127 साल बाद गोदरेज ग्रुप के कारोबार में बंटवारा होने जा रहा है. एक तरफ आदि गोदरेज और उनके भाई नादिर हैं, जिनके हिस्से में गोदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप (GIG) आया है. जबकि दूसरी तरफ जमशेद गोदरेज और उनकी बहन स्मिता हैं, जिनके हिस्से में गोदरेज एंटरप्राइज ग्रुप (GIG) आया है. आज हम इसी गोदरेज ग्रुप के खड़े होने की पूरी कहानी जानेंगे.
भारत में मारवाड़ी, सिंधी, पारसी, गुजराती, चेट्टियार समाज के साथ-साथ अन्य वैश्य जातियां अपने उद्यम कौशल के लिए जानी जाती रही हैं. विपरीत ऐतिहासिक, भौगोलिक स्थितियों में भी इन लोगों ने अपने श्रम का लोहा मनवाया है.
लेकिन अंग्रेजों के कब्जे के बाद बड़े मौके बनना बंद हो गए. तमाम नीतियां इंग्लैंड-यूरोप से आए उत्पादों के पक्ष में कर दी गईं. नतीजा ये हुआ कि उस दौर में बड़े हिंदुस्तानी उद्योगपतियों की गिनती ऊंगलियों पर की जा सकती थी. अच्छे का मतलब सिर्फ यूरोप से आया माल समझा जाने लगा. लेकिन कुछ लोगों को ये व्यवस्था मंजूर नहीं थी.
1897: आर्दिशिर ने की अपने दौर की खिलाफत
तूफान के खिलाफ कश्ती चलाने के शौकीन हिंदुस्तानी उद्यमियों में एक प्रमुख नाम था आर्दिशिर गोदरेज. राष्ट्रवादी फितरत के आर्दिशिर पेशे से वकील थे. लेकिन वकालत में लंबे टिके नहीं. उनकी फितरत में उद्मय था.
सबसे पहले उन्होंने सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट के धंधे में हाथ जमाने की कोशिश की. लेकिन 'मेड इन इंडिया' प्रोडक्ट्स के लिए वो दौर ही सही नहीं था. नतीजा वही हुआ, जिसकी आशंका थी. धंधा नहीं चला.
अब आता है साल 1897. आर्दिशिर ने ताले बनाने की योजना बनाई. बस यहीं से उनकी किस्मत का ताला भी खुल गया. गोदरेज & बॉयस की स्थापना के साथ ही गोदरेज ग्रुप की यात्रा शुरू हो चुकी थी.
लेकिन आर्दिशिर की राह आसान नहीं थी. अंग्रेजी अखबारों ने 'मेड इन इंडिया' प्रोडक्ट के विज्ञापन छापने से मना कर दिया. लेकिन केसरी जैसे हिंदुस्तानी भाषाओं के अखबारों ने आर्दिशिर की खूब मदद की. कई जगह स्टॉल लगाकर आर्दिशिर ने अपने प्रोडक्ट का प्रचार करवाया.
स्वदेशी आंदोलन का जोर और स्प्रिंगलैस लॉक का पेटेंट
1905 तक आते-आते देश में राष्ट्रवादी भावनाएं जोर पकड़ चुकी थीं. बंगाल के विभाजन के खिलाफ देश में असहयोग आंदोलन चलाया जाने लगा. इसके तहत विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और देसी को अपनाने की अपील की गई.
इसी आंदोलन के चलते 1906 में बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना हुई और आर्दिशिर गोदरेज इसके बोर्ड में शामिल हुए. साल 1968 तक वे बोर्ड का हिस्सा रहे. गोदरेज का बैंक से करीबी सहयोग लगातार जारी रहा.
1908 में गोदरेज दुनिया के पहले स्प्रिंगलैस लॉक का पेटेंट करवाने में कामयाब रहा. ये कंपनी की तरक्की में बड़ा कदम साबित हुआ.
1918: पहली वेजिटेबल साबुन, रवींद्रनाथ टैगोर ने किया प्रचार
दुनियाभर की साबुनों में तब जानवरों की चर्बी के तेल का उपयोग किया जाता था. लेकिन भारत में तो चर्बी वाले कारतूसों पर 1857 की क्रांति भड़क गई थी. मतलब यहां का मिजाज साबुन के लिए सही नहीं था. लेकिन यहीं आर्दिशिर ने बड़ी कामयाबी पाई. उन्होंने 1918 में दुनिया की पहली वेजिटेबल ऑयल साबुन 'छवि' निकाली. आर्दिशर इसके जरिए ना केवल स्वदेशी, बल्कि अहिंसा का संदेश भी देने में कामयाब रहे.
इस दौर के बड़े नेता, जैसे रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी ने आर्दिशिर की मदद की. रवींद्रनाथ टैगोर ने तो एक विज्ञापन पैंपलेट में साबुन का प्रचार भी किया.
दूसरी तरफ जब गांधी जी के पास एक प्रतिद्वंदी साबुन निर्माता का विज्ञापन के लिए प्रोपोजल आया, तो उन्होंने जवाब में कहा, 'मैं अपने भाई गोदरेज का इतना सम्मान करता हूं कि अगर आप उन्हें किसी भी तरीके से नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे, तो क्षमा के साथ कहूंगा कि मैं आपकी मदद नहीं कर पाऊंगा.'
साबुन के बिजनेस के बाद कंपनी ने फर्नीचर मार्केट में एंट्री की. 1935 में पिरोजशा ने गोदरेज टूलरूम की स्थापना की. ये सेल्फ रिलायंस में लंबे वक्त में कंपनी के लिए बेहतर साबित हुआ.
