जानिए, भारत में क्यों 20 फीसदी तक महंगी हो जाएंगी डीज़ल कारें...

प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े Bharat Stage VI के कड़े उत्सर्जन नियमों के 1 अप्रैल, 2020 से लागू होने के बाद ऑटो इंडस्ट्री और कारों के खरीदारों, दोनों के लिए कीमतों में बढ़ोतरी तय है, क्योंकि इस नई टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए कार-निर्माताओं को 36,500 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च करनी पड़ेगी।

प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े भारत स्टेज छह (Bharat Stage VI) के कड़े उत्सर्जन नियमों के 1 अप्रैल, 2020 से लागू होने के बाद ऑटो इंडस्ट्री और कारों के खरीदारों, दोनों के लिए कीमतों में बढ़ोतरी तय है, क्योंकि कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ (Kotak Institutional Equities) के मुताबिक इस नई टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए कार-निर्माताओं को लगभग 36,500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि खर्च करनी पड़ेगी।

इस खर्च का बहुत बड़ा हिस्सा डीज़ल कार निर्माताओं को वहन करना होगा। देश में यूटिलिटी कार-निर्माता महिंद्रा एंड महिंद्रा के इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होने की संभावना है, जिनकी लगभग सभी गाड़ियां डीज़ल से ही चलती हैं।

"खर्च कार खरीदने वाले को ही वहन करना होगा..."
इस वजह से कारों के इंजनों को BS-IV से BS-VI में शिफ्ट करने का अतिरिक्त खर्च आखिरकार कार खरीदार को ही वहन करना पड़ेगा, सो, BS-VI नियमों का पालन करने वाली कारें खरीदने के लिए उन्हें अधिक रकम खर्च करनी पड़ेगी।

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ के हितेश गोयल ने बताया, "हमारा मानना है कि डीज़ल वाहनों को BS-VI नियमों के हिसाब से चलने के लिए डीज़ल पार्टिकुलेट फिल्टर तथा चुनिंदा कैटेलिटिक कन्वर्टर लगाने होंगे... इसका अर्थ यह होगा कि डीज़ल वाहनों की कीमतें लगभग 20 प्रतिशत बढ़ जाएंगी..."

"हल्के वाणिज्यिक वाहनों की कीमत 13 फीसदी बढ़ेंगी..."
कोटक के अनुमानों के हिसाब से डीज़ल से चलने वाले हल्के वाणिज्यिक वाहनों और ट्रकों की कीमतों में क्रमशः 13 और 23 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।

हालांकि पेट्रोल और सीएनजी से चलने वाले वाहनों की कीमतों में बहुत ज़्यादा वृद्धि के आसार नहीं हैं। कोटक का मानना है कि नए उत्सर्जन नियमों को लागू किए जाने के बाद पेट्रोल कारों में सिर्फ दो फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी, जबकि दोपहिया की कीमतें बिचौलियों के खर्चों को जोड़ने के बाद लगभग पांच फीसदी तक बढ़ सकती हैं।

सो, डीज़ल कारों की ज़्यादा कीमतों की वजह से ग्राहकों की रुचि पेट्रोल तथा अन्य ईंधनों से चलने वाली कारों की तरफ जाएगी, जिसका लाभ भारत के सबसे बड़े कार-निर्माता मारुति सुज़ुकी को मिलेगा।

"फायदा मारुति सुज़ुकी को मिलेगा..."
कोटक ने बताया, पेट्रोल की कारों के बाज़ार में मारुति सुज़ुकी की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है, जबकि डीज़ल कारों के क्षेत्र में उसके पास 32 फीसदी हिस्सेदारी है... हमें लगता है कि अगर वित्तवर्ष 2022 तक पेट्रोल कारों की कार बाज़ार में कुल हिस्सेदारी मौजूदा 55 प्रतिशत से बढ़कर 70 प्रतिशत तक पहुंची, तो मारुति सुज़ुकी की बाज़ार हिस्सेदारी भी कम से कम 500 बेसिस प्वाइंट, यानी लगभग पांच प्रतिशत बढ़ जाएगी..."

इसके अलावा ग्राहकों को पेट्रोल और डीज़ल के लिए भी ज़्यादा कीमत चुकानी होगी, क्योंकि रिफाइनरियों को भी नए नियमों के अनुकूल ईंधन बनाने के लिए अपनी मौजूदा रिफाइनरियों को अपग्रेड करना होगा, जिस पर लगभग 28,800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। कोटक ने बताया, "रिफाइनरों को अपने निवेश पर पर्याप्त रिटर्न पाने के लिए ऑटो ईंधन की कीमतों को कम से कम 30 पैसे प्रति लिटर बढ़ाना पड़ेगा..."

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