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म्यूचुअल फंड के रेगुलर और डायरेक्ट प्लान में क्या है अंतर? समझ गए तो पड़ेगा लाखों का फर्क

म्यूचुअल फंड स्कीम के डायरेक्ट प्लान का मतलब ये है कि उसमें पैसे लगाने के लिए  निवेशकों को किसी डिस्ट्रीब्यूटर, एजेंट या ब्रोकर को जरिया बनाने की जरूरत नहीं पड़ती.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी12:17 PM IST, 16 Nov 2023NDTV Profit हिंदी
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म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में इन्वेस्टमेंट करना है तो पहले आपको अपने निवेश के लक्ष्य और रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से सही फंड का चुनाव करना होगा. लेकिन इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात है, जिसकी तरफ कई बार निवेशकों का ध्यान नहीं जाता. और यह बात है चुने हुए म्यूचुअल फंड के रेगुलर और डायरेक्ट प्लान के फर्क. हो सकता है कई नए निवेशकों को यह पता ही न हो कि एक ही म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश करने के लिए वे दो रास्ते अपना सकते हैं -  पहला रेगुलर प्लान और दूसरा डायरेक्ट प्लान. इसलिए पहले जान लेते हैं कि आखिर इनका मतलब क्या है.

क्या है म्यूचुअल फंड का रेगुलर प्लान

किसी म्यूचुअल फंड स्कीम के रेगुलर प्लान में निवेश की प्रक्रिया के दौरान म्यूचुअल फंड संचालित करने वाली एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) और व्यक्तिगत निवेशक के बीच डिस्ट्रीब्यूटर, एजेंट, ब्रोकर, बैंकर या सलाहकार जैसे कई मध्यस्थ (intermediaries) शामिल रहते हैं. यानी इस प्लान में आम निवेशक म्यूचुअल फंड एएमसी से सीधे डील नहीं करते.

म्यूचुअल फंड के डायरेक्ट प्लान का मतलब

म्यूचुअल फंड स्कीम के डायरेक्ट प्लान का मतलब ये है कि उसमें पैसे लगाने के लिए  निवेशकों को किसी डिस्ट्रीब्यूटर, एजेंट या ब्रोकर को जरिया बनाने की जरूरत नहीं पड़ती. वे अपने पसंदीदा म्यूचुअल फंड को संचालित करने वाली एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) के साथ सीधे डील करके निवेश कर सकते हैं.

रेगुलर प्लान यानी ज्यादा खर्च

  • रेगुलर प्लान में AMC और निवेशक के बीच डिस्ट्रीब्यूटर, एजेंट, ब्रोकर जैसे तमाम मध्यस्थ शामिल होने के कारण खर्चे बढ़ जाते हैं, क्योंकि इन सभी को एएमसी की तरफ से फीस या कमीशन दिए जाते हैं.  यह सारे खर्च कंपनी आखिरकार आपके निवेश किए गए पैसों से ही निकालती है.  

  • रेगुलर प्लान में चुकाई जाने वाली डिस्ट्रीब्यूशन फीस और कमीशन की वजह से फंड का एक्सपेंस रेशियो बढ़ जाता है. और एक्सपेंस रेशियो जितना अधिक होगा, स्कीम पर आपका का नेट रिटर्न उतना ही कम हो जाएगा.

डायरेक्ट प्लान यानी बेहतर रिटर्न

  • डायरेक्ट प्लान में निवेशक और एएमसी के बीच कोई डिस्ट्रीब्यूटर, एजेंट या ब्रोकर नहीं होने की वजह से इन मध्यस्थों को दिए जाने वाले कमीशन या फीस की बचत होती है. इसका मतलब ये हुआ कि आपको अपने निवेश पर कम फीस देनी पड़ती है, जिसके कारण आपके निवेश का नेट रिटर्न बढ़ जाता है.

  • आमतौर पर किसी म्यूचुअल फंड स्कीम के रेगुलर प्लान के मुकाबले उसी स्कीम के डायरेक्ट प्लान की नेट एसेट वैल्यू (NAV) की ग्रोथ बेहतर होती है. यानी आपके फंड वैल्यू में वक्त के साथ-साथ बढ़ोतरी होने की संभावना डायरेक्ट प्लान में अधिक होती है.

  • म्यूचुअल फंड स्कीमों के प्रदर्शन से जुड़े पिछले आंकड़े भी यही बताते हैं कि एक ही स्कीम में डायरेक्ट प्लान का रिटर्न आमतौर पर रेगुलर प्लान से ज्यादा रहता है.

उदाहरण की मदद से समझें रिटर्न का अंतर

किसी एक ही म्यूचुअल फंड स्कीम के रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान के औसत सालाना रिटर्न की तुलना करें तो प्रतिशत के रूप में उनमें ज्यादा अंतर नहीं नजर आएगा. लेकिन लंबी अवधि के दौरान यह मामूली अंतर भी आपके कॉर्पस पर किस तरह बड़ा असर डाल सकता है, इसे क्वांट टैक्स प्लान (Quant Tax Plan) के रेगुलर और डायरेक्ट प्लान के लॉन्ग टर्म रिटर्न की मदद से समझते हैं. 10 साल पुरानी इस म्यूचुअल फंड स्कीम का नेट एसेट 4,606 करोड़ रुपये है.

डायरेक्ट और रेगुलर प्लान के फंड वैल्यू में अंतर: 

52,83,924 - 48,85,299 = 3,98,625 रुपये.

इस उदाहरण में  डायरेक्ट और रेगुलर प्लान में निवेश की गई रकम बराबर है और दोनों के औसत सालाना रिटर्न में महज 1.36% (24.5% - 23.16%) का अंतर हो. लेकिन यह मामूली फर्क भी 10 साल के दौरान उनकी फंड वैल्यू में करीब 4 लाख रुपये का अंतर ला देता है. 

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