दावोस में अरुण जेटली बोले, सस्ते तेल का फ़ायदा सरकार की जेब में नहीं जा रहा

दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में इन दिनों खासा उथल-पुथल देखने को मिल रहा है। ऐसे में भारत इन हालात से निपटने के लिए कौन सा रास्ता अपनाएगा और इस डिजिटल युग में वह कैसे नवाचार (इनोवेशन), विकास और प्रतिभा एक वैश्विक स्रोत बनेगा?

दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में इन दिनों खासी उथल-पुथल देखने को मिल रही है। चीन के बिगड़ते आर्थिक हालात, कच्चे तेल की गिरती कीमतों से दुनिया के कई देशों में मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। ऐसे में भारत इन हालात से निपटने के लिए कौन सा रास्ता अपनाएगा और इस डिजिटल युग में वह कैसे नवाचार (इनोवेशन), विकास और प्रतिभा का एक वैश्विक स्रोत बनेगा? दावोस में जारी विश्व आर्थिक मंच की बैठक में एनडीटीवी के विक्रम चंद्रा ने केंद्रीय वित्त और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली, सिस्को के कार्यकारी अध्यक्ष जॉन चैम्बर्स, भारती इंटरप्राइज़ेज़ के सुनील मित्तल और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नोरील रूबीनी से भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सवालों के जवाब जानने की कोशिश की।

कठिन आर्थिक दौर से गुजर रही है दुनिया
वैश्विक अर्थव्यवस्था में जारी उथल-पुथल और भारत पर इसके असर से जुड़े सवाल पर वित्तमंत्री अरुण जेटली कहते हैं, मैं नहीं मानता हूं कि हालात बहुत खराब हैं, लेकिन कुछ कहा नहीं जा सकता है। पहले कुछ बरसों के लिए ऐसे हालात बने थे कि आपको चुनौती या संकट दिखता था, लेकिन आज उतार-चढ़ाव के हालात हर दिन की बात हो गए हैं। इसलिये कोई देश जिनमें भारत भी शामिल है, ये नहीं कह सकता है कि वो इससे अछूता है।

हम दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था, लेकिन और बेहतरी की गुंजाइश
वह कहते हैं, 'वैश्विक मंदी का असर हमारे निर्यात पर पड़ा है जो कम हुआ है। निर्यात पैसे के रूप में ज़्यादा घटा है, माल के रूप में कम, क्योंकि ख़रीदारों के पास ख़रीद के लिए कम पैसे हैं। लेकिन इसके बाद भी हर अर्थव्यवस्था के लिए ये चुनौती है कि वह बंदिशों के बाद भी इन हालात को कैसे सामना करती है। हम दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था में से एक हैं और हमको लगता है कि हम बेहतर कर सकते हैं।'

सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना बड़े सुधारों में से एक
तेल की कीमतें घटने के बाद आप देखें कि भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था की किस तरह से योजना बनाई है... फायदा किसको मिल रहा है। इस सिलसिले में एक टिप्पणी मैंने देखी जो गलत जानकारी पर आधारित है। तेल की घटी कीमतों से हुए फायदे का एक छोटा हिस्सा तेल कंपनियों को गया, क्योंकि जब तेल की कीमत गिरती हैं तो उनको भी नुकसान होता है, क्योंकि वह पहले से सौदा तय कर चुकी होती हैं। बाकी हिस्सा बराबर बांटा गया उपभोक्ताओं और उन लोगों के बीच जो पेट्रोल और डीज़ल का इस्तेमाल करते हैं, गाड़ियां चलाते हैं जिनको सड़कों की ज़रुरत है। इसलिए सरकार इस फयादे को अपनी जेब में नहीं रख रही है, सारी बचत बुनियादी सुविधाओं पर खर्च हो रही है। जेटली कहते हैं कि सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना मौजूदा सरकार के बड़े सुधारों में से एक है।

रोजगार के लिए नए तौर-तरीकों की ज़रूरत
हमारी आबादी बहुत ज़्यादा है, इसलिए देश में पारंपरिक तरीके की यानी पुरानी अर्थव्यवस्था इन सब लोगों को सरकारी सेक्टर में या प्राइवेट सेक्टर में रोज़गार के मौके नहीं दे सकती है। इसलिए इन लोगों के लिए नए तौर-तरीकों की ज़रूरत है।

'चौथी औद्योगिक क्रांति का केंद्र भारत होगा'
भारती इंटरप्राइजेज के प्रमुख सुनील मित्तल कहते हैं कि सरकार की नीतियां सही दिशा में बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा  'अगले कुछ वर्षों के भारत के बारे में उत्साहित होने की अहम वजह उद्यमशीलता इसकी भावना है।' भारत के भविष्य को लेकर वह कहते हैं कि चौथी औद्योगिक क्रांति का केंद्र भारत होगा।

मित्तल का कहना है कि 'सरकार बहुत कुछ कर रही है, लेकिन इसे और अधिक करने की जरूरत है; भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दरों को और अधिक कम करने की जरूरत है।' उद्योग जगत और निवेश को आकर्षित करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशों की तारीफ करते हुए वह कहते हैं, 'निजी निवेश को आकर्षित करने में प्रधानमंत्री बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। व्यापार प्रमुखों पर पीएम मोदी का जादुई असर देखने को मिलता है। पीएम मोदी को हम जैसे 100 लोगों को एक छत के नीचे लाने और हमारी चिंताओं को दूर करने की जरूरत है।'

सस्ते तेल का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ेगा
इस चर्चा में शामिल इकोनॉमी के प्रोफेसर नोरील रूबीनी कहते हैं कि निवेशकों में चीन की अर्थव्यवस्था में दिख रही गिरावट को लेकर चिंता है। वह कहते हैं, यहां कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या हम 2008 जैसी मंदी के दौर में वापस जा रहे हैं, मेरा जवाब है, नहीं। वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2008 जैसे संकट का सामना नहीं करना होगा। यह सच है कि हम एक महत्वपूर्ण वित्तीय और आर्थिक उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहे हैं। तेल की कीमतों में गिरावट का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर समग्र रूप से सकारात्मक असर पड़ेगा।'

वहीं भारत की आर्थिक दिशा को लेकर रूबीनी कहते हैं कि भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती आपूर्ति क्षेत्र के सुधारों में तेजी लाने की है। भारत को जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर), भूमि सुधार, बैंकों के गैर-निष्पादित ऋण से सही ढंग से निपटने की जरूरत है।

एशिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है भारत
भारत के अर्थिक सुधारों के बारे में सिस्को के कार्यकारी अध्यक्ष जॉन चेम्बर्स कहते हैं कि 'भारत में जिस तरह की उद्यमशीलता देखने को मिल रही है, वैसी कहीं नहीं मिलती। भारत एशिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है। अगर मुझे कोई स्पार्ट-अप शुरू करना होता, तो मैं यह सिलिकॉन वैली में करता या भारत में। मुझे लगता है कि दुनिया भारत पर दांव लगाना चाहती है।'

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