ISRO का NVS-01 सैटेलाइट लॉन्च, आम लोगों से लेकर सेना-पुलिस तक, नैविगेशन सिस्टम बड़े काम आएगा

हम-आप लोकेशन आधारित जितनी सेवाओं का इस्तेमाल कर पाते हैं, वो नैविगेशन सिस्टम की बदौलत संभव हो पाता है.

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साल था- 1999. भारत से 3 बार मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान ने एक बार फिर से हमला कर दिया था. कारगिल वॉर के दौरान पाकिस्तानी सैनिक सीमा पर जगह-जगह से घुसपैठ कर रहे थे. भारतीय सेना के लिए ये जानना बेहद जरूरी था कि पाक सेना कहां-कहां से घुसपैठ कर रही है. घुसपैठियों की पोजीशन जानने के लिए भारत ने अमेरिका से मदद मांगी.

आज जिस GPS के जरिये हम लोकेशन शेयर करते हैं, वो GPS सपोर्ट तब अमेरिका ने देने से मना कर दिया था. भारत, कारगिल वॉर तो जीत ही गया, साथ ही नैविगेशन सै​टेलाइट सिस्टम का महत्व और जरूरत दोनों समझ आ गई थी. इसके बाद मिशन शुरू हो चुका था, जिसमें आज एक नया अध्याय जुड़ा.

नैविगेशन के लिए पहला सैटे​लाइट IRNSS-1A एक जुलाई 2013 को लॉन्च किया गया और तब से अब तक ऐसे 7 सैटे​लाइट लॉन्च किए जा चुके हैं. अब भारत ने इसमें एक और मील का पत्थर जोड़ दिया है. आज सोमवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से नैविगेशन सैटेलाइट NVS-01 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया.

इस सैटेलाइट से हमारा NavIC नैविगेशन सिस्टम और मजबूत होगा. नेविगेशन सिस्टम के लिए ऐसी तकनीक कुछ ही देशों के पास मौजूद है. भारत उनमें से एक है.

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4 और NavIC सैटेलाइट स्थापित करेगा भारत

भारत के पास 7 नाविक सैटेलाइट्स थे, जिनमें से 3 खराब हो चुके हैं. इसरो प्रमुख डॉ S सोमनाथ के अनुसार, जब तक तीनों खराब सैटेलाइट को बदला जाता, तब तक बाकी 4 भी बेकार हो जाते. इसलिए इसरो ने 5 'नेक्स्ट जेनरेशन NavIC सैटेलाइट' स्थापित करने का प्लान बनाया. NVS-01 इसी प्लान का पहला हिस्सा है.

इससे क्या-क्या फायदे होंगे?

नेविगेशन सिस्टम के कई फायदे होते हैं. हम-आप लोकेशन आधारित जितनी सेवाओं का इस्तेमाल कर पाते हैं, वो इसी की बदौलत संभव हो पाता है. जैसे- ओला, उबर, रैपिडो जैसी टैक्सी सर्विसेस, जोमैटो और स्विगी जैसी फूड सर्विसेस, ऑनलाइन टिकट बुकिंग, होटल सर्च या फिर गूगल मैप्स आधारित अन्य ऐप्स और सर्विसेस.

फिलहाल ये तमाम सेवाएं अमेरिकी नेविगेशिन सिस्टम 'GPS' पर आधारित है. भारतीय नेविगेशिन सिस्टम NavIC से 'GPS' पर हमारी निर्भरता कम होगी और धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी. नेविगेशन के लिए इन एप्स और सर्विसेस का सब्सक्रिप्शन कॉस्ट कम कर सकता है.

सटीक लोकेशन

देश का अपना नेविगेशन सिस्टम तैयार होने से भारतीय उपमहाद्वीप और आसपास के हिस्सों के सटीक लोकेशन की जानकारी मिल पाएगी. गूगल मैप की लोकेशन एक्यूरेसी 20 मीटर है. यानी आप अपनी लोकेशन शेयर करेंगे तो उसके जरिये कोई आपके 20 मीटर के एरिया में पहुंच पाएगा. वहीं NavIC की एक्यूरेसी 5-20 मीटर है.

अंतरराष्ट्रीय सीमा सुरक्षा

नाविक के इस्तेमाल से नेविगेशन सर्विस मजबूत होगी और GPS पर निर्भरता कम होगी और भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर सिक्योरिटी मजबूत हो पाएगी. 1999 कारगिल वॉर जैसी स्थिति पैदा नहीं होगी. NavIC के जरिये हमारी सेना को दुश्मनों के ठिकानों की सटीक जानकारी मिल पाएगी.

आपदा में राहत

आपदा की स्थिति में, जैसे चक्रवाती तूफानों के दौरान समंदर में फंसे मछुआरों, प्रभावित गांव-शहरों में पुलिस, सेना और बचाव दल को सटीक लोकेशन का पता चल पाएगा. हवाई और जल परिवहन मार्ग का सटीक नेविगेशन संभव होगा.

आम लोगों को सुविधा

आम लोग लोकेशन के लिए GPS की बजाय NavIC का इस्तेमाल कर पाएंगे. कहा जा रहा है कि इससे टूरिज्म सेक्टर को भी बूम मिलेगा. होटल एंड हॉस्पिटैलिटी सेक्टर को इनफॉर्मेटिव और इंटरैक्टिव बनाकर बेहतर सर्विसेस दी जा सकेंगी.

पर्सनल मोबिलिटी, रिसोर्स मॉनिटरिंग, वैज्ञानिक अनुसंधान, सर्वेक्षण, लाइफ सेफ्टी अलर्ट समेत नेविगेशन सिस्टम से जुड़ीं और भी सेवाओं को इससे फायदा मिलेगा.