Explainer: इस सीजन में हीटवेव ज्यादा खतरनाक कैसे बनती जा रही है? सारे सवालों के जवाब

गर्मी के इस सीजन में कई बातें एकदम असामान्य दिख रही हैं. लगभग पूरे देश में तापमान रिकॉर्ड ऊंचाई पर है. मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि देश में यह लू की अब तक की सबसे लंबी लहर है.

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देश में इस बार गर्मी पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है. इस सीजन में बहुत-कुछ ऐसा हो रहा है, जो एकदम अलग है. खासकर देश के उत्तरी और पूर्वी इलाकों में हालात ज्यादा गंभीर हैं, जहां हीटस्ट्रोक से मौतें हो रही हैं. ऐसे में गर्मी और हीटवेव के बढ़ते प्रकोप को ठीक से समझने की जरूरत है.

हीटवेव क्या है?

सबसे पहले हीटवेव (Heatwave) टर्म पर गौर करते हैं. आम तौर पर इसे 'लू' नाम से जाना जाता है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने हीटवेव के लिए कुछ पैमाने तय किए हैं. अपने देश में जब मैदानी इलाकों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या पहाड़ी इलाकों में 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो यह हीटवेव की स्थिति मानी जाती है. तटीय इलाकों के लिए इसका पैमाना 37 डिग्री सेल्सियस रखा गया है. फैक्टर और भी हैं, लेकिन मोटे तौर पर यही पैमाना है.

इस बार असामान्य क्या है?

गर्मी के इस सीजन में कई बातें एकदम असामान्य दिख रही हैं. लगभग पूरे देश में तापमान रिकॉर्ड ऊंचाई पर है. मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि देश में यह लू की अब तक की सबसे लंबी लहर है. उत्तरी और पूर्वी इलाकों समेत कई क्षेत्रों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया जा रहा है. न्यूनतम तापमान भी सामान्य से ज्यादा देखा जा रहा है. रातें भी ज्यादा गर्म हैं. नतीजतन हीटस्ट्रोक से मौतें भी ज्यादा हो रही हैं.

कई इलाकों में जलाशय सूख गए हैं. नदियों और जमीन के नीचे पानी का स्तर असामान्य रूप से गिर गया है. राजधानी दिल्ली समेत जगह-जगह पानी की किल्लत हो रही है. सिंचाई के लिए पानी की कमी से खेती पर भी बुरा असर पड़ रहा है. बिजली की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. पावर कट भी पहले से ज्यादा देखा जा रहा है.

पहले जो तेज हीटवेव 30 साल में एक बार आती थी, वह जलवायु परिवर्तन के कारण लगभग 45 गुना ज्यादा हो गई है.
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) ग्रुप

हिल स्टेशनों का हाल कैसा?

गर्मी का प्रकोप ऐसा है कि बर्फबारी वाले पर्वतीय इलाके भी गर्मी में झुलस रहे हैं. उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों के हिल स्टेशनों में असामान्य रूप से गर्मी पड़ रही है. उत्तराखंड के देहरादून में अधिकतम तापमान 43 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया. मसूरी में टेंपरेचर 43 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. बारिश की कमी के कारण पौड़ी, नैनीताल जैसे हिल स्टेशन भी लू का सामना कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस के करीब है, जो औसत से 6.7 डिग्री ज्यादा है. जम्मू-कश्मीर के कई इलाकों में तापमान 40 से 44 डिग्री सेल्सियस के बीच है. हालांकि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मॉनसून आने पर ही गर्मी से राहत मिलने की बात कही है.

बेतहाशा गर्मी के पीछे क्या?

