डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर 'अश्लीलता और हिंसा' को लेकर बढ़ती शिकायतों के बीच सूचना और प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information & Broadcasting) 'हानिकारक' कंटेंट को कंट्रोल करने के लिए मौजूदा कानूनी प्रावधानों की रिव्यू करने और नए कानूनी फ्रेमवर्क (legal framework) लाने की जरूरतों पर विचार कर रहा है.
संसदीय पैनल को दी गई अपनी प्रतिक्रिया में मंत्रालय ने कहा कि समाज में बढ़ती चिंता है कि 'अभिव्यक्ति की आज़ादी’ (freedom of speech) के संवैधानिक अधिकार का गलत इस्तेमाल करके डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील और हिंसक कंटेंट दिखाया जा रहा है.
मंत्रालय ने भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता में कम्यूनिकेशन एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी पर बनी स्टैंडिंग कमिटी को बताया कि मौजूदा कानूनों के तहत कुछ प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन ऐसे हानिकारक कंटेंट को कंट्रोल करने के लिए एक कड़े और प्रभावी कानूनी फ्रेमवर्क की मांग बढ़ रही है.
मंत्रालय ने कहा, "ये मंत्रालय इन घटनाक्रमों पर गौर कर रहा है और मौजूदा कानूनी प्रावधानों और नए कानूनी फ्रेमवर्क की जरूरत पर विचार कर रहा है."
रणवीर अल्लाहबादिया मुद्दे के बाद कड़े कानून की मांग
मंत्रालय ने कहा कि कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, सांसदों और महिला आयोग जैसे स्टैचूटरी बॉडीज ने इस मुद्दे पर अपनी राय दी है, जो सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर रणवीर अल्लाहबादिया के आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद सुर्खियों में आया.
रणवीर अल्लाहबादिया(Ranveer Allahbadia) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं, और उनकी माफी ने विवाद को कम करने में कोई खास मदद नहीं की. सुप्रीम कोर्ट ने अल्लाहबादिया को गिरफ्तारी से तो शुक्रिया दी, लेकिन उनकी अभद्र टिप्पणियों पर कड़ी आलोचना भी की.
मंत्रालय ने कमिटी को बताया कि वह इस पर उचित विचार-विमर्श के बाद एक डिटेल्ड नोट पेश करेगी और कमिटी की अगली बैठक 25 फरवरी को होगी.
कमिटी ने मंत्रालय से 13 फरवरी को ये पूछा था कि नए टेक्नोलॉजी और मीडिया प्लेटफॉर्म्स के उभरने के बाद मौजूदा कानूनों में क्या संशोधन की जरूरत है, ताकि कॉन्ट्रोवर्शियल कंटेंट को लगाम लगाई जा सके.
ट्रेडिशनल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक कंटेंट को तो स्पेसिफिक कानूनों के तहत कंट्रोल किया जाता है लेकिन इंटरनेट बेस्ड न्यू मीडिया सर्विसेज जैसे OTT प्लेटफॉर्म्स या यूट्यूब के लिए कोई खास रेगुलेटरी फ्रेमवर्क नहीं है, जिससे कानूनों में संशोधन की मांग उठ रही है.
हालांकि कुछ लोगों को ये चिंता है कि नई प्रावधानों का इस्तेमाल कंटेंट को बिना कारण सेंसर करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन अलाहबादिया के मामले जैसे मुद्दों से उठे आक्रोश ने मौजूदा कानूनों में संशोधन करने या नए कानून बनाने के लिए कानूनी फ्रेमवर्क को मजबूत करने की मांग को उठाया है.