एक विज्ञापन याद है आपको? एक लड़का और उसका प्यारा कुत्ता. लड़का जहां-जहां जाता, कुत्ता उसके पीछे-पीछे. ये विज्ञापन, देश की बड़ी टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स में शुमार रही कंपनी हच (Hutch) का था. चीका नाम के उस प्यारे से कुत्ते (Pug) के जरिये कंपनी ये संदेश देना चाहती थी कि आप जहां-जहां जाएंगे, वहां-वहां हमारा नेटवर्क रहेगा.
2007 में अधिग्रहण के बाद हच, वोडाफोन हो गया. लंबे समय तक वोडा ने भी कुत्ते के जरिये 'बेहतर नेटवर्क कवरेज' का संदेश देना जारी रखा. फिर 2018 में पशु अधिकार संगठन पेटा (PETA) की अपील पर इसने अपने विज्ञापन में कुत्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया.
अगस्त 2018 में वोडाफोन-आइडिया की डील हुई और 2020 में इसे Vi के तौर पर री-ब्रैंड किया गया. कंपनी अभी भी बेहतर नेटवर्क कवरेज और अच्छी सर्विस का दावा करती है. इसके पास करीब 23 करोड़ ग्राहक भी हैं. काफी कुछ ठीक दिख रहा है, लेकिन क्या असल में ठीक है? शायद नहीं! बिल्कुल नहीं.
वोडाफोन-आइडिया पर स्पेक्ट्रम शुल्क, AGR और अन्य बकाया मिलाकर करीब 2.11 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. बढ़ते कर्ज और गिरती साख के बीच कंपनी ने साढ़े तीन साल में करीब 10 करोड़ ग्राहक खो दिए हैं. कंपटीशन बढ़ता जा रहा है.
तो क्या आने वाले समय में Vi का वजूद ही खत्म होने वाला है?
कंपनी का वजूद खतरे में!
2.11 लाख करोड़ रुपये बहुत बड़ी राशि होती है. वोडाफोन आइडिया ने सरकार काे स्पेक्ट्रम शुल्क के करोड़ों रुपये चुकाने हैं, बैंकों से लिए गए कर्ज वापस करने हैं और इंडस टॉवर को सर्विस के लिए पेमेंट करना है. AGR पर राहत के लिए कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पुनर्विचार याचिका में दलील दी है कि पेनल्टी पर पेनल्टी और इंटरेस्ट लगाना बेहद कठोर कदम है और इससे कंपनी का वजूद ही खतरे में पड़ सकता है. Vi के लिए राहत की बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गई है.
कर्ज का बोझ, सर्वाइव करना मुश्किल
वोडाफोन आइडिया ने अपने स्टेटमेंट में बताया था कि 30 जून, 2023 की तारीख तक कंपनी पर कुल कर्ज 2.11 लाख करोड़ रुपये है. टेलीकॉम और पॉलिसी एक्सपर्ट महेश उप्पल का कहना है कि कंपनी के लिए सर्वाइव करना फिलहाल बेहद मुश्किल दिख रहा है. कर्ज बहुत ज्यादा है और निवेश आ नहीं रहे.
BQ Prime हिंदी से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि कंपनी मिस कैलकुलेशन के चलते उलझ गई. 2019 में AGR पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर उन्होंने कहा, 'शायद कंपनी को भी अंदाजा न रहा हो कि फैसला उनके खिलाफ जाएगा. इस बुरी स्थिति के लिए कंपनी के कर्ताधर्ता को जिम्मेदार माना जा सकता है.
जियो-एयरटेल से भिड़ने की चुनौती
वोडाफोन-आइडिया के सामने जियो और एयरटेल जैसे बड़े खिलाड़ियों से भिड़ने की चुनौती है. कंज्यूमर बेस के मामले में जियो 44.2 करोड़ से ज्यादा ग्राहकों के साथ टॉप पर है. वहीं दूसरी बड़ी खिलाड़ी कंपनी एयरटेल के पास 37.5 करोड़ ग्राहक हैं. जबकि Vi के पास अब बस 22.83 करोड़ कंज्यूमर्स बचे हैं और आंकड़ों के मामले में ये केवल BSNL (9.8 करोड़ कंज्यूमर्स) से आगे है.
हर महीने 22 लाख ग्राहकों को खो रही कंपनी!
टेलीकॉम रेगुलेटरी TRAI के आंकड़ों के अनुसार, मार्च, 2020 तक वोडाफोन-आइडिया के 31.9 करोड़ ग्राहक थे, दिसंबर 2020 में घटकर 26.9 करोड़ ग्राहक रह गए और इस साल जुलाई तक कंपनी के पास 22.83 करोड़ ग्राहक बचे हैं. यानी करीब सवा 3 साल में Vi ने 9.1 करोड़ ग्राहक गंवा दिए. यानी हर साल करीब 3 करोड़ ग्राहक साफ!
