Srikanth Saga: कहानी श्रीकांत बोला और बोलैंट इंडस्‍ट्रीज की, आंख नहीं पर सपने बड़े! सिस्‍टम से लड़े, MIT से पढ़े और खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी

सपने देखने के लिए आंखों की जरूरत नहीं होती. श्रीकांत ने भी सपने देखे. बड़े सपने देखे. और न केवल देखा, बल्कि उन्‍हें पूरा भी किया.

Source: NDTV Gfx/ Insta/Srikanth

10वीं के बाद साइंस से पढ़ाई. 12वीं में टॉप स्‍कोरर. अमेरिका के टॉप संस्‍थान MIT से फेलोशिप पर ग्रेजुएट. फिर कई बड़ी कंपनियों की नौकरी ठुकराकर स्‍वदेश वापसी. खुद की कंपनी खड़ी कर 400 करोड़ की वैल्‍यू के पार पहुंचाया. और फिर बिजनेस एक्‍सीलेंसी में कई बड़े अवार्ड अपने नाम किए.

ये कहानी अपने आप में मोटिवेशनल लगती है. लेकिन जरा रुकिए, क्‍योंकि ये उपलब्धियां किसी आम इंसान की नहीं है, बल्कि गरीब किसान परिवार में जन्‍मे नेत्रहीन (Blind) युवा श्रीकांत की है. श्रीकांत बोला (Srikanth Bolla), यूं ही नहीं देश-दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगों की प्रेरणा बन गए.

हाल ही उनकी लाइफ पर बनी फिल्‍म रिलीज के बाद से चर्चा में बनी हुई है. बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन एक अलग पैरामीटर है, लेकिन जो भी दर्शक सिनेमा हॉल तक पहुंच रहे हैं, वे मोटिवेट होकर एक अलग ही एनर्जी के साथ बाहर निकल रहे हैं.

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सपने देखने के लिए आंखों की जरूरत नहीं होती. श्रीकांत ने भी सपने देखे. बड़े सपने देखे. और न केवल देखा, बल्कि उन्‍हें पूरा भी किया.

फिल्‍म में श्रीकांत के बचपन के दिनों को दिखाते दृश्‍यों में जब उनका झगड़ा, एक दूसरे बच्‍चे के साथ हो जाता है और उनके पिता उसे समझाते हैं तो उनका एक डायलॉग आता है- 'नन्ना, मैं अंधा हूं न. भाग नहीं सकता, केवल लड़ सकता हूं.'

नेत्रहीन श्रीकांत ने अब तक यही तो किया है. उनके जीवन में चाहे कितनी ही मुश्किलें आईं, वो हालात से भागे नहीं, बल्कि जूझे, लड़े और जीत कर उभरे.

बोलैंट इंडस्‍ट्रीज की मोटिवेशनल स्‍टोरी

हैदराबाद बेस्‍ड श्रीकांत की कंपनी बोलैंट इंडस्‍ट्रीज डिस्‍पोजेबल कंज्‍यूमर प्रोडक्‍ट्स और पैकेजिंग इंडस्‍ट्री का बड़ा नाम है. बोलैंट इंडस्‍ट्रीज शुरू करने से पहले, श्रीकांत नेत्रहीन युवाओं को कंप्‍यूटर की ट्रेनिंग देते थे, लेकिन पारंगत होने के बावजूद कंपनियां उन्‍हें काम पर रखने से मना कर देती थीं. ऐसे में प्रमुख तौर पर स्‍पेशली एबल्‍ड यानी दिव्‍यांगों को रोजगार देने के लिए उन्‍होंने खुद की कंपनी शुरू करने की सोची.

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बोलैंट इंडस्‍ट्रीज, जिसे श्रीकांत ने वर्ष 2012 में पायलट प्रोजेक्‍ट के रूप में शुरू किया था, आज इसके 5 मैन्‍युफैक्‍चरिंग यूनिट्स हैं. कंपनी की वैल्‍यू 500 करोड़ रुपये के करीब है, जबकि निवेशक के तौर पर इसमें रतन टाटा (Tata Group), सतीश रेड्डी, SP रेड्डी (Reddy Laboratories), श्रीनि राजू (iLabs) और अन्‍य दिग्‍गज जुड़े हैं.

फिल्‍म श्रीकांत ये भी दिखाती है कि उनके स्‍कूली दिनों में प्रभावित हुए पूर्व राष्‍ट्रपति APJ अब्‍दुल कलाम उनके स्‍टार्टअप में पहले इन्‍वेस्‍टर थे, जबकि बाद में कई जगहों से ठोकर खाने के बाद श्रीकांत को रवि मंता (Ravi Mantha) का साथ मिला.

क्‍या करती है श्रीकांत की कंपनी?

