भारत पुराने फंसे कर्ज की समस्या से निपटने के लिये कर रहा ठोस प्रयास: फिच

फिच रेटिंग ने शनिवार को कहा कि भारतीय प्रशासन बैंकिंग क्षेत्र में पुराने फंसे कर्ज की समस्या से निपटने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है लेकिन उसकी इस पहल से निकट भविष्य में बैंक के मुनाफे पर असर पड़ सकता है.

फिच रेटिंग ने शनिवार को  कहा कि भारतीय प्रशासन बैंकिंग क्षेत्र में पुराने फंसे कर्ज की समस्या से निपटने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है लेकिन उसकी इस पहल से निकट भविष्य में बैंक के मुनाफे पर असर पड़ सकता है. एजेंसी ने कहा है कि अगले कुछ सालों के दौरान बैंकिंग क्षेत्र में फंसे कर्ज की समस्या केन्द्र में बनी रहेगी और उनमें नुकसान बढ़ने की स्थिति में पहले से कमजोर कुछ बैंकों को यदि अनुमानित पूंजी नहीं मिलती है तो वह न्यूनतम पूंजी जरूरत की सीमा में भी नहीं रह पाएंगे. भारत में हाल में जो भी नियामकीय कदम उठाए गए उनसे यही आभास मिलता है कि प्रशासन बैंकों में फंसे कर्ज की समस्या से निपटने के लिए अधिक मजबूत प्रयास कर रहा है.

फिच ने कहा, "निकट भविष्य में इसके लिये बैंकों को अधिक प्रावधान करना होगा और इसका मतलब होगा कि बैंकों के मुनाफे पर लगातार दबाव बढ़ेगा." कुल मिलाकर सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र में स्थिति को साफ सुथरा बनाने का जो काम शुरू किया है, उससे क्षेत्र में मजबूती आएगी. बैंकों का करीब 9 लाख करोड़ रुपये से लेकर 12 लाख करोड़ रुपये तक की राशि कर्ज में फंसी पड़ी है. इसमें पुराना कर्ज, पुनर्गठित ऋणऔर कंपनियों को मिलने वाला अग्रिम शामिल है जिनकी समय पर वसूली नहीं हो पा रही है.  मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमणियन ने कहा कि नीतिगत फैसलों से पहले विशेषज्ञों के आकलन महत्वपूर्ण होते हैं. लेकिन एक बार निर्णय होने के बाद यह देखने वाली बात होती है कि किस तरह विश्लेषण को लेकर बोली बदलती है. विश्लेषक आधिकारिक फैसले को तर्कसंगत ठहराने के लिये पीछे हटने लगते हैं.

आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकान्त दास ने भी पिछले सप्ताह वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा था कि उनकी रेटिंग जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है. उन्होंने रेटिंग एजेंसियों को आत्म निरीक्षण करने की हिदायत दे डाली. उन्होंने कहा कि जो सुधार शुरू किए गए हैं उन्हें देखते हुए निश्चित ही रेटिंग में सुधार का मामला बनता है. भारत पहले भी रेटिंग एजेंसियों के तौर-तरीकों पर सवाल उठाता रहा है. भारत का कहना है कि भुगतान जोखिम मानदंडों के मामले में दूसरे उभरते देशों के मुकाबले भारत की स्थिति अधिक अनुकूल है.

विशेष रूप से एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स पर सवाल उठे हैं जिसने बढ़ते कर्ज और घटती वृद्धि दर के बावजूद चीन की रेटिंग को एए- रखा है. वहीं भारत की रेटिंग को कबाड़ या जंक से सिर्फ एक पायदान उपर रखा गया है. मूडीज और फिच ने भी इसी तरह की रेटिंग दी है. इसके लिए इन एजेंसियों ने एशिया में सबसे अधिक राजकोषीय घाटे का उल्लेख किया है जिससे भारत की सॉवरेन रेटिंग प्रभावित हुई है.

मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमणियन ने कहा कि नीतिगत फैसलों से पहले विशेषज्ञों के आकलन महत्वपूर्ण होते हैं. लेकिन एक बार निर्णय होने के बाद यह देखने वाली बात होती है कि किस तरह विश्लेषण को लेकर बोली बदलती है. विश्लेषक आधिकारिक फैसले को तर्कसंगत ठहराने के लिये पीछे हटने लगते हैं.  

 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

लेखक Bhasha
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