पिछले एक साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो जुलाई 2022 में जहां Vi के 25.51 करोड़ कंज्यूमर्स थे, वहीं जुलाई 2023 के आंकड़ों के अनुसार कंपनी के पास 22.83 करोड़ कंज्यूमर्स हैं. यानी Vi हर महीने औसतन 22 लाख कंज्यूमर्स खो रही है.
Vi की वित्तीय सेहत
अर्निंग रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 की जून तिमाही में कंपनी पर लॉन्ग टर्म डेट (Long-Term Debt) 2,20,941.2 करोड़ रुपये और शॉर्ट टर्म डेट (Short-Term Debt) 21,875 करोड़ रुपये हैं. यानी कंपनी पर कुल नेट डेट (Net Debt) 2,41,936.2 करोड़ रुपये है.
कंपनी का कंसॉलिडेटेड नेट लॉस Q1FY24 में बढ़कर 7,840 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जबकि इसका रेवेन्यू जून तिमाही में 2.3% की मामूली बढ़ोतरी के साथ 10,655.5 करोड़ रुपये रहा.
कर्ज के बारे में आपने ऊपर पढ़ा ही, जो कि जून तिमाही के अंत तक 2,11,760 करोड़ रुपये था. बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिए गए लोन का बकाया 9,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था, जबकि डेट इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए जुटाई गई धनराशि 1,660 करोड़ रुपये थी.
लेकिन क्या स्थिति सच में इतनी बुरी है?
IIM, अहमदाबाद की 2 साल पहले प्रकाशित हुई एक स्टडी रिपोर्ट का हवाला देते हुए रेगुलेटरी और पॉलिसी एक्सपर्ट प्रभात सिन्हा कहते हैं कि वोडाफोन ने शुरुआती दिनों में टैक्स का गड़बड़झाला किया, यहां की गई कमाई को टैक्स फ्री कंट्रीज में भुनाया, जिससे भारत सरकार को जो राशि मिलनी चाहिए थी, वो मिली नहीं.'
आगे वो कहते हैं, 'फिलहाल जो स्थिति है, उसकी कंपनी खुद जिम्मेदार है. लेकिन एक संभावना ये भी हो सकती है कि कंपनी जितनी कमजोर दिख रही, उतनी हो नहीं.'
महेश उप्पल कहते हैं, 'कंपनी के पास 20 करोड़ से ज्यादा कस्टमर बेस है, जो कई देशों की आबादी से ज्यादा है. सर्विस भी दूसरी कंपनियों से खराब नहीं हैं. ऐसा भी नहीं कि सर्विस को लेकर ग्राहक असंतुष्ट हैं.'
वोडाफोन-आइडिया की प्रति ग्राहक औसत कमाई (ARPU) जून तिमाही में बढ़कर 139 रुपये हो गई थी, जो इससे पिछले साल की समान तिमाही में 128 रुपये थी. हालांकि, 5G सर्विस देने के मामले में कंपनी अभी भी पिछड़ी हुई है. लेकिन जून तिमाही में इसने करीब 1,000 जगहों पर 4जी नेटवर्क स्थापित किए.
सरकार सबसे बड़ी शेयरहोल्डर
कंपनी के प्रोमोटर्स आदित्य बिड़ला ग्रुप और वोडाफोन के पास 18.07% और 32.29% हिस्सेदारी है. कंपनी में सबसे बड़ी हिस्सेदार सरकार है. सरकार को 33.44% हिस्सेदारी बकाया 'स्पेक्ट्रम शुल्क' पर ब्याज और बकाया AGR की NPV को शेयरों में बदलने के चलते मिली.
सरकार ने वोडाफोन आइडिया को बकाया ब्याज के बदले शेयर देने को कहा था. बोर्ड ने 16,133 करोड़ रुपये मूल्य के इक्विटी शेयर सरकार को आवंटित करने को मंजूरी दी थी. सितंबर, 2021 में सरकार द्वारा घोषित सुधार पैकेज के तहत कंपनी को थोड़ी राहत और सरकार को इतनी बड़ी हिस्सेदारी मिली.
क्या रास्ते हैं, भविष्य क्या होगा?
सीधा रास्ता तो यही है कि कंपनी अपने कर्जों का भुगतान करे. पिछले दिनों PTI ने एक सोर्स के हवाले से बताया था कि Vi ने हाल ही में 2022-23 की मार्च तिमाही के लिए लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम फीस के बकाया में से करीब 450 करोड़ रुपये चुकाया है.
Vi को जुलाई तक करीब 770 करोड़ रुपये का लाइसेंस शुल्क और पिछले साल की नीलामी में खरीदे स्पेक्ट्रम की पहली किस्त के रूप में 1,680 करोड़ रुपये का भुगतान करना था. PTI ने बताया था कि कंपनी जल्द ही सरकार को 2,400 करोड़ रुपये चुका सकती है.
