Gender Equality: क्यों कंपनियों के लिए जरूरी होना चाहिए महिला कर्मचारियों की संख्या बताना?

ऐसी रिपोर्ट है कि सरकार कॉरपोरेट सेक्टर में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने जा रही है.

महिलाओं को बराबरी का हक दिए जाने की बात अक्सर की जाती है, लेकिन ठोस डेटा के अभाव में मुहिम कमजोर पड़ जाती है. आने वाले दौर में यह सीन बदलने की उम्मीद है. अब कंपनियों को महिला कर्मचारियों से जुड़े कुछ जरूरी डेटा शेयर करना पड़ सकता है. ऐसे में इस बात पर भी विचार करना जरूरी हो जाता है कि अगर इस तरह की जानकारियां सार्वजनिक हो जाती हैं, तो इससे महिलाओं को किस तरह फायदा होगा.

कहां से निकली बात?

ऐसी रिपोर्ट है कि सरकार कॉरपोरेट सेक्टर में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने जा रही है. कंपनियों को महिला कर्मचारियों से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां देनी पड़ सकती हैं.

मसलन, किसी कंपनी में महिला कर्मचारियों की भागीदारी किस अनुपात में है? कितनी महिलाएं पेरोल पर हैं? पुरुषों के मुकाबले उनकी औसत सैलरी कितनी है? हालांकि सरकार का यह प्रस्ताव अभी शुरुआती दौर में है. फिलहाल कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय संबंधित पक्षों से राय-मशविरा कर रहा है.

अभी यह साफ नहीं है कि कंपनियों से महिलाओं का डेटा सालाना रिपोर्ट में बताने को कहा जाएगा या पूरी जानकारी वेबसाइट के जरिए सार्वजनिक की जाएगी. यह इस पर निर्भर करेगा कि बातचीत का नतीजा क्या निकलता है.

महिलाओं की भागीदारी कितनी?

सरकार का यह प्रस्ताव ऐसे वक्त में आगे बढ़ता दिख रहा है, जब देश के समूचे कार्यबल में महिलाओं की कम भागीदारी को लेकर चिंता जताई जा रही है. वैसे तो अलग-अलग सेक्टरों में कामकाजी महिलाओं की भागीदारी का स्तर अलग-अलग है. लेकिन कुल मिलाकर महिलाओं की भागीदारी पिछले तीन दशकों में काफी नीचे गिर गई है.

वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की अर्थव्यवस्था 1990 के बाद से 10 गुना से भी ज्यादा बढ़ी है, लेकिन इसके महिला कार्यबल में गिरावट आई है. 1990 में महिलाओं की भागीदारी 30 प्रतिशत थी, जो 2021 में गिरकर 19 प्रतिशत हो गई. महिलाओं का यह वर्कफोर्स देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 17% का योगदान करता है.

अगर ग्लोबल लेवल की बात करें, तो दुनियाभर के वर्कफोर्स में महिलाओं की कुल भागीदारी 50 फीसदी से भी ज्यादा है. जाहिर है कि भारत को यह स्तर हासिल करने के लिए काफी जोर लगाना होगा.

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महिलाओं से भेदभाव बड़ी समस्या

जहां तक कॉरपोरेट सेक्टर की बात है, कंपनियों में नियमित कर्मचारी के रूप में काम पर रखने से लेकर सैलरी-बोनस देने तक में महिलाओं से भेदभाव एक आम समस्या है. दुनिया की नामी-गिरामी कंपनियां और विकसित देश भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं.

हाल ही में फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा (Meta) को लेकर एक रिपोर्ट आई, जिसमें कहा गया कि वह महिला कर्मचारियों को पुरुषों की तुलना में कम वेतन देती है. 'बिजनेस इनसाइडर' के मुताबिक, ब्रिटेन और आयरलैंड में वेतन असमानता पर कंपनी की रिपोर्ट से कई तथ्य सामने आए. साल 2022 में आयरलैंड में मेटा (Meta) में काम करने वाली महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 15.7% कम भुगतान किया गया. वहां बोनस के मामले में अंतर और ज्यादा था. महिलाओं को दिया गया औसत बोनस पुरुषों की तुलना में 43.3% कम था. अगर ब्रिटेन की बात करें, तो वहां आयरलैंड की तुलना में असमानता कम देखी गई.

इन बातों के बावजूद, देश-दुनिया में लैंगिक समानता बढ़ाने की कोशिशें भी नजर आती हैं. हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज (Britannia Industries) 2024 तक महिला कर्मचारियों की तादाद बढ़ाकर 50% तक करने जा रही है. फिलहाल इस कंपनी में 41% महिला कर्मचारी हैं. यह उम्मीद जगाने वाली बात है.

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डेटा से क्या फायदा होगा?

सवाल है कि कंपनियों में महिला कर्मचारियों से जुड़े डेटा के सामने आने का क्या असर होगा? क्या महिलाओं को इसका फायदा मिल सकेगा? जानकारों की राय है कि इससे न केवल महिलाओं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.

भारत को विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए वर्कफोर्स में आधी आबादी की भागीदारी तेजी से बढ़ानी होगी. महिलाओं को हाशिए पर रखकर किसी भी देश के लिए उत्पादकता बढ़ाना संभव नहीं है. जाहिर है, लिंग पर आधारित भेदभाव खत्म किए बिना महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना मुश्किल है. यह भेदभाव तभी दूर हो सकेगा, जब इसके ठोस आंकड़े देश के सामने हों. भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) का भी मानना है कि सटीक डेटा आने से लैंगिक असमानता दूर करने में मदद मिल सकती है. हालांकि महिलाओं की भागीदारी हर सेक्टर में एक जैसी होने की उम्मीद नहीं की जा सकती.

जब कंपनियों के लिए डेटा देना अनिवार्य कर दिया जाएगा, तो इससे उन पर स्वाभाविक रूप से दबाव बढ़ेगा कि वे अपने यहां महिलाओं के लिए बेहतर माहौल बनाएं. कंपनियों में महिला कर्मचारियों का अनुपात कितना हो, इसको लेकर कोई कानून भले न हो, लेकिन भेदभाव रोकने वाला कानून मौजूद है. समान पारिश्रमिक कानून, 1976 कहता है कि कोई भी नियोक्ता अपने संस्थान में वेतन वगैरह देने में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा. पारदर्शिता आने से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम भुगतान करने की प्रवृति पर धीरे-धीरे रोक लगेगी. इसके अलावा, माना जा रहा है कि सार्वजनिक तौर पर अपनी छवि सुधारने के लिए भी कंपनियां महिलाओं को ज्यादा अवसर देंगी.

आज के दौर में महिलाएं अपनी प्रतिभा और लगन के बूते ऊंचा मुकाम हासिल कर रही हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि लैंगिक भेदभाव की दरार कम होने पर महिलाएं देश-दुनिया के सामने नई मिसाल पेश कर सकेंगी.