक प्‍लेटफाॅर्म की नहीं है, हममें से कई लोग अक्‍सर किसी न किसी तरीके के 'डार्क पैटर्न' का सामना करते हैं. चाहे वो ऑनलाइन सब्सक्रिप्‍शन या प्‍लेटफॉर्म फी का मसला हो, एयर टिकट का मामला हो या फिर ऑनलाइन ई-कॉमर्स प्‍लेटफॉर्म पर एक ही सामान की अलग-अलग कीमतों का. लंबे समय से ऐसे मामलों पर चर्चा होती आ रही है.

यहां सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि डार्क पैटर्न है क्‍या, साथ ही सरकार के प्रावधानों और पॉलिसी एक्‍सपर्ट अविनाश चंद्र से कुछ सावधानियों के बारे में भी समझने की कोशिश करेंगे.

क्या होता है डार्क पैटर्न?

'डार्क पैटर्न' शब्द को साल 2010 में यूजर्स एक्‍सपीरिएंस एक्‍सपर्ट हैरी ब्रिग्नुल ने इंट्रोड्यूस किया था. डार्क पैटर्न का सीधा मतलब विज्ञापनों के भ्रामक इस्तेमाल से है.

डार्क पैटर्न यानी ग्राहकों को कोई वस्तु खरीदने या सर्विस लेने के लिए उकसाना. ग्राहकों को बरगलाना या भ्रामक विज्ञापनों के जरिये उन्हें प्रभावित करना.

डार्क पैटर्न के तहत हेरफेर करने वाली बिजनेस प्रैक्टिस की एक विस्तृत रेंज शामिल है, जिनमें भ्रामक विज्ञापन के अलावा ड्रिप प्राइसिंग, हिडेन चार्ज, फ्रेंड स्‍पैम, क्लिक करने के लिए मजबूर करना (Clickbait), चॉइस मैनिपुलेशन, फॉल्‍स अर्जेंसी, सब्सक्रिप्शन ट्रैप, हिडेन चार्ज, प्राइवेसी कंसर्न वगैरह शामिल हैं.

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तो क्‍या सरकार आंख मूंदे हुए है?

जवाब है- नहीं! कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री ने पिछले साल जून में डार्क पैटर्न पर रोक लगाने के लिए स्‍टेकहोल्‍डर्स के साथ मीटिंग कर एक फ्रेमवर्क तैयार किया था. ग्राहकों को भ्रामक विज्ञापनों के जरिये बरगलाने, लुभाने या प्रभावित करने की गलत प्रैक्टिस को लेकर कंपनियों को चेताया था और एक्‍शन लेने की चेतावनी भी दी थी.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत कंज्‍यूमर्स कैटगरी के आधार पर दिशानिर्देश भी जारी किए गए और दिसंबर 2023 में इसे लागू भी किया गया. ये दिशानिर्देश ऐसे सारे डार्क पैटर्न के खिलाफ थे, जो उपभोक्ताओं को अनजाने में निर्णय लेने के लिए गुमराह या मजबूर करते हैं.

इन दिशानिर्देशों में कहा गया कि डार्क पैटर्न का सहारा लेना, भ्रामक विज्ञापन या अनुचित व्यापार व्यवहार, उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) इन नियमों को लागू करेगा. किसी भी तरह के उल्‍लंघन पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार जुर्माना लगाया जाएगा.

उपाय से बेहतर बचाव! इसलिए...

एक थिंक टैंक से जुड़े पॉलिसी एक्‍सपर्ट अविनाश चंद्र कहते हैं, 'सरकार ने डार्क पैटर्न के खिलाफ कड़े नियम भी बनाए हैं और जुर्माने का प्रावधान भी किया है, लेकिन हर कंपनी या प्‍लेटफॉर्म इन्‍हें फॉलो ही करें, जरूरी तो नहीं.'

वैसे भी 'जनरल नॉलेज' की बात ये है कि बीमार पड़ के दवा खाने से बेहतर है, वैक्‍सीन लगवा लें, सावधानियां बरतें और बीमार ही ना पड़ें.

अविनाश ने बताया कि आप जिन ऐप्‍स और वेबसाइट्स का इस्‍तेमाल करते हैं, वहां डार्क पैटर्न को लेकर सतर्क रह सकते हैं और खुद को सुरक्षित रख सकते हैं.

  • नियम और शर्तें: शॉपिंग करने से पहले हमेशा नियम और शर्तों की जांच कर लें, भले ही वे महीन अक्षरों में लिखे हों या कहीं छिपाकर पब्लिश किए गए हों.

  • आश्‍चर्य नहीं संदेह करें: अक्‍सर बड़े और लुभावने ऑफर्स से आपका सामना होता है, जिस पर आपको आश्‍चर्य भी हो सकता है, पर जरूरत है संदेह करने की.

  • डेटा प्राइवेसी का ध्‍यान: हमेशा अपना डेटा साझा करते समय ध्‍यान दें कि आप अपने बारे में कौन-सी जानकारियां दे रहे हैं और क्‍या वो यहां जरूरी है!

आगे वे कहते हैं कि ऐप या वेबसाइट्स पर आपको ज्‍यादा खर्च करने के लिए कंपनियां कई तरह की चाल चलती हैं. इन लुभावनी चालों में फंसने की बजाय, आपको अपनी आवश्‍यकता और विलासिता में अंतर करना सीखना होगा.

अगर आपको संदेह है कि कोई कंपनी डार्क पैटर्न का उपयोग कर रही है, तो इसकी रिपोर्ट उपभोक्ता संरक्षण विभाग को कर सकते हैं.

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