PTI की रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त में प्राेमोटर्स ग्रुप की एक इकाई ने इस बात की पुष्टि की थी कि कंपनी को अपने भुगतान दायित्वों को पूरा करने के लिए किसी भी फंड की जरूरत होने पर वो 2000 करोड़ रुपये तक की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वित्तीय सहायता देगी.'
प्रभात सिन्हा कहते हैं, 'कंपनी फिलहाल फंड जुटाने की कोशिश तो कर रही है, लेकिन फॉरेन इन्वेस्टर्स भी रेपो देख रहे हैं.' कंपनी का मुकाबला जियो और एयरटेल जैसे खिलाड़ियों से है. ऐसे में प्रभात सिन्हा का कहना है, 'अफ्रीकन मार्केट में कंपनी ने कई साल पहले SMS बैंकिंग, मोबाइल वॉलेट जैसी वैल्यू एडेड सर्विसेस फ्री में दी थी. यहां भी मार्केट में बने रहने के लिए आज के समय के अनुसार कुछ कदम उठाने होंगे.'
सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली तो?
वोडाफोन-आइडिया ने फिलहाल AGR मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत की उम्मीद कर रही है. वहां से राहत मिली तो कंपनी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू का फिर से मूल्यांकन करेगी और भुगतान करेगी. प्रभात सिन्हा कहते हैं, 'ब्याज और पेनल्टी में सुप्रीम कोर्ट विचार कर रियायत दे सकती है. ये कोर्ट पर निर्भर करता है कि वो सरकार को इस संबंध में निर्देश दे या न दे.'
महेश उप्पल कहते हैं, 'कंपनी को सरकार ही बचा सकती है. सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली तो कंपनी का वजूद खतरे में पड़ सकता है (जैसा कि कंपनी ने खुद दावा किया है). कोई भी निवेशक या प्रोमोटर कंपनी की जिम्मेदारी ले सकता है, लेकिन कर्ज की नहीं लेना चाहेगा. इसलिए सरकार ही चाहे तो आगे आ सकती है.'
BSNL-Vi का मर्जर भी है एक विकल्प!
टेलीकॉम एक्सपर्ट महेश उप्पल की ये बात आपको चौंका सकती है. वे कहते हैं कि BSNL-Vi का मर्जर भी एक बेहतर उपाय हो सकता है. उनका कहना है, 'BSNL भी सरकार की कंंपनी है और Vi में भी वो सबसे बड़ी हिस्सेदार है. BSNL की स्थिति भी सही नहीं है, इसलिए वोडाफोन का अनुभव उसके काम आ सकता है.' 2019 में भी AGR मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उन्होंने अपने एक आर्टिकल में संभवत: पहली बार ये सलाह दी थी.
Vi का बाजार में बने रहना क्यों है जरूरी?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि टेलीकॉम मार्केट में Vi का बाजार में बने रहना जरूरी है. महेश उप्पल कहते हैं कि Vi अगर खत्म हो जाती है तो टेलीकॉम मार्केट में कंज्यूमर्स को डुओपॉली का सामना करना पड़ेगा. उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रभात सिन्हा कहते हैं कि कंज्यूमर के नजरिये से मोबाइल अब मूलभूत जरूरत हो गई है. उनके लिए बाजार में कंपटीशन बने रहना जरूरी है. नहीं तो दरों से लेकर सर्विस तक, ग्राहकों को नुकसान होगा.
इस मामले में सरकार के हस्तक्षेप को जरूरी बताते हुए सिन्हा कहते हैं, 'बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है कि Vi के बने रहने से सरकार को टैक्स, शुल्क वगैरह मिलते रहेंगे, बल्कि वैश्विक स्तर पर देश की ऐसी छवि बनने का खतरा है, जहां टेलीकॉम सेक्टर के लिए, MNCs के लिए स्थिति सही नहीं है.'
'टेलीकॉम देश में उभरता हुआ सेक्टर है और ये बाहरी निवेशकों, कंपनियों को आकर्षित करता रहा है. ऑटो सेक्टर में जिस तरह एक के बाद एक कर, फोर्ड, जनरल मोटर्स, हार्ले डेविडसन जैसी कंपनियों ने अपना काम समेटा, अगर Vi के साथ बुरा हुआ तो टेलीकॉम सेक्टर को लेकर भी यही मैसेज जाएगा कि यहां बिजनेस के लिए फ्रेंडली और सपोर्टिव माहौल नहीं है.' प्रभात सिन्हा आगे कहते हैं, 'वन विंडो सिस्टम जैसे प्रयासों से 'ईज ऑफ डुइंग बिजनेस' इंडेक्स में देश की सही हो रही स्थिति को भी धक्का लग सकता है.'
(Source: BQ Research, TRAI, Bloomberg, PTI, Earning Report, Company Websites etc.)