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क्या विपक्ष का 'महागठबंधन' BJP के खिलाफ माहौल बना पाएगा?

नीतीश कुमार का प्रयास भीड़ को दर्शकों में बदलने जैसा है या फिर भीड़ में पाठकों को खोजने जैसा है. एक मकसद के साथ विपक्षी दलों को एक जगह बैठाना कोई आसान काम नहीं.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी04:47 PM IST, 22 Jun 2023NDTV Profit हिंदी
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विपक्ष का मतलब कभी भी एकजुटता नहीं होती, बल्कि बिखराव होता है. इसलिए अक्सर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की जाती रही है. नीतीश कुमार का प्रयास भीड़ को दर्शकों में बदलने जैसा है या फिर भीड़ में पाठकों को खोजने जैसा है. एक मकसद के साथ विपक्षी दलों को एक जगह बिठाना कोई आसान काम नहीं. हालांकि, दर्शकों या पाठकों की अपनी जरूरत ना हो तो वे भीड़ से अलग नहीं हुआ करते. 23 जून को पटना में हो रही बैठक को इसी संदर्भ में देखने और परखने की जरूरत है. तभी हम बैठक की सफलता और असफलता का सही मूल्यांकन कर सकते हैं.

इसमें कोई संदेह नहीं कि राजनीतिक दलों में मतभेद हैं और होते हैं. सत्ता पक्ष के साथ खड़े राजनीतिक दलों को भी एक साथ बने रहने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है और लगातार सत्ताधारी NDA में बिखराव इस बात का सबूत है. फिर विपक्ष में सत्ता का चुम्बकत्व भी नहीं होता, इसलिए विपक्ष में बिखराव से ज्यादा विपक्ष में एकता की संभावना बड़ी खबर बन जाती है. 23 जून को विपक्ष के डेढ़ दर्जन दलों का पटना में इकट्ठा होने की अहमियत यही है.

इकट्ठा होने से आगे की उपलब्धि का इंतजार

महत्वपूर्ण ये है कि बात इकट्ठा होने से आगे बढ़ पाती है या नहीं. अगर ऐसा होता है तो कितनी दूर तक बात बढ़ती है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि मूल मकसद के लिए त्याग करने की भावना इन दलों में कितनी है. इस देश में विपक्ष तभी एकजुट हुआ है जब उसे राष्ट्रीय दल का खम्भा मिला हो. 1977 में जनता पार्टी के रूप में विपक्षी दल स्वयं खम्भा बन गये थे. तब कांग्रेस के खिलाफ वामदल राष्ट्रीय भूमिका निभा सकते थे लेकिन उन्होंने ये राह नहीं चुनी. खामियाजा स्वयं वामदलों ने भुगता. जनता पार्टी जनता की आकांक्षा के अनुरूप सरकार बनाने में तो सफल रही, लेकिन सरकार चलाने में विफल साबित हुई.

80 और 90 के दशक में तीसरे मोर्चे के रूप में विपक्षी एकता का उद्भव जनता दल के गिर्द हुआ था जिसे संभालने वाले वाम और दक्षिण दोनों रहे. मंडल कमीशन के बाद दक्षिणपंथी BJP ने हाथ खींच लिए तो अस्थिरता का दौर आया और फिर BJP के नेतृत्व में तीन सरकारें लगातार बनीं. इसमें छोटे-छोटे दलों की भूमिका अहम थी. आज BJP की सरकार केंद्र में है और कांग्रेस उतनी ही कमजोर या मजबूत है जितनी BJP 1991 में थी. 1991 के आम चुनाव में BJP को 20.11% वोट मिले थे और सीटें थीं 120. वहीं, 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को 19.5% वोट मिले और सीटें मिलीं 54.

कांग्रेस से कुर्बानी मांग रहे हैं ये तीन लीडर

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी, यूपी में अखिलेश यादव- ये तीन बड़े लीडर हैं जो राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस से बड़ी कुर्बानी मांग रहे हैं. आम आदमी पार्टी ने खुले तौर पर कहा है कि पंजाब और दिल्ली हमें दे दे कांग्रेस, हम राजस्थान और मध्यप्रदेश दे देंगे. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के लिए कोई भूमिका ममता बनर्जी नहीं देखतीं और अखिलेश यादव का रुख भी मोटे तौर पर यही है. ये दल कांग्रेस के समर्थक वर्ग का वोट तो चाहते हैं लेकिन कांग्रेस को सीटें देना नहीं चाहते.

RJD, DMK, NCP, शिवसेना जैसी पार्टियों का समूह कांग्रेस के साथ वोट और सीट दोनों की साझेदारी को तैयार हैं. बिहार में महागठबंधन और महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (MVA) वास्तव में विपक्ष की एकजुटता का आधार है. इससे आगे बढ़े यह एकजुटता- इसके लिए नीतीश कुमार मेहनत कर रहे हैं. सिद्धांत रूप में सभी दल इस बात से सहमत हैं कि BJP की केंद्र में सरकार संघीय ढांचे पर खतरा है, केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग और लोकतंत्र को खत्म करने की हद तक सरकार की गतिविधियों के खिलाफ एकजुट होना जरूरी है. यह सहमति इस रूप में महत्वपूर्ण है कि अगर लोकसभा चुनाव में आंकड़े सुधारने के लिहाज से विपक्ष की एकजुटता नहीं हो पाती है तब भी चुनाव बाद सहयोग की गुंजाइश बनी रहे.

UP में विपक्ष की एकता अधूरी

वामदल और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ें तो केरल में इसका नुकसान दोनों दलों को होगा जबकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को इस गठबंधन से डर लगता है. यूपी में समाजवादी पार्टी (SP) और RLD के साथ कांग्रेस आए तो इसके अच्छे नतीजे हो सकते हैं. मगर, BSP के बिना यूपी में विपक्ष की एकता अधूरी ही मानी जाएगी. यूपी में ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) जैसे छोटे दलों का BJP की ओर बिदकना भी विपक्ष की एकजुटता के लिए सुखद बात नहीं है. वहीं, बिहार में जीतन राम मांझी का महागठबंधन छोड़कर BJP में जाना भी 23 जून से पहले विपक्ष को लगा बड़ा झटका है.

कांग्रेस अपने प्रभाव वाले राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल या फिर पंजाब में भी विपक्ष को कितना जगह दे सकती है यह भी महत्वपूर्ण है. फिर भी 23 जून को होने वाली बैठक यह संदेश दे सकती है कि वैकल्पिक सरकार देने के लिए देश का विपक्ष मोटे तौर पर एकजुट है. एक दल भले ही BJP का विकल्प ना बन पाए, मगर विकल्प देने की स्थिति बनी तो सारे मतभेद दरकिनार हो सकते हैं. बैठक से साझा मसौदा या साझा संकल्प निकलकर आता है तो यह बड़ी उपलब्धि होगी.

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