Budget 2024 | टैक्स स्लैब में बदलाव, डिडक्शंस में बढ़ोतरी और 80C की लिमिट में इजाफा; क्या हैं सैलरीड प्रोफेशनल्स की मांगें

सेक्शन 80C में कई तरह के खर्च और निवेश आते हैं, ऐसे में बढ़ती महंगाई के बीच इसकी लिमिट में भी इजाफे की मांग उठ रही है. जानें क्या हैं सैलरीड प्रोफेशनल्स की मांगें

(प्रतीकात्मक फोटो)

बढ़ती महंगाई के बीच सैलरीड प्रोफेशनल्स को यूनियन बजट से राहत की उम्मीद है. दरअसल ये लोग लंबे वक्त से टैक्स नियमों में छूट की आस लगाए हुए हैं. बीते कुछ सालों में बढ़ती कीमतों के बीच टैक्स स्लैब, डिडक्शन, एग्जेंप्शन लिमिट में बहुत बदलाव नहीं आए हैं. यहां जानते हैं इस बजट से सैलरीड प्रोफेशनल्स की कुछ अहम मांगों के बारे में.

टैक्स स्लैब में बदलाव

सैलरीड टैक्सपेयर्स को इनकम टैक्स स्लैब्स में बदलाव की उम्मीद है. वैसे 2023 में नई टैक्स रिजीम के लिए कुछ बदलाव किए गए थे. छूट की न्यूनतम सीमा 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये कर दी गई थी.

हालांकि पुरानी टैक्स रिजीम में कोई बदलाव नहीं किया गया. अर्नेस्ट एंड यंग के मुताबिक NDA सरकार 6 टैक्स स्लैब ला सकती है. इसमें इनकम टैक्स एग्जेंप्शन की लिमिट 5 लाख रुपये करने की बात भी है. KPMG ने भी नई टैक्स व्यवस्था में एग्जेंप्शन की लिमिट 5 लाख रुपये करने का सुझाव दिया है.

सेक्शन 80C की लिमिट में बढ़ोतरी

इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत कोई भी टैक्सेबल इनकम में 1.5 लाख रुपये तक की छूट ले सकता है. इनके तहत विशेष कैटेगरी के इन्वेस्टमेंट और एक्सपेंडिचर दोनों ही आते हैं.

इसके अलावा स्कूल और कॉलेज फीस, इंश्योरेंस प्रीमियम जैसे अन्य खर्च भी इस कैटेगरी के तहत डिडक्शन के लिए क्लेम किए जा सकते हैं. चूंकि 80C में कई तरह के खर्च और निवेश आते हैं, ऐसे में बढ़ती महंगाई के बीच 80C की लिमिट में भी इजाफे की मांग उठ रही है.

स्टैंडर्ड डिडक्शन में बढ़ोतरी

बढ़ती महंगाई के चलते लोगों के खर्च में भी इजाफा हो रहा है. जाहिर तौर पर व्यक्तिगत खर्च पर मिलने वाले डिडक्शंस की लिमिट को लोग बढ़वाने की उम्मीद कर रहे हैं. बीते कई सालों से ये डिडक्शन 50,000 रुपये की लिमिट पर बरकरार है.

KPMG ने एक नोट में कहा है कि व्यक्तिगत खर्चों में बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए ये उम्मीद की जाती है कि स्डैंडर्ड डिडक्शन को 50,000 रुपये की लिमिट से बढ़ाकर 1 लाख रुपये किया जाए.

KPMG ने कहा है कि लोगों के हाथ में जब ज्यादा पैसा होगा तो वो चीजों को खरीदने पर खर्च करेंगे या फिर सेविंग्स करेंगे. 

EPF फंड में ज्यादा अमाउंट पर कर में छूट

फाइनेंस एक्ट 2021 के मुताबिक, साल भर में EPF फंड में पैसे डालने की सीमा 2.5 लाख रुपये है. इसके ऊपर आपको टैक्स देना होगा. ध्यान रहे ये रिटायरमेंट फंड की तरह काम करता है.

FICCI के मुताबिक भारत जैसे देश में जहां पर्याप्त मात्रा में सोशल सिक्योरिटी उपलब्ध नहीं है, ना ही हमारे देश में यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी सिस्टम है, वहां EPF जैसे रिटायरमेंट फंड में एग्जेंप्शन कैपिंग सही नहीं है. आखिर मिडिल और अपर-मिडिल क्लास इस फंड में पैसे डालकर ही तो अपने रिटायरमेंट की प्लानिंग कर रहा होता है.

