दिल्ली हाई कोर्ट ने गो फर्स्ट के लेसर्स (वो कंपनियां जो लीज पर विमान देती हैं) के पक्ष में फैसला दिया है. इसके तहत उसने लेसर्स को कम से कम महीने में दो बार अपने एयरक्राफ्ट का निरीक्षण करने की इजाजत दे दी है. सिंगल जज बेंच ने बुधवार को इस बात का जिक्र किया कि ये विमान बेहद बहुमूल्य एसेट्स हैं, जिन्हें संरक्षण की जरूरत है. इसलिए उसने लेसर्स को 30 एयरक्राफ्ट पर रखरखाव का काम करने की इजाजत दी है.
जस्टिस तारा वितस्ता गंजू ने डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन यानी DGCA और एयरपोर्ट अथॉरिटीज से भी लेसर्स को उनके एयरक्राफ्ट का निरीक्षण करने की इजाजत देने को कहा है. कोर्ट ने गो फर्स्ट के कर्मचारियों और रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल्स को लेसर्स की मंजूरी के बिना एयरक्राफ्ट का कोई महत्वपूर्ण हिस्सा अलग करने या छेड़छाड़ से मना किया है.
हाईकोर्ट ने 1 जून को गो फर्स्ट (Go First) के लेसर्स और DGCA के बीच विवाद में अपने फैसले को सुरक्षित रखा था. लेसर्स ने एयरलाइन को लीज पर दिए विमानों को डिरजिस्टर करने के लिए DGCA से निर्देश मांगे थे. पिछली सुनवाई में, DGCA ने कहा था कि उसने लेसर्स द्वारा विमानों को डिरजिस्टर करने के लिए किए गए आवेदनों में से किसी को खारिज नहीं किया था.
DGCA ने तर्क दिया था कि केपटाउन कंवेंशन के प्रावधानों के तहत रेगुलेटर को विमानों को डिरजिस्टर करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय संधि पर स्थानीय कानून लागू होते हैं. केपटाउन कंवेंशन के तहत ही लेसर्स और एयरलाइन के बीच संबंधों पर नियम लागू होते हैं और भारत इसमें शामिल है. 22 मई को, नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने NCLT के गो फर्स्ट को इंसॉल्वेंसी में जाने देने के फैसले को सही ठहराया था.
NCLAT ने गो फर्स्ट के लेसर्स को मान्य आवेदन के साथ NCLT के पास जाने का अवसर भी दिया था. हालांकि, कुछ लेसर्स ने गो फर्स्ट को लीज पर दिए गए विमानों को डिरजिस्टर करने के लिए निर्देशों की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.