भारत की 10 साल की बॉन्ड यील्ड 2 साल के निचले स्तर पर फिसली, RBI के इस फैसले का असर

RBI की ओर से एक फ्रेमवर्क तैयार किया गया है, जो ये कहती है कि बैंकों को रिटेल डिपॉजिट्स में बेतहाशा निकासी से बचने के लिए कोई विशेष व्यवस्था करने की जरूरत है.

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सरकार की 10 साल की बॉन्ड यील्ड बीते 2 साल में सबसे निचले स्तर चली गई है. दरअसल, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बैंकों में लिक्विडिटी मैनेजमेंट की स्थिति को बेहतर करने के लिए एक ड्राफ्ट सर्कुलर जारी किया है. इसके बाद से ही शुक्रवार को बॉन्ड यील्ड में सुस्ती है और ये अप्रैल 2022 के निचले स्तर पर पहुंच गई है.

2 साल के निचले स्तर पर 10 साल की बॉन्ड यील्ड

RBI की ओर से एक फ्रेमवर्क तैयार किया गया है, जो ये कहती है कि बैंकों को रिटेल डिपॉजिट्स में बेतहाशा निकासी से बचने के लिए कोई विशेष व्यवस्था करने की जरूरत है. 10-वर्षीय के बॉन्ड की यील्ड गुरुवार को 6.95% पर बंद हुई थी और शुक्रवार को ये 6.94% पर खुली है.

रिजर्व बैंक के इस नए सर्कुलर से संभावना जताई जा रही है कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की स्थिति और भी सख्त हो जाएगी. यील्ड कम होने से सॉवरेन पेपर यानी बॉन्ड की डिमांड बढ़ जाएगी. ड्राफ्ट में इन नियमों को 1 अप्रैल, 2025 से लागू करने का प्रस्ताव है.

नए मसौदे का क्या होगा असर?

IIFL सिक्योरिटीज को उम्मीद है कि सख्त LCR (लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो) नियमों का बैंकों पर इस तरह से असर होगा-

  • SLR की डिमांड बढ़ेगी और लोन-टू-डिपॉजिट रेश्यो घटेगा

  • एसेट यील्ड में कमी आएगी

  • रिटेल डिपॉजिट में प्रतिस्पर्धा और डिपॉजिट की ब्याज दरें बढ़ेंगी

  • नेट इंटरेस्ट मार्जिन घटेगा

  • सरकारी बॉन्ड्स की यील्ड घटेगी