इंडसइंड बैंक का असर! RBI सुपरवाइजर्स ने बैंकों से मांगी फॉरेन करेंसी बॉरोइंग्स पर कंप्लायंस रिपोर्ट

हालांकि बैंक्स हर तिमाही कंप्लायंस रिपोर्ट जमा करते ही हैं, लेकिन रिजर्व बैंक के सुपरवाइजर्स ने बैंकों से उनकी मौजूदा पोजीशन को लेकर रिपोर्ट मांगी है.

Source: Reuters

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के सीनियर सुपरवाइजरी मैनेजर्स (SSM) ने बैंकों से उनकी फॉरेन करेंसी बॉरोइंग्स (Foreign currency borrowings) को लेकर कंप्लायंस रिपोर्ट मांगी है.

ये सुपरवाइजरी मैनेजर्स रिजर्व बैंक एजेंट्स होते हैं, जो अधिकतर सभी बड़े बैंकों में मौजूद होते हैं, जिनका काम होता है बैंकों पर कड़ी नजर रखना, बैंकों के रोजमर्रा के कामकाज की निगरानी करना और ये देखना कि बैंक्स ठीक तरीके से और नियमों के दायरे में रहकर काम कर रहे हैं कि नहीं.

सुपरवाइजर्स ने क्या जानकारियां मांगीं

मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया है कि सुपरवाइजर्स ने बैंकों से कुछ खास जानकारियों के साथ कंप्लायंस रिपोर्ट मांगी है, जिसमें ये बताया गया हो कि बैंक की बुक्स में फॉरेन करेंसी बॉरोइंग्स को कैसे शामिल किया गया है, इसमें से कितना हिस्सा रुपये में कन्वर्ट किया गया है और उनकी हेज पोजीशन की वर्तमान स्थिति क्या है यानी कितना हिस्सा हेज किया गया है.

हालांकि बैंक्स हर तिमाही कंप्लायंस रिपोर्ट जमा करते ही हैं, लेकिन रिजर्व बैंक के सुपरवाइजर्स ने बैंकों से उनकी मौजूदा पोजीशन को लेकर रिपोर्ट मांगी है, जो कि अमूमन ऐसा नहीं होता है. RBI को इस बारे में सवाल पूछा गया है, जिसका जवाब अभी तक नहीं मिला है.

अचानक क्यों मांगी गई कंप्लायंस रिपोर्ट

सूत्रों ने NDTV प्रॉफिट को बताया कि RBI के सुपरवाइजर्स का अचानक से कंप्लायंस रिपोर्ट का मांगना, इंडसइंड बैंक में जो कुछ हो रहा है, उसी को ध्यान में रखते हुए किया गया है. सोमवार को इंडसइंड बैंक ने एक्सचेंजों को बताया कि उसे अपने डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में गड़बड़ियां मिली हैं, जिसके बाद उसके नेटवर्थ पर करीब 2.35% का असर पड़ेगा. इससे बैंक की आय पर 1,500-2000 करोड़ रुपये का प्रभाव देखने को मिल सकता है.

बाद में बैंक के मैनेजमेंट की तरफ से सफाई आई कि फॉरेन करेंसी बॉरोइंग से जुड़े कुछ इंटरनेल ट्रेड्स थे, जो बैंक निवेश पर रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस का उल्लंघन करते हैं, जिन्हें खत्म किया जा रहा था. इसके कारण बैंक को चौथी तिमाही में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा.

एक बात ये भी साफ है कि RBI की गाइडलाइंस बैंक को किसी भी इंटरनल ट्रेड को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित नहीं करते हैं. हालांकि, वे बैंकों से हेजिंग नियमों का पालन करने और अपने पोर्टफोलियो को बाजार के हिसाब से उचित रूप से बनाए रखने की उम्मीद जरूर करते हैं.

एक बड़े निजी बैंक के सीनियर अधिकारी के मुताबिक, ऑडिटर्स किसी भी बैंक की ट्रेडिंग बुक में इस तरह की कमियों को खोजने में सक्षम हैं. ये बहुत कम संभावना है कि इतनी बड़ी पोजीशन महीनों तक किसी की नजर में न आए, इससे पहले कि बैंक को इसके लिए कुछ प्रावधान करना पड़े.