'वर्क लाइफ बैलेंस' पर फिर छिड़ी बहस; जेप्टो CEO ने कंपनी में खराब वर्क कल्चर पर दिया जवाब

आदित पलीचा की ये सफाई जेप्टो के टॉक्सिक वर्क कल्चर को लेकर शिकायत करने वाली एक गुमनाम रेडिट पोस्ट के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद आई है.

Source: Zepto

पिछले कुछ महीनों से भारत में वर्क लाइफ बैलेंस को लेकर काफी जोरों से चर्चा होने लगी है. कई इसके खिलाफ हैं तो कई इसको जिंदगी का अहम हिस्सा मानते हैं. इस नई बहस में अब जेप्टो के युवा को-फाउंडर आदित पलीचा भी कूद पड़े हैं.

'वर्क लाइफ बैलेंस' की जरूरत को लेकर क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म Zepto के को-फाउंडर आदित पलीचा (Aadit Palicha) ने एक टिप्पणी की है, उन्होंने कहा है कि वो वर्क लाइफ बैलेंस को मानते हैं और वो इसके खिलाफ नहीं हैं. पलीचा की ये टिप्पणी तब आई है, जब सोशल मीडिया पर जेप्टो में टॉक्सिक वर्क कल्चर को लेकर चर्चा जोरों पर है.

वर्क लाइफ बैलेंस के खिलाफ नहीं: पलीचा

पलीचा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा है कि 'मैं वर्क लाइफ बैलेंस के खिलाफ नहीं हूं. वास्तव में मैं अपने कंपिटीटर्स को इसकी सिफारिश करता हूं.' उन्होंने कहा कि वो दक्ष गुप्ता के एक इंटरव्यू का हवाला दे रहे थे.

आदित पलीचा की ये सफाई जेप्टो के टॉक्सिक वर्क कल्चर को लेकर शिकायत करने वाली एक गुमनाम रेडिट पोस्ट के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद आई है. इस पोस्ट में अनुचित कामकाजी घंटों और अन-प्रोफेशनल वर्कंग कल्चर के बारे में शिकायत की गई थी. इसमें ये भी आरोप लगाया गया है कि लोग बड़ी तेजी के साथ कंपनी छोड़ रहे हैं. हर हफ्ते कम से कम 10 लोग कंपनी छोड़कर जा रहे हैं और ग्राहकों से कई तरीकों से पैसे ऐंठने के लिए ऐप पर डार्क पैटर्न भी मौजूद हैं.

कौन हैं दक्ष गुप्ता?

दक्ष गुप्ता सैन फ्रांसिस्को बेस्ड टेक स्टार्टअप ग्रेप्टाइल (Tech startup Greptile) के फाउंडर हैं. दक्ष गुप्ता ने पिछले महीने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहा था कि वो अपने कर्मचारियों से 14 घंटे काम की उम्मीद करते हैं, उन्होंने अपनी कंपनी के वर्क कल्चर की तुलना रॉकेट लॉन्च से की थी. दक्ष गुप्ता ने कहा कि उनकी कंपनी वर्क लाइफ बैलेंस को नहीं मानती है. हमारा काम सुबह 9 बजे शुरू होता है और रात को 11 बजे खत्म होता है, इसमें शनिवार भी शामिल है.

दक्ष गुप्ता X पर एक ट्ववीट में लिखते हैं कि इंटरव्यू देने आने वाले कैंडिडेट्स को मैं पहले ही बता देता हूं कि माहौल अत्यधिक तनावपूर्ण है और खराब काम को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इस पोस्ट के बाद पलीचा को सोशल मीडिया पर काफी विरोध झेलना पड़ा उन्हें काफी तीखी प्रतिक्रियाएं मिलीं.

80-100 घंटे काम करती है टीम: पलीचा

एक इंटरव्यू के दौरान पलीचा ने पहले बताया था कि कैसे उनकी जेप्टो की टीम बिजनेस डिमांड्स को पूरा करने के लिए हफ्ते में 80 से 100 घंटे काम करती है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कुछ सार्थक बनाने की इच्छा और जुनून पैसे से ज्यादा जरूरी है.

पलीचा का कहना है कि हफ्ते सप्ताह में 80-100 घंटे काम करते हुए, हम शायद उसका आधा काम बहुत कम तनाव के साथ कर सकते थे, एक तय बिंदु पर पैसे के कोई मायने नहीं रह जाते हैं. पलीचा ने अक्टूबर में NDTV वर्ल्ड समिट में कहा था, हम जो बना रहे हैं, वो हमें पसंद है, हम पागलों की तरह काम करते हैं और हम जो बना रहे हैं, उसे लेकर हम वास्तव में बहुत उत्साहित हैं.

NDTV प्रॉफिट ने जेप्टो से इस पर टिप्पणी मांगी है, लेकिन खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला है.

कॉरपोरेट जगत में बहस का मुद्दा

कॉरपोरेट की दुनिया में वर्क लाइफ बैलेंस एक बहस की विषय बन चुका है. इस साल की शुरुआत में इंफोसिस के फाउंडर एन आर नारायणमूर्ति ने हफ्ते में 70 घंटे काम की वकालत की थी और वर्क लाइफ बैलेंस जैसी चीज को नकारा था. उनकी इस टिप्पणी को कुछ लोगों ने सराहा तो कई लोगों ने आलोचना भी की. विरोध के बावजूद नारायणमूर्ति ने कहा कि वो अब भी अपनी बात पर कायम हैं, वो वर्क लाइफ बैलेंस जैसी चीज को नहीं मानते हैं.

ओला के CEO भाविश अग्रवाल भी वर्क लाइफ बैलेंस को नकारते हैं. एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि वर्क लाइफ बैलेंस सही चीज है. फिर से ये एक विपरीत दृष्टिकोण है, ऐसे लोग होंगे जो मुझसे असहमत होंगे, बहुत से लोग मुझसे असहमत होंगे.

जबकि पिछले महीने ही विप्रो के एग्जिक्यूटिव चेयरमैन रिशद प्रेमजी ने वर्क लाइफ बैलेंस को बेहद जरूरी बताया था. उन्होंने कहा था कि हाइब्रिड वर्क मॉडल ने वर्कफोर्स को मैनेज करने में काफी मदद की है. बैंगलुरु में एक इवेंट के दौरान उन्होंने बताया 'मैंने ये बात कोविड से पहले अपने शुरुआती दिनों में ही सीख ली थी, यानी कामकाजी जीवन एक ऐसी चीज है जिसे आपको अपने लिए परिभाषित करना होगा, संगठन कभी भी आपके लिए इस पर काम नहीं करेंगे. इसलिए आपको ये परिभाषित करना होगा कि इसका क्या मतलब है और सीमाएं खींचनी होंगी.