कंपनी इको-फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल प्रोडक्‍ट्स बनाती है. इनमें डिस्‍पोजेबल प्‍लेट्स, पेपर कप-प्‍लेट्स, डिनरवेयर, फूड ट्रेज, लीफ प्‍लेट्स और अन्‍य तरह के पेपर प्रोडक्‍ट्स शामिल हैं. इसके साथ ही कंपनी डिस्‍पोजेबल प्रोडक्‍ट्स बनाने वाले मैन्‍युफैक्‍चरर्स को प्रिंटिंग प्रोडक्‍ट्स, एडहेसिव और इंटरमीडिएट प्रोडक्‍ट्स मुहैया कराती है.

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श्रीकांत अभी कंपनी के CEO हैं, जबकि रवि CFO और डायरेक्‍टर की भूमिका में हैं. श्रीकांत के जीवन को दिशा देने वालीं और हर मुश्किल में साथ निभाने वालीं उनकी शिक्षक स्‍वर्णलता कंपनी COO और डायरेक्‍टर हैं. एक अन्‍य डायरेक्‍टर SP रेड्डी, कंपनी में स्‍ट्रैटजी एडवाइजर हैं.

'अंधा है, इसे मार डालो, वरना...'

साल था- 1992. आंध्रप्रदेश के मचिलीपटणम गांव में किसान परिवार दामोदर राव और वेंकटम्मा के घर बेटा पैदा हुआ. उस दौर में बेटा पैदा होना बड़ी खुशखबरी होती थी, लेकिन दामोदर के घर पैदा हुआ बच्‍चा तो नेत्रहीन था. गांव के लोग बोले- 'अंधा है, इसे मार डालो, नहीं तो जिंदगी भर के लिए बोझ हो जाएगा.'

माता-पिता ऐसा करते भला! रोते-रोते लोगों को दुत्‍कारा और बच्‍चे को सीने से लगा लिया. श्रीकांत बड़े होने लगे. किसानी में मदद कर नहीं पाते. पिता ने सोचा- पढ़कर ही आगे बढ़ सकता है. श्रीकांत गांव में ही पढ़ने लगे. उन्‍हें कई किलोमीटर पैदल चल कर स्‍कूल जाना पड़ता था और अक्‍सर उन्‍हें आखिरी बेंच पर बैठना पड़ता था.

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बाद में उन्‍हें हैदराबाद स्थित नेत्रहीनों के बोर्डिंग स्कूल में दाखिला मिल गया. ये उनकी जिंदगी का बेहद अहम मोड़ साबित हुआ. यहां शिक्षक के रूप में उन्‍हें स्‍वर्णलता मिली, जिन्‍होंने उनके जीवन को नई दिशा दी.

बोर्ड से लड़कर साइंस में लिया दाखिला

10वीं में श्रीकांत ने 90+ स्‍कोर किया. वे साइंस से पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन अच्‍छे स्‍कोर के बावजूद उन्‍हें दाखिला नहीं मिला. कारण कि सिलेबस में चार्ट, डायग्राम और अन्‍य तकनीकी चीजें शामिल होने के चलते नेत्रहीनों को साइंस पढ़ने की अनुमति नहीं थी.

अपनी टीचर स्‍वर्णलता के साथ उन्‍होंने आंध्र प्रदेश एजुकेशन बोर्ड के खिलाफ केस ठोंक दिया. कोर्ट उनकी योग्‍यता और उनके तर्कों से संतुष्‍ट हुआ और इस तरह न केवल उन्हें साइंस में दाखिला मिला, बल्कि सभी नेत्रहीनों के लिए रास्‍ता खुला.

नेत्रहीन होते हुए भी श्रीकांत ने तैराकी सीखी, शतरंज और खास आवाज वाली गेंद से क्रिकेट खेलना भी सीखा. श्रीकांत की पहचान स्‍पेशली एबल्‍ड शतरंज और क्रिकेट में नेशनल लेवल प्‍लेयर के तौर पर भी है.

IITs ने ठुकराया तो MIT, अमेरिका पहुंच गए

12वीं में एक बार फिर श्रीकांत कॉलेज टॉपर बने, लेकिन 98%+ स्‍कोर करने के बावजूद देश की IITs ने उनका एडमिशन लेने से मना कर दिया. श्रीकांत ने फॉरेन यूनिवर्सिटीज के फॉर्म भरे और कई संस्‍थानों ने उनका दिल खोल कर स्‍वागत किया.

अमेरिका की प्रतिष्ठित मैसाचुसेट्स इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (MIT) ने उन्‍हें फेलोशिप ऑफर की. बाधाओं को पार करते हुए श्रीकांत अमेरिका से ग्रेजुएट हुए. श्रीकांत उन दिनों को अपने जीवन का अनमोल हिस्‍सा मानते हैं.

