चुनाव आयोग (Election Commission) के कामकाज को लेकर अक्सर विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती रही हैं. मामला आम चुनाव से जुड़ा हो या फिर राज्यों में विधानसभा चुनावों से जुड़ा हो, अलग-अलग पार्टियों के नेता EVM मशीन की ही तरह आयोग पर भी सवाल उठाने से नहीं चूकते.
चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता को लेकर पिछले 9 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट में कई जनहित याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं. इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मार्च में एक अहम फैसला सुनाया था.
अपने इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार के नियंत्रण से बाहर होनी चाहिए.'
जस्टिस KM जोसेफ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने कहा, 'मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति राष्ट्रपति करें. ये नियुक्ति वो एक समिति की सलाह पर करें, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और देश के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) शामिल होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति को लेकर एक कानून बनाने के लिए भी कहा था.
मॉनसून सत्र में सरकार ने लाया था बिल
इस फैसले के बाद केंद्र सरकार ने मॉनसून सत्र में एक बिल पेश कर दिया. ये बिल था- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023. बिल पर तब राज्यसभा में खूब हंगामा हुआ था.
कांग्रेस की ओर से रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि सरकार चुपचाप ये बिल लेकर आ गई और इसके जरिए चुनाव आयोग की स्वायत्तता खत्म करना चाहती है.
संसदीय मामलों के जानकार सिद्धार्थ झा ने BQ Prime हिंदी से बातचीत में बताया कि इस बिल के अनुसार, तीन सदस्यीय चयन समिति में से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) को हटाकर PM मोदी द्वारा मनोनीत केंद्रीय मंत्री को शामिल करने की बात है. इसमें चुनाव आयुक्त का दर्जा कम करने का भी प्रस्ताव है.
आखिर क्या है इस विधेयक में?
इस विधेयक के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन एक सेलेक्शन कमिटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेंगे.
इस तीन सदस्यीय चयन समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे. दूसरा सदस्य नेता प्रतिपक्ष (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) होंगे, जबकि तीसरे सदस्य एक केंद्रीय मंत्री होंगे (जिन्हें प्रधानमंत्री मनोनित करेंगे).
सेलेक्शन कमिटी के पास नाम भेजने के लिए सर्च कमिटी होगी, जिसके अध्यक्ष कैबिनेट सेक्रेटरी होंगे. उनके साथ इस कमिटी में केंद्र सरकार के सेक्रेटरी रैंक के दो अधिकारी होंगे.
चुनाव आयुक्त के पदों के लिए सर्च कमिटी उन लाेगों में से नाम चुनेगी, जो केंद्र सरकार में सचिव स्तरीय पद पर या समान रैंक के पद पर हों.
मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति 6 साल या 65 वर्ष की आयु तक के लिए होगी और इनको दोबारा नियुक्ति नहीं मिलेगी.
अगर किसी चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाता है तो उनका कुल कार्यकाल 6 साल से अधिक नहीं हो सकता है.
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जज से घटा कर कैबिनेट सचिव के बराबर करने का प्रस्ताव है.
विधेयक के अनुसार, चुनाव आयोग का काम यथासंभव सर्वसम्मति से किए जाने की बात कही गई है, जबकि मतभेद की स्थिति में बहुमत का निर्णय मान्य होगा.
अब तक क्या रहा है प्रावधान?
चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है जिसका विवरण संविधान के अनुच्छेद 324 में विस्तार से दिया गया है. इसमें बताया गया है कि देश और राज्यों में चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है. केंद्रीय चुनाव आयाेग के अलावा राज्यों में भी चुनाव आयोग होते हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर रहा है. ऐसे में उनके फैसलों को भी वैसी ही मान्यता दी गई है. वहीं उन्हें पद से हटाए जाने का प्रावधान भी बेहद जटिल है.
अब तक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को उनके पद से केवल संविधान के अनुच्छेद 324 के खंड (5) के तहत ही हटाए जाने का प्रावधान रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाए जाने जैसी प्रक्रिया होती है.
अनुच्छेद 324 (2) में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है. अब तक राष्ट्रपति ही CEC और EC की नियुक्ति करते आ रहे हैं.
हालांकि अनुच्छेद 324 में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कानून बनाने की भी बात कही गई है. CEC या ECs की नियुक्ति के लिए कोई कानून न होने के कारण ही सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं.
क्यों हो रहा बिल का विरोध?
चुनाव आयुक्तों का चयन करने वाली समिति को लेकर विपक्ष का बड़ा विरोध है. समिति में CJI की जगह प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रस्ताव है. ऐसे में विपक्ष का कहना है कि चयन प्रक्रिया से पहले ही विपक्ष को अल्पमत में ला दिया जाएगा. प्रधानमंत्री जिसे चाहेंगे, नियुक्त कर सकेंगे.
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जज का दर्जा न देने का विरोध हो रहा है. बिल में इनका दर्जा घटा कर कैबिनेट सचिव के बराबर करने का प्रस्ताव है, जिसका विपक्ष ने रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक में भी विरोध किया.
वर्तमान में, जब चुनाव आयुक्त, केंद्रीय कैबिनेट सचिव या किसी भी राज्य के मुख्य सचिव को मीटिंग के लिए बुला सकते हैं. इसमें शामिल नहीं होने पर अधिकारी को शोकॉज कर सकते हैं. उनका आदेश, सुप्रीम कोर्ट के जज के आदेश के समकक्ष माना जाता है. अगर उनका दर्जा कम किया गया तो उनकी कमान और नियंत्रण पर असर पड़ सकता है.
विपक्ष का कहना है कि ये बिल संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद 324) को बदलने का प्रयास करता है. सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर ओहदा नहीं होने से चुनाव आयुक्तों को नौकरशाह माना जा सकता है. चुनाव करवाने के मामले में ये एक जटिल स्थिति हो सकती है. इससे पक्षकारिता की संभावना बनेगी. वहीं दूसरी ओर उन्हें पद से हटाए जाने की प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी.
विपक्ष का कहना है कि चुनाव एक निष्पक्ष प्रक्रिया है, यदि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति ही निष्पक्ष नहीं रहेगी तो चुनाव कैसे निष्पक्ष हो पाएगा. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार के नियंत्रण में जाने से या फिर चुनाव आयुक्तों का ओहदा कम करने से निष्पक्षता खतरे में आ जाएगी.
पहले से तय एजेंडा में शामिल!
विशेष सत्र में जिन विधेयकों पर चर्चा होने वाली है, उनमें चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाला विधेयक होने की भी चर्चा है. संसद बुलेटिन के अनुसार, The Chief Election Commissioner and other Election Commissioners (Appointment, Conditions of Service and Term of Office) Bill, 2023 पर राज्यसभा में चर्चा हो सकती है.
रविवार को केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने मीडिया से बातचीत की थी, जिसका वीडियो उन्होंने अपने X एकाउंट पर डाला है.
इस बिल को लेकर पूछे गए सवाल पर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी का बस इतना कहना था कि 'जो बताना था, बता दिया.' ऐसे में कहा जा रहा है कि सरकार इसमें संशोधन कर सकती है.