चीन की नई मुसीबत! रिटेल और थोक महंगाई गिरने से 'डिफ्लेशन' में गई इकोनॉमी

चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स ने कहा कि जुलाई में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स पिछले साल के मुकाबले 0.3% गिर गया है, जो कि फरवरी 2021 के बाद पहली गिरावट है.

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चीन के लिए नई मुश्किल खड़ी हो गई है. दुनिया की इस दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी में डिमांड इतनी ज्यादा घटी है कि अब इस पर डिफ्लेशन का खतरा मंडराने लगा है. दरअसल, चीन ने जुलाई महीने के कंज्यूमर और प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स के आंकड़े जारी किए हैं, दोनों में गिरावट है.

जुलाई में गिरी रिटेल और थोक महंगाई

चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स (NBS) ने कहा कि जुलाई में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स पिछले साल के मुकाबले 0.3% गिर गया है, जो कि फरवरी 2021 के बाद पहली गिरावट है. ब्लूमबर्ग की ओर से कराए गए एनालिस्ट पोल में अनुमान 0.4% का था.

जबकि प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स जिसे थोक महंगाई दर कह सकते हैं, इसमें लगातार 10वें महीने गिरावट आई है, जुलाई में एक साल पहले की तुलना में ये 4.4% गिरा है. हालांकि ये गिरावट अनुमान से थोड़ी कम थी. नवंबर 2020 के बाद यह पहली बार है कि कंज्यूमर और प्रोड्यूसर दोनों की प्राइसेस में गिरावट दर्ज की गई है.

चीन इस वक्त कीमतों में गिरावट के एक अलग ही दौर से गुजर रहा है, क्योंकि कोविड महामारी प्रतिबंधों के खत्म होने के बाद पहली तिमाही में शुरुआती उछाल के बाद कंज्यूमर और बिजनेस डिमांड काफी कमजोर हो गई है. लंबे समय से प्रॉपर्टी बाजार में चल रही मंदी, एक्सपोर्ट की गिरती डिमांड और उपभोक्ताओं की ओर से खर्च में कमी चीन की इकोनॉमी की रिकवरी पर बुरा असर डाल रहे हैं.

रिटेल महंगाई में गिरावट क्यों?

कंज्यूमर्स प्राइसेज में गिरावट क्यों आई, इस पर स्टेटिस्टिक्स ब्यूरो ने कहा है कि इसकी वजह पिछले साल का ऊंचा बेस है. ब्यूरो ने उम्मीद जताई कि ये गिराविट अस्थायी रहेगी और जुलाई में उपभोक्ता मांग में सुधार जारी रहेगा. NBS के मुख्य सांख्यिकीविद् डोंग लिजुआन ने आधिकारिक डेटा के साथ कमेंट किया कि, पिछले साल से हाई बेस का असर धीरे-धीरे कम हो रहा है, CPI में धीरे-धीरे सुधार होने की संभावना है.

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कोर महंगाई दर, जिसमें फूड और एनर्जी की कीमतें शामिल नहीं होती हैं, ये 0.4% से बढ़कर 0.8% हो गई, जो ये दर्शाता है कि इकोनॉमी में डिमांड कम है. कंज्यूमर प्राइस से पता चलता है कि घरेलू सामान, फूड और ट्रांसपोर्ट की कीमतों में गिरावट आई है, जबकि मनोरंजन और शिक्षा जैसी सेवाओं पर खर्च महंगा हो रहा है.

चीन में डिफ्लेशन की स्थिति, बड़ा खतरा

GDP डिफ्लेटर का इस्तेमाल करते हुए - जो कि अर्थव्यवस्था-व्यापी कीमतों का एक माप है, इससे पता चलता है कि चीन साल की पहली छमाही में डिफ्लेशन में था.

डिफ्लेशन की स्थिति में महंगाई में लगातार इतनी गिरावट आती है कि महंगाई दर 0% से भी नीचे यानी निगेटिव में चली जाती है. डिफ्लेशन की स्थिति इकोनॉमी के लिए काफी खतरनाक होती है क्योंकि इससे इकोनॉमिक ग्रोथ रुक जाती है. आमतौर पर ऐसी स्थिति वित्तीय अस्थिरता के वक्त आती है जब गुड्स और सर्विसेज की डिमांड बिल्कुल कम हो जाए और इसके साथ बढ़ी हुई बेरोजागारी की वजह लोगों की परचेजिंग पावर भी खत्म हो गई हो और चीजें जरूरत से ज्यादा सस्ती हो जाएं.

अब चीन क्या करेगा?

अब डिफ्लेशन की स्थिति में बैंक ऑफ चाइना को मॉनिटरी स्टिमुलस जोड़ने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. चीन के केंद्रीय बैंक को इस समय कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा रहा है, जिससे वो इस वक्त सतर्क है, जिसमें कमजोर युआन और इकोनॉमी में बढ़ते कर्ज का स्तर शामिल है. एनालिस्ट्स को उम्मीद है कि PBOC इस साल मॉनिटरी पॉलिसी को आसान बनाने के लिए धीरे धीरे कदम उठाएगी.

पोर्क की कीमतों में गिरावट के कारण 2020 के अंत और 2021 की शुरुआत में उपभोक्ता कीमतों में अस्थायी गिरावट के उलट, इस बार गिरावट एक्सटर्न डिमांड में आई कमी और संपत्ति में गिरावट जैसे लॉन्ग टर्म फैक्टर्स से है. अब डिफ्लेशन की ऐसी स्थिति को चीन अकेला तो कतई नहीं झेलेगा, चीन कम हुई एक्सपोर्ट कीमतों साथ, वो अपने बड़े पैमाने पर माल व्यापार के जरिए बाकी देशों पर डिफ्लेशन का दबाव डालेगा.

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