भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने रीयल्टी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी डीएलएफ व उसके चेयरमैन केपी सिंह सहित छह शीर्ष कार्यकारियों पर प्रतिभूति बाजार में कारोबार करने की तीन साल की रोक लगा दी है।
यह निर्णय कंपनी के 2007 में आए प्रथम सार्वजनिक शेयर निर्गम (आईपीओ) के संदर्भ में प्रस्तुत सूचनाओं में कथित गड़बड़ी के मामले से जुड़ा है। सेबी ने कंपनी को तथ्यों को 'सक्रिय रूप से व जानबूझकर दबाने' का दोषी पाया है। डीएलएफ ने 2007 में आईपीओ से 9,187 करोड़ रुपये जुटाए थे।
सेबी ने जिन कार्यकारियों पर रोक लगायी है, उनमें केपी सिंह के पुत्र राजीव सिंह (वाइस चेयरमैन) और पुत्री पिया सिंह (पूर्णकालिक निदेशक) भी शामिल हैं।
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य राजीव अग्रवाल ने नियमक के 43 पृष्ठ के आदेश में कहा, 'मैंने पाया कि यह मामला सक्रिय तरीके से और जानबूझकर किसी सूचना को दबाने का मामला है, ताकि डीएलएफ के आईपीओ के समय शेयर जारी करने के दौरान निवेशकों को धोखा दिया जा सके और उन्हें गुमराह किया जा सके।'
आदेश में कहा गया है, 'इस मामले में जो उल्लंघन दिखे हैं वे गंभीर हैं और उनका प्रतिभूति बाजार की सुरक्षा व सच्चाई पर बड़ा प्रभाव पड़ा।'
अग्रवाल ने कहा, 'मेरे विचार में इस मामले में जो गंभीर उल्लंघन हुए हैं, ऐसे में बाजार के प्रति निष्ठा की रक्षा के लिए प्रभावी कार्रवाई की जरूरत है।' कंपनी और उसके शीर्ष कार्यकारियों को सूचनाओं को सार्वजनिक करने और निवेशक संरक्षण (डीआईपी) संबंधी सेबी के दिशानिर्देशों के अलावा व्यापार में धोखाधड़ी वाले और अनुचित व्यवहार रोधक (पीएफयूटीपी) नियमों के उल्लंघन का भी दोषी पाया गया है।
जिन अन्य लोगों पर प्रतिबंध लगाया गया है उनमें कंपनी के प्रबंध निदेशक टीसी गोयल, कामेश्वर स्वरूप और रमेश संका शामिल हैं।
आईपीओ दस्तावेज जमा कराने के समय केपी सिंह और उनके पुत्र-पुत्री सहित सभी उस समय शीर्ष प्रबंधन का हिस्सा थे।
उस समय कंपनी के गैर कार्यकारी निदेशक रहे जीएस तलवार को सेबी ने 'संदेह का लाभ' दिया है। सेबी ने कहा कि यह स्थापित नहीं हो पाया कि क्या तलवार कंपनी के रोजाना के परिचालन में शामिल थे।