ऐसे कम हो सकते हैं पेट्रोल-डीजल के दाम, सरकार के पास है ये विकल्प

तेल की लगातार बढ़ती कीमतों से सभी परेशान हैं. सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का हवाला दे रही है. बात तो सही है मगर यह समस्या का हल नहीं है. हो सकता है कि ईरान संकट के चलते आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमतें और भी बढ़ सकती हैं. सरकार को इस पर लगाम लगानी ही होगी, मगर सबसे बड़ा सवाल है कैसे?

प्रतीकात्मक फोटो

तेल की लगातार बढ़ती कीमतों से सभी परेशान हैं. सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का हवाला दे रही है. बात तो सही है मगर यह समस्या का हल नहीं है. हो सकता है कि ईरान संकट के चलते आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमतें और भी बढ़ सकती हैं. सरकार को इस पर लगाम लगानी ही होगी, मगर सबसे बड़ा सवाल है कैसे?

दिक्कत ये है कि जब कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम थी तब भी भारत सरकार ने तेल की कीमत कम नहीं की और अपना खजाना भरती रही. अब सरकार के एक केन्द्रीय मंत्री ने दलील दी है कि तेल की बढ़ी कीमतों से जो पैसा सरकार के पास आ रहा है वह सड़क बनाने और अन्य जनहित योजनाओं में खर्च किया जाता है. 

सरकार ने नवंबर 2014 से लेकर फरवरी 2016 तक 9 बार तेल की एक्साईज ड्यूटी बढ़ाई हालांकि उस वक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें कम थीं. इस दौरान सरकार ने समय-समय पर 12 रु 2 पैसे पेट्रोल की कीमतें बढ़ाई जबकि इसी दौरान सरकार ने डीजल की कीमतों में 13 रु 7 पैसे का इजाफा किया. 

एक तरफ सरकार ने 9 बार तेल की कीमतें बढ़ाई हैं वहीं एक बार कम भी की है. 4 अक्टूबर 2017 को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 2-2 रुपए कम किए गए. ऐसे हालात में फिक्की के अध्यक्ष राजेश शाह का बयान महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने कहा कि कुल एक्साईज ड्यूटी पेट्रोल पर 11 रु77 पैसे प्रति लीटर और डीजल पर 13 रु 47 पैसे प्रति लीटर बढ़ाई जा चुकी है जबकि सिर्फ 2 रु प्रति लीटर घटाई गई है. इसलिए एक्साइज ड्यूटी घटाने की गुंजाईश है. 

इस सबके बीच आप यह जान कर चौंक जाएंगे कि अपने देश की तेल कंपनियों के मुनाफे का क्या हाल है. अमूमन ऐसे हालात में इन कंपनियों की बुरी हालत होनी चाहिए मगर ऐसा है नहीं. इंडियन ऑयल का मुनाफा मार्च 2013 में 5 हजार करोड़ था जो कि 2017 में बढ़ कर 19 हजार करोड़ और मार्च 2018 में 21 हजार करोड़ हो गया. यही नहीं, तेल की कीमत बढ़ाने में राज्य सरकारों का भी हाथ होता है महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश में प्रति लीटर 35 फीसदी से अधिक वैट है. 

दरअसल राज्य सरकारें भी तेल पर अपना मुनाफा छोड़ना नहीं चाहती हैं. ऐसे हालत में लोगों को राहत मिले तो मिले कैसे. सबसे पहले केन्द्र और राज्य सरकारों को तेल कंपनियों के साथ बैठक कर अपना मुनाफा थोड़ा थोड़ा कम करना पड़ेगा जिससे कि आम लोगों को राहत मिल सके. वरना जो हालात हैं अंतरराष्ट्रीय बाजार की तेल की कीमतों में आग लगी रहेगी. इस साल सरकार का तेल बिल 20 फीसदी तक बढ़ सकता है. अभी जो तेल का बिल 88 अरब डॉलर है, वह 105 अरब डॉलर तक जा सकता है. ऐसे में राहत की उम्मीद कम ही रखनी चाहिए यदि सरकार अपना मुनाफा कम करती है तो फिर राहत की उम्मीद की जा सकती है.

लेखक NDTV Profit Desk
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