भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) गवर्नर शक्तिकांता दास (Shaktikanta Das) ने कहा कि जहां भारत का ग्रोथ आउटलुक (Growth) मजबूत बना हुआ है और महंगाई (Inflation) अपनी ऊंचाई से घट रही है, लेकिन अब कुछ दूरी तय करनी है और RBI इसको अधूरा नहीं छोड़ सकता है.
दास ने फ्यूचर ऑफ फाइनेंस फोरम 2024 में कहा कि 'महंगाई अप्रैल 2022 की 7.8% के ऊंचे स्तर से घटकर रिजर्व बैंक की सीमा रेखा 4% के करीब आ चुकी है. लेकिन अब भी दूरी तय करनी बाकी है और हम इसको बीच में छोड़ने को जोखिम नहीं उठा सकते हैं.'
ग्रोथ के अनुमान से अच्छे संकेत
शुक्रवार को ये कॉन्फ्रेंस सिंगापुर में ब्रेटन वुड्स कमेटी ने आयोजित की थी. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए RBI ने रियल GDP ग्रोथ 7.2% रहने का अनुमान जताया था. ये ग्रोथ आउटलुक भारत के मैक्रो फंडामेंटल्स, निजी खपत और निवेश की मजबूती को दिखाता है. इस ग्रोथ को मैक्रो-इकोनॉमिक और वित्तीय स्थिरता का माहौल सपोर्ट करता है.
महंगाई पर केंद्रीय बैंक के अनुमान दिखाते हैं कि मार्च में खत्म होने वाली तिमाही में 5.4% से घटकर मौजूदा वित्त वर्ष में इसके 4.5% और 2025-26 में 4.1% पर पहुंचने का अनुमान है. दास ने कहा कि 'पिछले कुछ सालों में दुनिया में मॉनेटरी पॉलिसी को सही समय पर सख्त बनाया गया है. इससे धीरे-धीरे 2024 में मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव आने का रास्ता खुल रहा है.'
उन्होंने कहा कि 'दरों में कटौती को लेकर बाजार की उम्मीदें अब बढ़ रही हैं, खासतौर पर अमेरिकी फेड से पॉलिसी में बदलाव के संकेत मिलने के बाद. लेकिन लंबे समय तक ब्याज दरों के ज्यादा बने रहने से जोखिम हो सकता है.' गवर्नर के मुताबिक, ग्लोबल मैक्रो-इकोनॉमिक आउटलुक अभी संतुलित लग रहा है, लेकिन करीबी अवधि में ये डाउनसाइड की ओर जा सकता है.
मैक्रो-इकोनॉमिक आउटलुक को लेकर कई जोखिम: दास
दास ने कहा कि 'ग्लोबल मैक्रो-इकोनॉमिक आउटलुक को लेकर कई जोखिम और अवसर दिखते हैं. पहला जोखिम है कि ग्लोबल डिस-इन्फ्लेशन का मोमेंटम सुस्त हो रहा है जो मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव करने पर सावधानी बरतने का संकेत दे रहा है. डेट का ज्यादा स्तर, भू-राजनीतिक तनाव, एसेट प्राइस में उतार-चढ़ाव पर उसका असर, ट्रेड पॉलिसी को लेकर अनिश्चित्ता और जलवायु परिवर्तन एक-दूसरे पर निर्भर हैं.'
'केंद्रीय बैंकों को तेजी से लेने चाहिए फैसले'
RBI गवर्नर ने आगे कहा कि 'पॉलिसी अथॉरिटी और केंद्रीय बैंकों को जोखिमों से लड़ने के लिए तेजी से फैसले लेने चाहिए और ढांचागत बदलाव करने चाहिए. उन्होंने वैश्विक वित्तीय स्थिरता को लेकर जोखिमों का भी जिक्र किया जैसे बढ़ी वैल्युएशन, अचानक कोई घटना का होना, उभरती मार्केट इकोनॉमी पर मजबूत डॉलर का असर, नॉन-बैंकिंग इंस्टीट्यूशन्स का प्रोलिफरेशन और बढ़ता प्राइवेट क्रेडिट स्पेस. इसके साथ उन्होंने कहा कि ग्लोबल कमर्शियल रियल एस्टेट सेक्टर में भी तनाव को नजदीकी से देखना होगा.
दास ने कहा कि 'आगे चलकर कई बड़े अवसर हैं जैसे मजबूत फिस्कल, मॉनेटरी और फाइनेंशियल पॉलिसी फ्रेमवर्क पर कैपेटलाइज करना. इससे निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा और सस्टेनेबल ग्रोथ में तेजी आ पाएगी.'