1936: पिरोजशा गोदरेज बने चेयरमैन और विक्रोली की जमीन
1936 में पिरोजशा गोदरेज ग्रुप के चेयरमैन बने. दरअसल आर्दिशिर की कोई संतान नहीं थी, ऐसे में कारोबार भविष्य में पिरोजशा और उनकी संतानों के खाते में आया. वैसे आर्दिशिर के साथ पूरे एंपायर को खड़ा करने में पिरोजशा का भी बराबर का योगदान था.
1940 के दशक में ग्रुप ने एक पब्लिक ऑक्शन में 3000 एकड़ जमीन खरीदी. बाद में ग्रुप ने विक्रोली में ही 400 एकड़ जमीन और खरीदी. इस तरह ग्रुप के पास 3,400 एकड़ जमीन हो गई. इसकी कीमत आज लाखों करोड़ों में है.
2019 में ही गोदरेज समहू ने इस हिस्से में 3 एकड़ जमीन 2200 करोड़ रुपये में एक जापानी कंपनी को बेची थी. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इसकी कीमत कितनी हो सकती है.
इसी जमीन के एक हिस्से पर गोदरेज टॉउनशिप बनाई गई, 1950 के आसपास यहां प्रोडक्शन यूनिट्स लगानी शुरू हुईं. आज इस जमीन को मुंबई का फेफड़ा माना जाता है.
पहला लोकसभा चुनाव और बैलेट बॉक्स
आजादी के बाद गोदरेज को सबसे बड़ा ऑर्डर 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में मिला. तब चुनाव के लिए 12.83 लाख बैलेट बॉक्स का ऑर्डर दिया गया. इसके लिए कंपनी ने एक दिन में 15,000 बैलेट बॉक्स की रफ्तार पकड़ी.
आजादी के बाद बिजनेसेज
1940 के दशक में टाइपराइटर भारत में लग्जरी आइटम माना जाता था. गोदरेज 1955 में भारत का पहला मॉडल M-9 टाइपराइटर लेकर आई. इससे पहले अमेरिका के रेमिंग्टन और स्वीडन के हाल्डा कंपनी के टाइपराइटर आते थे. Godrej & Boyce ने 1958 में भारत का पहला रेफ्रिजरेटर भी लॉन्च किया.
1960 में ग्रुप ने बिल्डिंग्स में आर्किटेक्चरल उपयोग के लिए स्टील और एल्युमीनियम प्रोडक्ट्स का बिजनेस भी किया. 60s और 70s के दशक में इस बिजनेस में इनमें खिड़की, दरवाजे, फ्रेम, फाल्स सीलिंग शामिल थीं. TIFR बिल्डिंग, NCPA, ओबेरॉय होटल जैसी बिल्डिंग गोदरेज के प्रोडक्ट्स से बनाई गईं.
1990 के दशक तक गोदरेज ग्रुप मोटे तौर पर कंज्यूमर सेक्टर में ही काम करता रहा. 1990 में ग्रुप ने गोदरेज प्रॉपर्टीज लॉन्च की (जिसे 2016 में NSE और BSE में लिस्ट की गई). अगले साल गोदरेज एग्रोवेट भी लॉन्च की गई.
साल 2000 में आदि गोदरेज, गोदरेज इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने, जो गोदरेज ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है. 2021 तक वे इस पर बने रहे. इसके बाद उनके भाई नादिर गोदरेज GIG के चेयरमैन बन गए. वे 2026 तक इस पद पर रहेंगे, जिसके बाद आदि गोदरेज के बेटे पिरोजशा आदि गोदरेज चेयरमैन बनेंगे.
बंटवारे में किसको क्या मिला?
परिवार के मुखिया आदि गोदरेज और उनके भाई नादिर गोदरेज को पांचों लिस्टेड कंपनियों का नियंत्रण मिला है, ये कंपनियां कंज्यूमर गुड्स, रियल एस्टेट, एग्रीकल्चर, केमिकल्स और फूड रिटेल बिजनेस से जुड़ी हैं. इन पांचों लिस्टेड कंपनियों की वैल्यू 2.4 लाख करोड़ रुपये है.
चचेरे भाई जमशेद और स्मिता को नॉन-लिस्टेड गोदरेज एंड बॉयस के साथ-साथ उसकी सहयोगी कंपनियां और एक विशाल लैंड बैंक मिलेगा. गोदरेज एंटरप्राइजेज ग्रुप के तहत आने वाली गोदरेज एंड बॉयस का बिजनेस एयरोस्पेस, एविएशन, डिफेंस, इंजन और मोटर्स, कंस्ट्रक्शन, फर्नीचर और सॉफ्टवेयर और IT समेत कई क्षेत्रों में है.
अगली पीढ़ी के बिजनेस लीडर्स नायरिका होल्कर, पिरोजशा दोनों ही आगे चलकर इन बिजनेसेज को संभालेंगे. आदि गोदरेज के बेटे पिरोजशा गोदरेज को समूह का एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया है. वो अगस्त 2026 में नादिर गोदरेज के बाद चेयरपर्सन का पद संभालेंगे.
इस फैमिली सेटलमेंट में कुल मिलाकर 26 सदस्य शामिल हैं. दोनों ही ग्रुप 'गोदरेज' ब्रैंड नाम का इस्तेमाल करना जारी रख सकते हैं, इसके लिए उन्हें किसी तरह का रायल्टी भुगतान नहीं करना होगा.