रियल एस्टेट कंपनियों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से बढ़ी 'अपने घर' की उम्मीद

सुप्रीम कोर्ट ने खरीदारों से पैसा लेकर समय पर घर न देने के मामलों में रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनियों डीएलएफ, यूनिटेक, पार्श्वनाथ डेवलपर्स, सुपरटेक को कड़ी चेतावनी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कोई रियायत न देते हुए इन सभी कंपनियों को ब्याज सहित पैसा वापस करने को कहा है. यह पूरा घटनाक्रम पिछले एक माह से खबरों में है.

प्रतीकात्मक फोटो

सुप्रीम कोर्ट ने खरीदारों से पैसा लेकर समय पर घर न देने के मामलों में रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनियों डीएलएफ, यूनिटेक, पार्श्वनाथ डेवलपर्स, सुपरटेक को कड़ी चेतावनी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कोई रियायत न देते हुए इन सभी कंपनियों को ब्याज सहित पैसा वापस करने को कहा है. यह पूरा घटनाक्रम पिछले एक माह से खबरों में है.

देशभर की उपभोक्ता अदालतों में बिल्डरों के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं. फ्लैट में देरी से परेशान कुछ खरीदार संघ बनाकर छोटे डेवलपरों के खिलाफ भी राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में केस लड़ रहे हैं.

वहीं, बिल्डरों के खिलाफ आए कोर्ट के सख्त फैसलों से खरीदार उनके खिलाफ मजबूती से खड़े हो रहे हैं. कई मामलों में तो लोग यूनियन बनाकर अपने हक की आवाज उठा रहे हैं. केंद्र सरकार ने रीयल एस्टेट बिल तो पास कर दिया है लेकिन फिलहाल इसका सभी राज्यों में पालन होने का इंतजार है.
 
हाल में रियल एस्टेट कंपनियों के खिलाफ आए फैसले
 -17 अगस्त 2016 को देश की बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में शुमार यूनिटेक लिमिटेड को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया. सुप्रीम कोर्ट ने गुड़गांव में यूनिटेक के विस्टा प्रोजेक्ट में फ्लैट खरीदारों की रकम लौटाने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने सख्त आदेश में कहा है कि कंपनी को 34 निवेशकों के 15 करोड़ रुपये लौटाने ही होंगे.
 
- 27 अगस्त 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने डीएलएफ को पंचकुला स्थित डीएलएफ गार्डन प्रोजेक्ट के 50 लोगों को नवंबर के अंत तक फ्लैट देने का आदेश दिया, साथ ही नौ फीसदी ब्याज भी अदा करने को कहा. कोर्ट ने यह आदेश राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले के खिलाफ दाखिल बिल्डर की याचिका पर दिया.
 
- 6 सितंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा एक्सप्रेस वे पर बन रहे एमेराल्ड कोर्ट को लेकर सुपरटेक को लताड़ा. कोर्ट ने सुपरटेक के सभी तर्कों को दरकिनार करते हुए कहा कि कंपनी डूब जाए या मर जाए इससे कोई मतलब नहीं. सुपरटेक को किसी भी हालत में 17 खरीदारों को जनवरी 2015 से सितंबर 2016 तक का पैसा लौटाना होगा. इसके अलावा मूल राशि पर 10 फीसदी सालाना दर से ब्याज भी देना होगा. पैसा देने के बाद कोर्ट में चार्ट जमा करना होगा. इस मामले की अगली सुनवाई 25 अक्टूबर को होगी.

- 15 सितंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद स्थित पार्श्वनाथ बिल्डर के एक्सोटिका प्रोजेक्ट को लेकर बिल्डर को फटकार लगाते हुए चार हफ्तों में 12 करोड़ रुपये जाम कराने के आदेश दिए. कोर्ट ने यह आदेश एक्सोटिक प्रोजेक्ट के खरीदारों द्वारा हर्जाना मांगे जाने की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया.
 
रियल एस्टेट में कुछ इस तरह खेला जाता है खेल
बिल्डर प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले भारी-भरकम वादे करके निवेशकों से पैसा ले लेते हैं लेकिन समय पर घर नहीं दे पाते. घर का सपना टूटने और गाढ़ी कमाई लुटाने के बाद लोग अथॉरिटी और बिल्डरों के चक्कर काटने लगते हैं. कई बार तो बिल्डर मनमर्जी से प्रोजेक्ट या फ्लोर प्लान बदल देते हैं. प्लान बदलने के बावजूद ग्राहक को रिफंड देने से इनकार कर दिया जाता है. बिल्डर- बायर एग्रीमेंट एकतरफा बनाए जाते हैं. लीगल नोटिस मिलने के बावजूद बिल्डर रिफंड नहीं करते हैं. 30 फीसदी तक अर्नेस्ट मनी काटने की धमकी दी जाती है. कई डेवलपर और ब्रोकर एक ही फ्लैट कई लोगों को बेचकर खरीदारों और बैंकों को धोखा देते हैं.  
 
आसान नहीं है बिल्डरों के खिलाफ लड़ाई
किसी भी बिल्डर के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से लड़ाई लड़ना आसान नहीं है. खरीदारों को कंज्यूमर कोर्ट से लेकर एनसीडीआरसी तक मुकदमा लड़ना पड़ता है. बड़ी-बड़ी रियल एस्टेट कंपनियां देश की सबसे बड़ी कंज्यूमर अदालत एनसीडीआरसी के फैसले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाती हैं. ऐसे में 'घर का सपना' पाने का संघर्ष और भी मुश्किल हो जाता है. हालांकि ज्यादातर मामलों में सुप्रीम कोर्ट में भी रियल एस्टेट कंपनियों को हार का मुंह देखना पड़ता है.
 
सोशल मीडिया का मिला सहारा
पिछले कुछ समय से एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. पहले एक पीड़ित दूसरे पीड़ित से नहीं मिल पाता था, लेकिन सोशल मीडिया ने इस काम से आसान कर दिया है. लोग अब अपने संघ बनाकर सामूहिक लड़ाई लड़ रहे हैं. इससे घर पाने या अपना फंसा हुआ पैसा वापस पाने की उम्मीद लोगों में बढ़ी है. इस संबंध में नेफोवा (नोएडा एक्सटेंशन फ्लैट ऑनर्स वेलफेयर एसोसिएशन) के अध्यक्ष अभिषेक कुमार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों से न्याय की उम्मीद बढ़ी है. कुमार ने यह भी बताया कि लोग अब फेसबुक, ट्विटर के जरिए संघ बनाकर मिलजुलकर एनसीडीआरसी में अर्जी दायर करते हैं. पहले यह करना बहुत मुश्किल था.

लेखक Chaturesh Tiwari
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