भारत बने मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब, क्‍यों ऐसा चाहती है दुनिया? समझिए 3 बड़े कारण 

NDTV के कॉन्क्लेव 'डिकोडिंग G20' में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि दुनिया,भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर देखना चाहती है.

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India to Become Manufacturing Hub: केंद्रीय मंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के संबोधनों में कई बार ये चर्चा होती रही है कि भारत आने वाले दिनों में मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में विकसित होगा. एक तरफ एप्‍पल, सैमसंग, ओप्‍पो जैसी दिग्‍गज कंपनियों का झुकाव भारत की ओर हुआ है, वहीं दूसरी ओर मैन्‍युफैक्‍चरिंग PMI के आंकड़े लगातार पॉजिटिव संकेत देते रहे हैं. 

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कई बार भविष्य में देश के मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब (ऑटो सेक्टर में) के तौर पर विकसित होने की बात कर चुके हैं. अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि दुनिया के कई देश ऐसा ही चाहते हैं.  

NDTV के स्पेशल कॉन्क्लेव 'डिकोडिंग G20' में विदेश मंत्री ने कहा कि दुनिया,भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब (Manufacturing Hub) के तौर पर देखना चाहती है. उन्होंने कहा, 'हालांकि इस राह में कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन सरकार इन्‍हें दूर करने की कोशिश कर रही है.'

NDTV के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान उन्होंने इसके पीछे कई तर्क दिए. उनकी बातचीत में सामने आए तीन बड़े तर्कों को समझने की कोशिश करते हैं. 

 1). एकाधिकार वाली सप्लाई चेन से मुक्ति

कोरोना महामारी के दौर में चीन ने छोटी-बड़ी जरूरी चीजों की आपूर्ति एकदम ठप कर दी थी. फार्मा API से लेकर इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के लिए पूरी दुनिया जूझ रही थी. दवाओं की मैन्‍युफैक्‍चरिंग में जरूरी फार्मा API के लिए दुनिया की 40% निर्भरता, जबकि भारत की 70% निर्भरता चीन पर रही है. 

सेमीकंडक्टर की बात करें तो इसमें ताइवान पर 60% से ज्‍यादा निर्भरता है. कोरोना काल में इसकी किल्लत के चलते ऑटो सेक्टर को भारी मार झेलनी पड़ी. महीनों तक गाड़ियां प्लांट में खड़ी रहीं और ग्राहकों को वाहनों की ज्‍यादा कीमत चुकाने के बावजूद डिलीवरी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा.  

मैन्युफैक्चरिंग के लिए एक-दो देशों पर अति-निर्भरता को लेकर एस जयशंकर ने कहा, 'कोरोना महामारी का सबक है कि हमें दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए कि वे हमें जरूरी चीजें दें. लिहाजा, दुनिया चाहती है कि भारत मैन्युफैक्चरिंग हब बने.'

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2). 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी की ओर बढ़ता देश 

भारत का तेजी से 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के आंकड़े को छूने की दिशा में आगे बढ़ना भी एक अहम फैक्‍टर है. सरकार ने 2025 तक इस आंकड़े को छूने का लक्ष्य रखा है. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन के दौरान अगले 5 साल में दुनिया की टॉप-3 इकोनॉमी में देश के शामिल होने की बात कही थी. 

1987-88 तक भारत और चीन की GDP कमोबेश बराबर थी. लेकिन तेज मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात आधारित इकोनॉमी बनकर चीन 30 वर्षों में 18 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनकर उभरा और दुनिया के कई देशों को अपने ऊपर निर्भर बना डाला. 

किसी भी देश के लिए शीर्ष अर्थव्यवस्था बनने में मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात का बड़ा योगदान होता है. देश में इंफ्रास्ट्रक्चर और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैकिंग में खासा सुधार हुआ है. दुनिया की दिग्‍गज कंपनियां भारत में निवेश करने को आतुर हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि देश मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात पर सवार होकर तीसरी बड़ी इकोनॉमी की दिशा में कदम बढ़ा रहा है.

3). मैत्री और भरोसे की गारंटी 

कोरोना महामारी हो या यूक्रेन-रूस युद्ध. भारत ने निष्पक्ष रहते हुए अपने हितों को बढ़ावा दिया और दूसरे देशों की भी मदद की. वैक्सीन मैत्री के जरिए भारत ने करीब 150 देशों तक वैक्‍सीन और अन्‍य मेडिकल सुविधाएं पहुंचाई.

तुर्की में भूकंप आया तो भारत ने ऑपरेशन दोस्‍त चलाकर भरपूर मदद की. अभी चावल निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद केंद्र सरकार ने जरूरतमंद देश सिंगापुर को आपूर्ति का फैसला लिया है. 

मानवता दिखाने वाली इन कोशिशों की बदौलत दुनियाभर में भारत की छवि एक स्वतंत्र विदेश नीति वाले, शांतिप्रिय और भरोसेमंद पार्टनर की बनी है, जिसके साथ तमाम देश खड़ा होना चाहते हैं. 

अब एक्‍सपर्ट की सुनिए 

भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर दुनिया की पसंद बनने को लेकर NDTV ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड (IIFT) के प्रोफेसर राकेश मोहन जोशी से बातचीत की.

उन्‍होंने कहा, 'कोरोना के दौरान सप्लाई चेन बाधित होने से बड़ी-बड़ी इकोनॉमीज पर असर पड़ा. नतीजतन वे अब तक नहीं उबर पाए. वहां बेतहाशा महंगाई बढ़ी और इनमें कई देश आज स्लोडाउन की हालत में हैं. लिहाजा, पूरी दुनिया को एक ऐसी सस्टेनेबल सप्लाई चेन की जरूरत है, जो बाधाओं से परे और भरोसेमंद हो. और इन दोनों बातों की गारंटी फिलहाल दुनिया को भारत ही दे सकता है.'

न सिर्फ हमारी इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही है बल्कि हम तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने जा रहे हैं. हमारा PMI इंडेक्स लगातार 50 से ऊपर बना हुआ है, जो पॉजिटिव फैक्‍टर है. साथ ही यहां उत्पादन लागत भी कम है और इंफ्रास्ट्रक्चर भी तेजी से वैश्विक स्तर का हो रहा है.

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