बैंकों के AIF में निवेश पर सख्‍ती करने की तैयारी में RBI; ड्राफ्ट नियमों पर मांगी राय, ये प्रस्‍ताव हैं शामिल

इस बीच SEBI ने भी AIFs के निवेशकों और उनके निवेशों को लेकर कड़ी जांच की शर्तें लागू की हैं.

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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंक और वित्तीय संस्थाओं के ऑल्टरनेटिव इनवेस्टमेंट फंड्स (AIFs) में निवेश को लेकर नए ड्राफ्ट दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनका मकसद मौजूदा नियमों को दरकिनार करने की कोशिशों पर रोक लगाना और निवेश में पारदर्शिता लाना है.

केंद्रीय बैंक ने स्टेकहोल्डर्स और आम लोगों से इस ड्राफ्ट पर 8 जून 2025 तक राय मांगी है. RBI की वेबसाइट पर 'Connect 2 Regulate' सेक्शन के जरिए राय भेजी जा सकती है.

क्‍या है नए नियमों का मकसद?

RBI ने दिसंबर 2023 और फिर मार्च 2024 में AIFs में निवेश को लेकर दिशानिर्देश जारी किए थे ताकि कुछ कंपनियों को पुराने कर्जों को नए निवेश के जरिए 'एवरग्रीनिंग' से बचाया जा सके. यानी घाटे में चल रही कंपनियों को नए निवेश के नाम पर जो राहत दिए जाने का एक ढर्रा चला आ रहा था, उसे रोका जा सके.

RBI का कहना है कि अब तक उठाए गए कदमों से बैंकों और वित्तीय संस्थाओं में अनुशासन आया है. इस बीच SEBI ने भी AIFs के निवेशकों और उनके निवेशों को लेकर कड़ी जांच की शर्तें लागू की हैं. इन सब को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक ने सोमवार को नया ड्राफ्ट जारी किया है.

नए ड्राफ्ट में क्या-क्या प्रस्ताव हैं?

  • एक संस्था (Regulated Entitity) किसी AIF स्कीम के कॉर्पस का ज्‍यादा से ज्‍यादा 10% ही निवेश कर सकेगी.

  • सभी रेगुलेटेड एंटिटीज मिलकर किसी एक AIF स्कीम में कुल मिलाकर 15% से अधिक निवेश नहीं कर पाएंगी.

  • यदि कोई संस्था किसी AIF स्कीम में 5% से अधिक निवेश करती है और उस स्कीम ने किसी ऐसी कंपनी में कर्ज (debt) के रूप में निवेश किया है, जिससे वह संस्था खुद कर्जदाता के रूप में जुड़ी हुई है तो उसे उस कंपनी में अपने बकाया कर्ज का 100% प्रोविजनिंग करनी होगी.

  • हालांकि, अगर किसी AIF स्कीम में किसी संस्था का निवेश 5% से कम है, तो उस पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं होगी.

  • कुछ रणनीतिक उद्देश्‍य(Strategic Purpose) वाले AIFs को सरकार से विचार-विमर्श के बाद इन नियमों से छूट दी जा सकती है.

  • ये नियम भविष्य में किए जाने वाले निवेशों पर लागू होंगे, पहले से किए गए निवेशों पर मौजूदा नियम ही लागू रहेंगे.

जानकारों का मानना है कि RBI का यह कदम AIFs के जरिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के जरूरत से ज़्यादा और असुरक्षित निवेश को नियंत्रित करने की दिशा में है. साथ ही, इससे ऐसी स्थितियों को रोका जा सकेगा जहां संस्थाएं अपने ही डूबते कर्जदारों को नए रास्तों से राहत देती हैं.

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