नई टैक्स रिजीम और NPS छूट

पुरानी टैक्स व्यवस्था में 80C के सब-सेक्शन 80CCD के तहत 1.5 लाख रुपये तक टैक्स छूट मिलती है. इसके अलावा सेक्शन 80CCD(1B) के तहत 50,000 रुपये की अतिरिक्त टैक्स छूट भी मिलती है, जोकि सिर्फ पुरानी टैक्स व्यवस्था में ही मिलती है. यानी पुरानी टैक्स व्यवस्था के तहत टैक्सपेयर्स को 80CCD के तहत अधिकतम 2 लाख रुपये का टैक्स बेनेफिट मिलता है.

ये बेनेफिट नई टैक्स व्यवस्था को अपनाने वाले टैक्सपेयर्स को नहीं मिलता है, इसलिए टैक्सपेयर्स की मांग की है कि नई टैक्स व्यवस्था में भी 50,000 रुपये के अतिरिक्त कंट्रीब्यूशन को लागू किया जाए. ऐसा करने से नई टैक्स व्यवस्था का अपनाने के लिए लोग प्रोत्साहित होंगे.

नई और पुरानी दोनों ही टैक्स व्यवस्थाओं में टैक्सपेयर सेक्शन 80CCD(2) के तहत NPS में केवल एम्पलॉयर के कंट्रीब्यूशन को ही क्लेम कर सकते हैं, जो कि कर्मचारी की सैलरी का अधिकतम 10% (बेसिक+ DA) होता है. बजट में उम्मीद की जा रही है कि इस लिमिट को बढ़ाकर 12% किया जा सकता है. इसका फायदा सभी सैलरीड क्लास के लिए लोगों को होगा.

HRA रेगुलेशंस को अपडेट करना जरूरी

इसी तरह HRA रेगुलेशंस में भी क्लेम लिमिट को बढ़ाने के साथ-साथ मेट्रो सिटीज के क्लासिफिकेशन में बेंगलुरु, पुणे जैसे शहरों की लाने की भी डिमांड है, ताकि यहां भी 50% तक HRA एग्जेंप्शन क्लेम किया जा सके. इन शहरों में अन्य मेट्रो सिटीज की तरह की घरों का किराया बढ़ा है. जबकि यहां HRA एग्जेंप्शन क्लेम की लिमिट 40% ही है.

होम लोन डिडक्शन को बढ़ाकर 3 लाख रुपये करने की मांग

KPMG का कहना है कि ब्याज दरें बढ़ने और रेगुलेटरी नियमों की वजह से रियल एस्टेट सेक्टर पर काफी दबाव है. इन चुनौतियों को कम करने और घरों की बिक्री बढ़ाने के लिए ये सुझाव है कि सरकार नई डिफॉल्ट टैक्स रिजीम में भी हाउसिंग लोन पर ब्याज के लिए डिडक्शन देने या पुरानी टैक्स रिजीम में डिडक्शन को कम से कम 3 लाख रुपये तक बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है.

KPMG ने एक नोट में कहा है कि व्यक्तिगत खर्चों में बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए ये उम्मीद की जाती है कि स्डैंडर्ड डिडक्शन को 50,000 रुपये की लिमिट से बढ़ाकर 1 लाख रुपये किया जाए.

होम लोन के इंटरेस्ट पर सेक्शन 24(b) के तहत अभी 2 लाख रुपये की टैक्स छूट मिलती है, इसे बढ़ाकर 5 लाख करने की मांग है.

होम लोन प्रिंसिपल को 80C से अलग किया जाए

अभी होम लोन के प्रिंसिपल पर 80C के तहत टैक्स छूट मिलती है. अब 80C की लिमिट ही केवल 1.5 लाख रुपये है, जो कि इंश्योरेंस, स्कूल फीस और तमाम दूसरी टैक्स सेविंग्स से भर जाती है.

ऐसे में होम लोन पर इस सेक्शन के तहत टैक्स छूट का कोई फायदा घर खरीदारों को नहीं मिल पाता है. इसलिए जरूरी है कि होम लोन प्रिंसिपल पर मिलने वाली टैक्स छूट को अलग से दिया जाए, यानी 80C से इसे अलग किया जाए और एक अलग से सेक्शन बनाया जाए.

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