...तो मिसाइल, हेलीकॉप्टर और पनडुब्बियां भी बना सकती है अनिल अंबानी की रिलायंस कंपनी

अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप ने भले ही कभी मिलिट्री हेलीकॉप्टर, मिसाइल सिस्टम या पनडुब्बियां बनाने के काम में हाथ नहीं डाला हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कारोबारी जगत का यह बेहद बड़ा नाम मिलिट्री से जुड़े सामान आदि बनाने के लिए दिए जाने वाले कॉन्ट्रेक्ट्स को हासिल कर ही नहीं सकता।

अनिल अंबानी (फाइल फोटो)

अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप ने भले ही कभी मिलिट्री हेलीकॉप्टर, मिसाइल सिस्टम या पनडुब्बियां बनाने के काम में हाथ नहीं डाला हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कारोबारी जगत का यह बेहद बड़ा नाम मिलिट्री से जुड़े सामान आदि बनाने के लिए दिए जाने वाले कॉन्ट्रेक्ट्स को हासिल कर ही नहीं सकता।

रिलायंस की राह में हैं कुछ अड़चने भी...
वरिष्ठ पदाधिकारियों की मानें तो अनिल अंबानी की इस कंपनी ने 84 हजार करोड़ के सरकारी ठेकों के लिए बोली लगाई है। हालांकि अभी तक कंपनी के हाथ इनमें से कोई कॉन्ट्रेक्ट लगा नहीं हैं। ऐसे समय में जब पिछले दशक भर में कंपनी ने कई नए प्रॉजेक्ट्स में हाथ डाला लेकिन उनमें से कुछ में असफलता का मुंह भी देखना पड़ा, रिलायंस ग्रुप के लिए डिफेंस के क्षेत्र में इस तरह से कूदना एक जोखिमभरा कदम है। कंपनी को इस बाबत सफलता मिलती है या नहीं, यह दो बातों पर निर्भर करेगा। पहली बात यह कि कंपनी की रणनीति सरकारी अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को किस हद तक यह 'समझाने' में सफल हो पाती है कि वह जटिल उपकरण बना सकती है। दूसरा यह भी महत्वपूर्ण कारक साबित होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी देश की बेहद धीमी खरीद फरोख्त की प्रक्रिया को किस प्रकार रफ्तार दे पाते हैं और दे भी पाते हैं या नहीं...।

अनिल अंबानी ने यह कह चुके हैं कि इस क्षेत्र में कंपनी का गैरअनुभवी होना अड़चन बन रहा है। डिफेंस पर हुई 'मेक इन इंडिया' समिट के दौरान मार्च में उन्होंने कहा था- हमने पाया कि टॉप-मोस्ट लेवल पर प्रतिबद्ध सुधारात्मक माइंडसेट होने के बावजूद नए खिलाड़ियों को गैर अनुभवी होने के चलते कई अवसर नहीं मिल रहे हैं। पीएम मोदी ने डिफेंस को मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत महत्वपूर्ण घटक रखा है। किसी भी डिफेंस संबंधी कॉन्ट्रेक्ट के लिए, वह चाहते हैं कि विदेशी कंपनियां स्थानीय कंपनियों के साथ टाई-अप करें, तकनीक का हस्तांतरण करें और कुछ विनिर्माण भारत में भी करवाएं।

रिलायंस को उम्मीद लेकिन..
अगले दस सालों में सरकार 250 बिलियन डॉलर डिफेंस कॉन्ट्रेक्ट्स के जरिए दांव पर लगाएगी ताकि मिलिट्री के पुराने पड़ रहे उपकरणों को आधुनिकतम किया जा सके। रिलायंस डिफेंस के चीफ ऐग्जेक्यूटिव आरके ढींगरा को इन ठेकों में से 'एक बड़ा हिस्सा' कंपनी के पास आने की उम्मीद है। रिलायंस के इस कदम और कोशिश को रक्षा क्षेत्र में कोई बहुत उत्साह से नहीं लिया जा रहा है। डिफेंस उपकरणों की खरीद फरोख्त से जुड़े सेना के एक अधिकारी ने बताया, रिलायंस जहाज से लेकर विमान तक हरेक चीज बना लेता चाहती है। साब इंडिया टेक्नॉलजीज के हेड जैन विदरस्ट्रोम का कहना है- इस क्षेत्र में तुरत-फुरत पैसा बनाने का विकल्प है नहीं। इस क्षेत्र में काफी अनुभव, हाई टेक कल्चर, निवेश और एक लंबी अवधि की कारोबारी योजना की जरूरत होती है।

इसके बावजूद साब और रिलायंस भारतीय नौसेना और कोस्टगार्ड के लिए अगली पीढ़ी के कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम बनाने के लिए साथ काम कर रहे हैं। रूस के एक राजदूत ने नाम न बताने की शर्त पर अनौपचारिक तौर पर बताया कि हाल ही में 200 कामोव हेलीकॉप्टर के सौदे के लिए रिलायंस ने रूसी कम्पनी से साझेदारी कर निविदा दी थी, लेकिन रिलायंस की अनुभवहीनता और संवेदनशील तकनीक और इंटलेक्चुअल प्रापर्टी मामलों की क्षमता पर सवाल उठाए गए थे। इसी वजह से 900 मिलियन डॉलर का सौदा देशी कम्पनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स को मिल गया था।

सैंकड़ो एकड़ जमीन खरीद चुका है रिलायंस, कर चुका है कुछ द्विपक्षीय समझौते भी
अंबानी ने पिछले साल ही रक्षा क्षेत्र में कदम रखा जब उन्होंने गुजरात की नौसेना जहाज और ऊर्जा खोजी जहाज बनाने वाली पिपावाव डिफेंस एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग कम्पनी लिमिटेड को 2000 करोड़ रुपये में खरीदा। तब से रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड के तहत रिलायंस, एरोस्पेस सुविधाओं और शिपयार्ड उपकरण उत्पादन के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद चुका है।

रिलायंस सरकारी रक्षा सौदे हासिल करने के लिए इजरायल की रफाल एडवांस डिफेंस सिस्टम्स सहित छह से ज्यादा विदेशी कम्पनियों से द्विपक्षीय समझौते कर चुकी है। इजरायली रक्षा इंडस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक रफाल का मकसद टेंडर हासिल करना है जिसमें रिलायंस मिसाइल के पुर्जे और अन्य उपकरणों का उत्पादन करेगी।

पिपावाव शिपयार्ड की वजह से रिलायंस के नौसेना उपकरण व्यवसाय की शुरुआत हो गई है। योजना सरकार के 7.5 बिलियन डॉलर के सबमरीन सौदे हासिल करने की है। सरकार नौसेना के पुराने हो चुके बेड़े को बदलना चाहती है जिससे वह चीन के अत्याधुनिक बेड़ों का मुकाबला कर सके। अंबानी की भविष्य में न्यूक्लियर सबमरीन सौदे हासिल करने की भी योजना है।

लेखक Thomson Reuters
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