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यूनिफॉर्म सिविल कोड: BJP के लिए हिन्दुत्व कार्ड है या चुनावी जीत का आधार?

क्या BJP को लगता है कि 2024 के आम चुनाव में UCC गेम चेंजर साबित होगा? या फिर हिन्दुत्व की पैकेजिंग का हिस्सा मात्र है?
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी10:37 AM IST, 01 Jul 2023NDTV Profit हिंदी
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यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर जो आक्रामकता BJP अब दिखा रही है इसके पीछे की वजह क्या है? राजनीतिक वकालत के साथ-साथ विधि आयोग (Law Commission) के द्वारा इस पर राय शुमारी कराई जा रही है ये भी महत्वपूर्ण बात है. क्या BJP को लगता है कि 2024 के आम चुनाव में UCC गेम चेंजर साबित होगा? या फिर हिंदुत्व की पैकेजिंग का हिस्सा मात्र है?

हिंदुत्व की पैकेजिंग में राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370, तीन तलाक उन्मूलन, CAA-NRC के साथ-साथ UCC भी आता है. 2019 के आम चुनाव में किए गये वादों में यही इकलौता बड़ा वादा है जिसे मोदी सरकार ने पूरा नहीं किया है. अब तक मोदी सरकार ने किसी मुद्दे पर रायशुमारी की जरूरत नहीं समझी थी. लेकिन, तीन कृषि कानूनों के वापस लेने और CAA-NRC के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालने के बाद राय शुमारी के प्रति सरकार गंभीर हो गई है.

हिंदुत्व के प्रभाव वाले प्रदेशों में जनाधार

2024 के आम चुनाव में BJP को चुनौती कौन देने जा रहा है और ये चुनौती देश के किस हिस्से से मिलेगी- ये महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसके हिसाब से BJP रणनीति बना रही है. विपक्ष की एकता का आधार बिहार और महाराष्ट्र हैं. इन्हीं राज्यों में UPA मजबूत है और महागठबंधन जैसी सोच है. इसका असर झारखंड में भी दिखता है. UP में भी विपक्ष की एकता होने पर BJP मुश्किल में पड़ सकती है. ये सभी प्रदेश हिंदुत्व की सियासत के लिए अनुकूल रहे हैं.

ये भी सर्वविदित है कि राम मंदिर का मुद्दा या फिर दूसरे हिंदुत्व से जुड़े मुद्दे BJP को हिन्दी पट्टी से बाहर वोट नहीं दिलवा पाते. BJP का जनाधार और सीटें भी हिंदुत्व के प्रभाव वाले प्रदेशों में हैं. गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे प्रदेशों में BJP के पास अधिकांश सीटें हैं. UCC का मुद्दा विपक्ष की एकता में दरार डालने के लिए भी उपयुक्त है. खासतौर से शिवसेना जैसी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने के लिए BJP ऐसे मुद्दे का इस्तेमाल करना चाहती है.

विपक्ष की बैठक, BJP के लिए चिंता का सबब

बिहार की राजधानी पटना में विपक्ष की बैठक से निकली सबसे चिंताजनक बात BJP के लिए ये है कि दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक के नारे ने अगर गति पकड़ ली तो सारी तैयारी धरी की धरी रह जाएगी. इसका मुकाबला भी हिंदुत्व के मुद्दे से ही किया जा सकता है जिसके केंद्र में हो सकता है UCC. इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी (AAP) को विपक्ष से दूर करने में BJP को सफलता मिलती दिख रही है. वहीं शिवसेना भी असहज है.

BJP को रिवर्स पॉलिटिक्स से भी बहुत उम्मीद है. एक बार जब UCC का मुद्दा चढ़ता है तो कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष अलग-अलग तरीके से इसका विरोध करता है. इस विरोध की प्रतिक्रिया ही BJP के लिए सियासी पूंजी है. पूरी सियासत हिन्दू-मुसलमान में बदलती दिखने लगती है. यही कारण है कि BJP के नेता खुलेआम कह रहे हैं कि विरोध के बावजूद UCC को वैसे ही लागू करेंगे जैसे अनुच्छेद 370, CAA, राम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे पर फैसले लिए गये.

पसमांदा मुसलमानों को रिझाने की कोशिश

बिहार में BJP ने नीतीश कुमार के कई करीबियों को अपने साथ कर लिया है. इनमें जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी, चिराग पासवान प्रमुख हैं. इनकी मदद से अगर BJP ने बिहार की 40 में से 30 सीटें भी जीत लेती हैं तो वह खुद को जीता हुआ समझेगी. बीते चुनाव में नीतीश कुमार की JDU के साथ BJP ने 40 में से 39 सीटें हासिल की थीं. इसी तरह महाराष्ट्र में भी BJP को हिन्दुत्व ब्रांड पर ही भरोसा है और इसी आधार पर वह अपनी स्थिति को बचाए रखना चाहती है. अगर बिहार, UP और महाराष्ट्र को हिन्दुत्व कार्ड से BJP ने सींच लिया तो समझ लीजिए कि उसने लोकसभा चुनाव के नतीजे को भी अपनी ओर खींच लिया. UCC पर हो-हल्ला के पीछे मूल वजह यही है.

BJP पसमांदा मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने की सियासत भी कर रही है. इसके लिए भी वह तीन तलाक के बाद UCC का इस्तेमाल करने को लेकर अपनी कमर कसे हुए है. UCC को मुस्लिम महिलाओं की मुक्ति का आधार के तौर पर BJP पेश कर रही है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने UCC के विरोध का फैसला किया है. मुस्लिम नेता मानते हैं कि BJP ये दिखलाना चाहती है कि देखो, हम जो चाहे कर सकते हैं और मुसलमान हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते. हालांकि, इस रुख में कोई तर्क नजर नहीं आता. BJP चुनौती दे रही है कि कोई UCC में कमी बताए. उसका कहना है कि जब बांग्लादेश, पाकिस्तान, मिस्र जैसे देश UCC लागू कर सकते हैं तो हिन्दुस्तान के मुसलमान इसका विरोध क्यों करे?

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