ऐसा नहीं है कि दुनियाभर के मौसम वैज्ञानिक इस तरह की गर्मी पड़ने की संभावना से अनजान रहे हों. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने पिछले साल ही कहा था कि इस बात की 66% संभावना है कि अगले 5 साल के दौरान, यानी 2027 तक ग्लोबल वार्मिंग रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच जाएगी. यह बढ़ोतरी पूर्व-औद्योगिक काल (1850-1900) की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी. WMO ने चेताया था कि 98% संभावना है कि अगले 5 साल में से कम से कम 1 साल और 5 साल की पूरी अवधि रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म होंगे.

1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा का क्या मतलब?

दरअसल, काफी लंबी अवधि में पृथ्वी का औसत तापमान बताने के लिए एक आधार तय किया गया. यह आधार है- पूर्व-औद्योगिक युग, यानी 1850 से 1900 के बीच पृथ्वी का औसत तापमान. बता दें कि 20वीं शताब्दी के अंत तक पृथ्वी के औसत तापमान में उस आधार से 0.6 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है. अब इसी के 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के पार जाने की संभावना जताई जा रही है.

क्या भविष्य में और भीषण गर्मी पड़ेगी?

मौजूदा हालात देखकर कहा जा सकता है कि वैज्ञानिकों की संभावना हकीकत का रूप लेगी. आने वाले बरस में हमें और गर्मी झेलनी पड़ेगी. रिसर्च से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही गर्मी की लहरें लंबी, लगातार और ज्यादा तेज हो रही हैं. हीटवेव का दौर ज्यादा लंबा चलने का नतीजा पूरी दुनिया के लिए नुकसानदेह है. इससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है. ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से आने वाले बरस में और ज्यादा बार, ज्यादा लंबे समय तक हीटवेव की आशंका पैदा हुई है.

इस तरह की जानलेवा गर्मी भारत समेत पूरी दुनिया के लिए गंभीर चेतावनी की तरह है. एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला तीसरा बड़ा देश है. देश ने साल 2070 तक उत्सर्जन का स्तर शून्य तक लाने का लक्ष्य रखा है.

हीटवेव से निपटने की तैयारी

हीटवेव से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने सभी अस्पतालों को तैयार रहने का निर्देश दिया है. अस्पतालों में स्पेशल हीटवेव यूनिट, हीटस्ट्रोक रूम, ORS कॉर्नर शुरू करने को कहा गया है. राज्यों से आग और बिजली से सुरक्षा के उपाय करने को कहा गया है.

हीटवेव का सेहत पर असर

देशभर में चिलचिलाती गर्मी और हीटवेव का सेहत पर बुरा असर देखा जा रहा है. किसी आदमी को लू लगने पर बुखार और डिहाइड्रेशन आम है. लू लगने के लक्षण इस तरह हैं:

  • गर्मी से बेहोशी, शरीर में सूजन, आमतौर पर बुखार 39°C यानी 102°F से कम

  • थकान, कमजोरी, चक्कर आना, सिरदर्द, उल्टी, मांसपेशियों में ऐंठन

  • हीटस्ट्रोक का दौरा, कोमा के साथ शरीर का तापमान 40°C यानी 104°F या इससे भी ज्यादा

राहत और बचाव के उपाय


लू से बचाव के लिए लोगों को दिन में तेज धूप में घर से बाहर न निकलने की सलाह दी जाती है. गर्मी के असर से बचने के लिए हल्के और ढीले-ढाले कपड़े पहनना चाहिए. थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी पीते रहना सेहत के लिए अच्छा है. ज्यादा देर तक खाली पेट रहने से भी बचना चाहिए.

अगर आपको लगता है कि कोई लू से पीड़ित है, तो तुरंत इस तरह उसकी सहायता कीजिए:

  • पीड़ित को छाया में या किसी ठंडी जगह पर ले जाएं. कपड़े ढीले कर दें

  • पीड़ित को पंखा झलें. अगर होश में हो, तो उसे पानी दें

  • पीड़ित के चेहरे और शरीर को ठंडे, गीले कपड़े से पोंछते रहें

  • अगर लक्षण ठीक न लगे या व्यक्ति बेहोश हो, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें.

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