NDTV Profit Exclusive: विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिश! फॉरेन एक्सचेंज नियमों में ढील देने की तैयारी

FEMA नियमों के तहत, FPI को कंपनी की टोटल पेड अप इक्विटी कैपिटल का 10% तक रखने की इजाजत है.

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सरकार नॉन-डेट इंस्ट्रूमेंट्स के लिए फॉरेन एक्सचेंज नियमों को ज्यादा नरम बनाने पर विचार कर रही है. मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के मुताबिक- इक्विटी, म्यूचुअल फंड और रियल एस्टेट जैसे नॉन डेट इंस्ट्रूमेंट्स के लिए नियमों को ज्यादा उदार बनाया जा सकता है.

इन लोगों के मुताबिक सरकार लिस्टे होने के बाद FID (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) को FPI (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) के रूप में दोबारा वर्गीकृत करने की संभावना की भी तलाश कर रही है.

NDTV Profit को सूत्रों ने बताया कि इस कदम से ज्यादा ऑपरेशनल और एडमिनिस्ट्रेटिव लचीलापन मिलेगा, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए प्रक्रिया आसान हो सकती है. ये चर्चा फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (FEMA) नियमों को मौजूदा आर्थिक स्थिति के साथ बेहतर ढंग से जोड़ने और सरल बनाने की कोशिशों का एक हिस्सा है.

अभी क्या नियम हैं

मौजूदा नियमों के मुताबिक - FDI को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में री-क्लासिफाई नहीं किया जा सकता है, हालांकि, अगर कोई FPI किसी भारतीय कंपनी में 10% से ज्यादा की हिस्सेदारी ले लेता है तब इसे FDI के रूप में री-क्लासिफाई किया जा सकता है.

FDI और FPI में फर्क होता है. जब कोई व्यक्ति या कंपनी किसी दूसरे देश के किसी बिजनेस में निवेश करती है, तब ये FDI कहलाता है, जो कि एक लंबी अवधि का निवेश होता है. वो कंपनी देश में एक बिजनेस खड़ा करती है, या किसी बिजनेस में बड़ी हिस्सेदारी लेकर काम करती है. जबकि FPI तब होता है जब कोई निवेशक किसी दूसरे देश की सिक्योरिटीज या शेयर बाजार में निवेश करता है. ये निवेश लंबे समय के लिए नहीं भी हो सकता है. कंपनी जब चाहे अपना निवेश निकालकर जा सकती है.

नवंबर 2024 में, रिजर्व बैंक ने फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट (नॉन-डेट इंस्ट्रूमेंट) नियम, 2019 के तहत FPI के लिए नियम बनाए थे, जिनके निवेश को किसी भारतीय कंपनी में 10% हिस्सेदारी सीमा का उल्लंघन करते ही FDI के रूप में री-क्लासिफाई किया जाएगा.

FEMA के नियम

FEMA नियमों के तहत, FPI को कंपनी की टोटल पेड अप इक्विटी कैपिटल का 10% तक रखने की इजाजत है. अगर कोई FPI इस सीमा को पार कर जाता है, तो अब उसके पास कुछ शर्तों के साथ या तो अपनी हिस्सेदारी बेचने या उन्हें FDI के रूप में री-क्लासिफाई करने का विकल्प है. नए नियम इस एडजस्टमेंट को करने के लिए ट्रेड्स सेटलमेंट से पांच दिनों की समय सीमा की इजाजत देते हैं.

एक सरकारी अधिकारी ने NDTV Profit को बताया कि इसका लक्ष्य विदेशी निवेशकों के लिए निवेश प्रक्रिया को आसान और अधिक आकर्षक बनाना है. इसके अलावा, वित्त मंत्रालय और अन्य फाइनेंशियल रेगुलेटर्स करीब छह महीने की अवधि के दौरान FEMA नियमों में विधायी बदलाव लाने के लिए चर्चा कर रहे हैं.

इस बदलाव का मकसद निवेश प्रक्रिया को सरल बनाना और आने वाले महीनों में विदेशी पूंजी प्रवाह को बढ़ावा देने के इरादे से विदेशी निवेशकों के लिए अधिक लचीलापन मुहैया कराना है.

अधिकारियों के मुताबिक, भारत जुलाई 2024 से नियमों में ढील दे रहा है. अगस्त 2024 में, ये सीमा पार शेयर स्वैप को आसान बनाता है, जिससे लोकल कंपनी और विदेशी फर्म के बीच इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स को जारी करने या ट्रांसफर करने की मंजूरी मिलती है. इसके तहत, भारत के विदेशी नागरिक या OCI की ओर से गैर-प्रत्यावर्तन (non-repatriation) आधार पर किए गए निवेश को अब FDI नहीं माना जाएगा.