डेलॉयट (Deloitte ) एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार भी वो अपनी नाकाबिलियत के कारण चर्चा में है. नाइजीरियाई कंपनी टिंगो (Tingo) के $470 मिलियन के घोटाले में अमेरिकी शेयर मार्केट रेगुलेटर SEC की नजर इंटरनेशनल ऑडिटर डेलॉयट पर है. SEC ने ऑडिटर पर गंभीर सवाल उठाए हैं. सिर्फ अमेरिका ही नहीं UK, चीन और भारत समेत कई देशों ने डेलॉयट के कामकाज पर सवाल उठाए हैं. यही नहीं कई देशों में डेलॉयट पर बड़े-बड़े जुर्माने लगे हैं, साथ ही इसके खिलाफ जांच भी हो रही है. खासकर उन कंपनियों के मामले में जिनका इसने ऑडिट किया था और जो दिवालिया हो गई हैं.
डेलॉयट का ताजा कारनामा
शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) ने जून में नाइजीरिया के टिंगो ग्रुप पर एक रिपोर्ट निकाली. इसका नाम था "फेक फार्मर, फोंस और फाइनेंशियल्स- द नाइजीरियन एंपायर दैट इजन्ट." (Fake Farmers, Phones, and Financials – The Nigerian Empire That Isn’t) यानी "नकली किसान, फोन्स और फाइनेंशियल- नाइजीरियन एंपायर जो है ही नहीं."
'टिंगो' घोटाले ने डेलॉयट को एक्सपोज किया
पिछले साल नवंबर में टिंगो के शेयरों में 80% की बड़ी गिरावट आई, जिसमें उसकी 700 मिलियन डॉलर की मार्केट वैल्यू खत्म हो गई. हालात इतने बिगड़ गए कि SEC को इसके शेयरों में ट्रेडिंग पर रोक लगानी पड़ी. SEC ने टिंगो के CEO डोजी मोबुओसी (Dozy Mmbuosi) पर बड़े घोटाले का आरोप लगाया. SEC ने कहा कि 'टिंगो' ने बैंक खातों में $462 मिलियन होने का दावा किया था, मगर निकले सिर्फ $50. हैरानी की बात ये है कि टिंगो के बैंक खातों में $462 मिलियन होने की रिपोर्ट को डेलॉयट ने सर्टिफाइ किया था.
डेलॉयट एक नाकाबिल ऑडिटर!
शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने सिर्फ टिंगो के घोटाले पर सवाल नहीं उठाए, बल्कि उसने टिंगो के ऑडिटर डेलॉयट की काबिलियत पर भी सवाल उठाए हैं. हिंडनबर्ग रिसर्च के मुताबिक डेलॉयट अपने ऑडिट रिपोर्ट में टिंगो की गड़बड़ियों या घोटालों को देख नहीं पाई.
हिंडनबर्ग ने लिखा कि टिंगो के फाइनेंशियल्स में ऐसे बड़े-बड़े झोल हैं कि उन्हें कोई अकाउंट का अंडर ग्रेजुएट, जिसकी नजर भी थोड़ी खराब हो, देख सकता है. मगर डेलॉयट की नजर में ये गड़बड़ियां इतनी बड़ी नहीं थी कि किसी ऑडिटर की नजर भी उस पर पड़े.
दिलचस्प है कि डेलॉयट की गिनती दुनिया के 4 बड़े ऑडिटर्स में होती है, जिसकी सालाना आय $65 बिलियन है.
SEC की नजर में डेलॉयट
नाइजीरिया कंपनी टिंगो के घोटाले के बाद US रेगुलेटर SEC की नजर इंटरनेशनल ऑडिटर डेलॉयट पर है. लेकिन सिर्फ अमेरिका ही नहीं UK, चीन और भारत समेत कई देशों ने डेलॉयट के कामकाज पर सवाल उठाए हैं और जुर्माना लगाया है.
भारत में डेलॉयट के कारनामें
भारत में डेलॉयट की लापरवाही से ही IL&FS जैसा बड़ा घोटाला हुआ, जिसने भारत के फाइनेंशियल सेक्टर को हिलाकर रख दिया था. IL&FS के बुक्स में डेलॉयट को कुछ भी गलत नजर नहीं आया. कर्ज से बोझ से डूबी इस कंपनी की सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस यानी SFIO सहित कई रेगुलेटर्स जांच कर रहे हैं. मगर साथ ही नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (NFRA) डेलॉयट के ऑडिट करने की क्षमता और क्वालिटी की भी जांच कर रहा है. NFRA ने अपनी जांच में डेलॉयट के काम में कई गड़बड़ियां पाईं हैं.
IL&FS के मामले में NCLT और बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने सरकार ने कहा कि डेलॉयट ने IL&FS ग्रुप कंपनियों के साथ मिलीभगत और सांठगांठ करते हुए जानकारी छुपाने और खातों में हेरफेर करने का काम किया. सरकार ने कहा कि ऑडिटर ने जानबूझकर IL&FS के खातों का असली सच सामने आने नहीं दिया.
दुनियाभर में डेलॉयट निशाने पर
सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर में डेलॉयट के कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं.चीन ने पिछले साल अपनी सरकारी एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) के ऑडिट में गड़बड़ी पर $30.8 मिलियन का जुर्माना लगाया था. इस AMC के प्रमुख को भ्रष्टाचार के आरोप में चीन ने फांसी पर लटका दिया था.
इसी तरह मलेशिया में डेलॉयट PLT पर वहां की सरकार ने $80 मिलियन का जुर्माना लगाया था. डेलॉयट ने घोटालों में लिप्त 1MDB की बुक्स का 2011 से 2014 तक ऑडिट किया था और इसमें वो किसी गड़बड़ी का पता नहीं लगा पायी थी.
डेलॉयट ने ऑडिटर्स को शर्मसार किया
ऑडिटर को कॉरपोरेट दुनिया में बड़े विश्वास के साथ देखा जाता है. उसका काम है कि वो कंपनियों के बुक्स में वित्तीय अनियमितताओं को पकड़े. लेकिन इनके इतिहास पर नजर डालों तो कहानी कुछ और निकलती है. इन्हें उसी क्लाइंट से पैसे मिलते हैं, जिनके खातों की ये जांच करते हैं. ये सिर्फ एक रबर स्टैंप बनकर रह जाते हैं. सच तो ये है कि ये समस्या का एक हिस्सा होते हैं जो अपने क्लाइंट्स के बढ़ा-चढ़ाकर किए गए दावों में किसी गड़बड़ी को नहीं पकड़ पाते हैं.
ताजा-ताजा टिंगो के मामले में डेलॉयट ने एक बार फिर बता दिया है कि वो कंपनियों के बुक्स में किसी गड़बड़ी को पकड़ने के काबिल नहीं हैं. उसका काम सिर्फ कंपनियों के खातों पर अपनी विश्वसनियता की मुहर लगाना है, ताकि दुनिया बेवकूफ बनती रहे.