Bisleri: टेनिस कोर्ट पर लिखी गई 4 लाख से 8,000 करोड़ वाली कंपनी की कहानी

बिसलेरी के बिकने की खबरें हैं. चर्चा है कि टाटा कंज्यूमर जल्द इस बड़े ब्रांड पर कब्जा जमा सकता है. 4 लाख रुपये से शुरू हुआ सफर 53 साल बाद इस मकाम पर पहुंचा है.

(Source: Bisleri)

ब्रांड बिसलेरी, टाटा (Tata Consumer) का होगा या नहीं, होगा तो कब होगा, इन सवालों के जवाब फिलहाल दूर हैं लेकिन एक सवाल जिसकी चर्चा अक्सर होती है वो ये कि बिसलेरी (Bisleri) कैसे बन गया 4 लाख रुपये से 8,000 करोड़ का ब्रांड? कैसे बना ये बोतलबंद पानी के कारोबार का सबसे बड़ा खिलाड़ी?

इटली से भारत को जोड़ने वाली कारोबारी कड़ी

कारोबार के नियमों को सिर के बल खड़ी कर देने वाली इस कहानी की शुरुआत भारत में नहीं होती. शुरुआत होती है इटली में. फेलिस बिसलेरी के साथ. कंपनी की नींव फेलिस ने ही रखी थी. वो एक आविष्कारक, कारोबारी और केमिस्ट थे. हालांकि, शुरुआत में उनकी कंपनी का मिनरल वॉटर जैसी चीज से कोई नाता नहीं था बल्कि कंपनी Alcohol में मिलाने के लिए कुछ ड्रिंक्स बनाती थी. 1921 में फेलिस का देहांत हुआ और कंपनी की कमान आई उनके फैमिली डॉक्टर रॉसी के हाथ में.

डॉ. रॉसी के एक दोस्त हुआ करते थे जो पेशे से वकील और बिसलेरी के कानूनी सलाहकार थे. इन्हीं के बेटे खुशरू संतूक वो कड़ी बने जिन्होंने भारत में बिसलेरी को लाने और स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई. 

1965 में बिसलेरी का पहला प्लांट शुरू

साल 1965 में खुशरू संतूक ने ठाणे में बिसलेरी के पहले प्लांट की शुरुआत की. बोतलबंद पानी को बेचना उन दिनों पागलपन की बात थी. लेकिन दोनों को इसमें एक बड़े बिजनेस आइडिया की आहट सुनाई दे रही थी. संतूक को दिखाई दे रहा था कि फाइव स्टार होटल और रिसॉर्ट में सोडा और पैकेज्ड वॉटर एक अच्छा और कामयाब कारोबार साबित हो सकता है. उस वक्त तक आम भारतीयों के बीच बोतल में पानी का ख्याल कहीं नहीं था. 

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...और बिक गया ब्रांड बिसलेरी

कुछ वक्त तक सब ठीक रहा...मतलब करीब 4 साल तक. होटल और रेस्टोरेंट में बोतलबंद पानी की क्रेट्स की एंट्री शुरू हो गई. लेकिन फिर इटली में डॉ. रॉसी के परिवार में कुछ ऐसा हुआ कि खुशरू और रॉसी को कंपनी में अपने शेयर बेचने पर मजबूर होना पड़ा. 

1969 में बिसलेरी, पारले का हो गया. महज 4 लाख रुपये में ये सौदा हुआ. लेकिन पारले ही क्यों, इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है. दरअसल, संतूक टेनिस के शौकीन थे. उन दिनों, 'बॉम्बे' (मुंबई) के जिस क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में खुशरू संतूक टेनिस खेलने जाते थे, वहीं आते थे पारले के मालिकों और चौहान बंधुओं में से एक नरोत्तम चौहान. और इस तरह दो टेनिस पार्टनर, देश में बोतलबंद पानी के कारोबार की कहानी नए सिरे से लिखने में भी पार्टनर बन गए. 

तलाश सोडा की, किस्मत बदली पानी से

2008 में बिजनेस टुडे को दिए एक इंटरव्यू में रमेश चौहान बताते हैं कि उस समय उनका ध्यान पैकेज्ड वॉटर पर इतना नहीं था. बल्कि उन्हें तो ब्रांडेड सोडा की तलाश थी जो उनके पोर्टफोलियो में उस वक्त नहीं था. उनके पास सॉफ्ट ड्रिंक में गोल्ड स्पॉट जैसा पॉपुलर ब्रांड पहले से मौजूद था. अब चाहिए था - एक सोडा ब्रांड. वो कहते हैं कि उन दिनों 5-स्टार होटल में सोडा की अच्छी डिमांड थी. बिसलेरी का सोडा लोकप्रिय था और ये चौहान के बिजनेस प्लान में भी फिट होता था. 

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1993 में पारले ने अपने सॉफ्ट ड्रिंक ब्रांड के राइट्स कोका-कोला को बेच दिए. इसमें गोल्ड स्पॉट के अलावा थम्स अप, माजा, लिम्का और सिट्रा जैसे आइकॉनिक ब्रांड शामिल थे. इसके बाद पारले ने बिसलेरी पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी. आज 122 प्लांट, 5,000 ट्रांसपोर्टेशन ट्रक और 4,500 डिस्ट्रीब्यूटर्स के नेटवर्क के साथ बिसलेरी की बोतल, जहां नजर उठाओ - गली, नुक्कड़, चौराहों की दुकानों से मॉल तक हर जगह नजर आती है. 

पानी के बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी

बोतलबंद पानी के कारोबार की धार फूटी तो ओक भर पीने के लिए धीरे-धीरे बाकी खिलाड़ी भी कूदने लगे. Pepsi और Coke जैसी मल्टीनेशनल कंपनियां Aquafina और Kinley जैसे ब्रांड्स के साथ उतरीं तो देसी कंपनियों के भी कई ब्रांड दिखने लगे. इस मुश्किल मुकाबले के बावजूद बिसलेरी आज भी 60% मार्केट शेयर के साथ लीडर बना हुआ है. 

आज बिसलेरी के बिकने की खबरें हैं. चर्चा है कि टाटा कंज्यूमर जल्द इस बड़े ब्रांड पर कब्जा जमा सकता है. कीमत करीब 8,000 करोड़ रुपये. 4 लाख रुपये से शुरू हुआ सफर 53 साल बाद इस मकाम पर जा पहुंचा है.