Crude Oil: कच्‍चे तेल का भाव 3 महीने के निचले स्‍तर पर, क्‍या हैं कारण और भारत के लिए क्‍यों है फायदे की बात?

भारतीय समयानुसार बुधवार दोपहर 3:35 बजे ब्रेंट क्रूड 0.76% गिरकर $70.50/ बैरल पर ट्रेड कर रहा था.

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कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट जारी है, कारण कि OPEC+ (ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) ने अगले महीने यानी अप्रैल से उत्पादन बढ़ाने की घोषणा की है. इससे बाजार में आपूर्ति बढ़ने और मांग कमजोर होने की संभावना गहरा गई है.

कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिली है. भारतीय समयानुसार बुधवार दोपहर 3:35 बजे ब्रेंट क्रूड 0.76% गिरकर $70.50/ बैरल पर ट्रेड कर रहा था. अगर ये लेवल लगातार और नीचे जाता है, तो कीमतें $65.20 तक गिर सकती हैं, जो 6 दिसंबर का न्यूनतम स्तर था.

CR फॉरेक्स एडवाइजर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित पबारी ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतें गिरावट के साथ तीन महीने के निचले स्तर पर हैं. इससे भारतीय करेंसी को भी सपोर्ट मिला है.

भारत के लिए कैसे फायदेमंद है?

भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का लगभग 85% इंपोर्ट करता है. ऐसे में कच्चे तेल के दाम गिरने से भारत का इंपोर्ट बिल कम होगा, जिससे सरकार के वित्तीय घाटे पर सकारात्मक असर पड़ेगा.

क्रेडिट रेटिंग एजेंजी ICRA के एक आकलन के अनुसार कच्चे तेल में प्रति 1 डॉलर की कमी से भारत इंपोर्ट बिल में 1.1 से 1.3 अरब डॉलर की बचत होती है. यही नहीं ऑयल मार्केटिंग कंपनियों का मुनाफा भी बढ़ता है. अभी तक सरकार और OMCs ने कच्चे तेल में आ रही गिरावट का फायदा आम लोगों तक नहीं पहुंचाया है, मगर उम्मीद है कि ब्रेंट क्रूड लंबे समय तक 70 डॉलर के नीचे रहता है तो कंपनियां और सरकार पेट्रोल-डीजल के दाम घटा सकती हैं.

फ्यूल प्राइस घटी तो ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट भी कम होगी, जिससे खाद्य पदार्थों और अन्य जरूरी वस्तुओं की महंगाई पर लगाम लगेगी. उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी और इंडियन इकोनॉमी को मजबूती मिलेगी.

कच्चे तेल के सस्ता होने से ऑयल इंडस्ट्री के अलावा प्लास्टिक, पेंट, टेक्सटाइल, टायर, पैकेजिंग इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा फायदा होगा. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की लागत कम होगी और कंपनियों का मार्जिन यानी मुनाफा बेहतर होगा.

क्यों गिरे कच्चे तेल के दाम?

OPEC+ ने 138,000 बैरल प्रति दिन का अतिरिक्त उत्पादन करने का फैसला किया है. यह कदम तेल उत्पादन में कटौती को धीरे-धीरे हटाने की शुरुआत मानी जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मांग कमजोर रही, तो आने वाले महीनों में OPEC+ उत्पादन में और बढ़ोतरी कर सकता है.

  • OPEC+ के उत्पादन बढ़ाने का फैसला : अप्रैल 2025 से OPEC+ ने 138,000 बैरल प्रति दिन का अतिरिक्त उत्पादन करने की घोषणा की है. इससे वैश्विक बाजार में तेल की उपलब्धता बढ़ेगी और दाम नीचे आएंगे.

  • अमेरिका और ट्रेड पार्टनर्स में बढ़ता तनाव: अमेरिका ने चीन, कनाडा और मैक्सिको पर नए टैरिफ लगाए हैं, जिससे व्यापार युद्ध गहरा गया है. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने की आशंका है, जिससे तेल की मांग पर नकारात्मक असर पड़ा है.

  • तेल भंडार कम होने के बावजूद सप्लाई बढ़ना: हाल ही में अमेरिकी क्रूड ऑयल इन्वेंट्री में 1.46 मिलियन बैरल की कमी दर्ज की गई, लेकिन इसके बावजूद OPEC+ द्वारा उत्पादन बढ़ाने की घोषणा से सप्लाई बढ़ने की उम्मीद है.

ट्रेड टेंशन से झटका

तेल बाजार को एक और बड़ा झटका अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों चीन, कनाडा और मैक्सिको के साथ बढ़ते तनाव से लगा है. जानकारों का मानना है कि ट्रेड वॉर के चलते वैश्विक आर्थिक ग्रोथ प्रभावित हो सकती है, जिससे तेल की मांग और गिर सकती है.

यदि ये तनाव बढ़ता रहा, तो औद्योगिक गतिविधियों और तेल की खपत में गिरावट देखने को मिल सकती है. विश्लेषकों का कहना है कि कच्चे तेल का बाजार अभी भी 'Sell the Rally' मोड में है, यानी निवेशक किसी भी कीमत में उछाल को बेचने का अवसर मान रहे हैं.

क्या पेट्रोल-डीजल सस्ता होगा?

अगर कच्चे तेल की कीमतें $66-67 प्रति बैरल के स्तर पर बनी रहती हैं, तो इसका असर आने वाले हफ्तों में भारतीय ईंधन बाजार में दिख सकता है. हालांकि, भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें केवल कच्चे तेल के दामों पर निर्भर नहीं करतीं, बल्कि सरकारी टैक्‍स (एक्साइज ड्यूटी और वैट) का भी इसमें बड़ा योगदान होता है. ऐसे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

कुल मिलाकर कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता के बीच ट्रेड वॉर लंबा चलता है, तो तेल की कीमतों में और गिरावट देखी जा सकती है. बाजार अब आगे अमेरिकी सरकारी इन्वेंट्री रिपोर्ट और OPEC+ की अगली रणनीति पर नजर बनाए हुए है.

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