अब्‍दुल कलाम से अनोखा रिश्‍ता

श्रीकांत जब 9वीं में थे, तब एक कार्यक्रम में पूर्व राष्‍ट्रपति APJ अब्‍दुल कलाम भी पहुंचे थे. उन्‍होंने बच्‍चों से पूछा कि वे बड़े होकर क्‍या बनना चाहते हैं. किसी ने डॉक्‍टर-इंजीनियर, किसी ने स्‍पेस साइंटिस्‍ट बनने की बात कही. श्रीकांत का जवाब था- वे देश का पहला नेत्रहीन राष्‍ट्रपति बनना चाहते हैं. कलाम इस जवाब से बेहद प्रभावित हुए थे. बाद में श्रीकांत कलाम के 'लीड इंडिया 2020: द सेकेंड नेशनल यूथ मूवमेंट' के मेंबर बने.

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स्‍वदेश लौटे, नि:शक्‍तों के लिए खड़ी की कंपनी

अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके पास कई बड़ी कंपनियों में नौकरी के ऑफर थे, लेकिन अपनी तरह के नेत्रहीनों के लिए कुछ करने के इरादे से श्रीकांत स्‍वदेश लौटे. हैदराबाद में उन्‍होंने अपनी टीचर के साथ नेत्रहीनों के लिए कंप्‍यूटर इंस्‍टीट्यूट खोला. लेकिन वहां प्रशिक्षित युवाओं को कहीं नौकरी नहीं दिए जाने के बाद उन्‍होंने खुद की कंपनी खोली.

10 लाख रुपये के निवेश के साथ शुरू हुई बोलैंट इंडस्‍ट्रीज आज करीब 500 करोड़ रुपये के मार्केट वैल्‍यू वाली कंपनी बन चुकी है. उनकी कंपनी में नि:शक्‍त कर्मचा‍रियों को प्राथमिकता दी जाती है. श्रीकांत की शिक्षक रहीं स्‍वर्णलता (बोलैंट की COO) ऐसे कर्मियों को प्रशिक्षित करती हैं.

...और इश्‍क मुकम्‍मल हुआ

श्रीकांत की काबिलियत देख कर पहले नेत्रहीन छात्र के रूप में जब MIT ने फेलोशिप दी और वे चर्चा में आए तो स्‍वाति भी उनसे प्रभावित हुईं. सोशल मीडिया से हुआ परिचय धीरे-धीरे दोस्‍ती में तब्‍दील हुआ और जब स्‍वाति अपनी पढ़ाई के लिए अमेरिका गईं तो दोनों के बीच की दोस्‍ती प्‍यार में तब्‍दील हुई. आखिरकार 2015 में शुरू हुई लव स्‍टोरी 2022 में शादी के रूप में मुकम्‍मल हुई. माता-पिता बनने के बाद श्रीकांत और स्‍वाति बेहद खुश हैं.

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कई बड़े अवार्ड अपने नाम किए

श्रीकांत का अब तक का जीवन उपलब्धियों से भरा रहा है. अप्रैल 2017 में श्रीकांत बोला को फोर्ब्स मैगजीन ने 'एशिया 30अंडर30' उद्यमी लिस्‍ट में शामिल किया था. श्रीकांत इस लिस्‍ट में शामिल 3 भारतीयों में से एक थे.

प्रतिष्ठित मीडिया ग्रुप NDTV ने 2015 में श्रीकांत को इंडियन ऑफ द ईयर पुरस्‍कार से नवाजा.

इसके बाद कई अन्‍य मीडिया हाउसेस की ओर से उन्‍हें यंग चेंज मेकर ऑफ द ईयर, नव नक्षत्र सम्मान, इमर्जिंग एंटरप्रेन्‍योर ऑफ द ईयर समेत कई अवार्ड मिले.

93वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस में उन्‍होंने ऑल इंडिया लेवल पर दूसरा पुरस्‍कार अपने नाम किया. JCI इंडिया की ओर से भी बिजनेस कैटगरी में उन्‍हें आउटस्‍टैंडिंग पर्सन का पुरस्‍कार मिल चुका है. श्रीकांत को UK, मलेशिया, युगांडा और अन्‍य देशों में भी सम्‍मानित किया जा चुका है.

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2019 में केंद्र सरकार ने नेशनल एंटरप्रेन्‍योरशिप अवार्ड से नवाजा. साल 2021 के लिए श्रीकांत को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा यंग ग्लोबल लीडर चुना गया.

श्रीकांत सितंबर 2016 में स्‍थापित सर्ज इम्पैक्ट फाउंडेशन के डायरेक्‍टर भी हैं, जिसका लक्ष्‍य देश में व्यक्तियों और संस्थानों को 2030 तक सस्‍टेनेबल डेवलपमेंट गोल्‍स को प्राप्त करने में सक्षम बनाना है.

(Source: Bollant Industries, MIT News, Srikanth Social Media Handles, Tracxn, Forbes, DD, PTI)

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