बच्चों की सेहत सुधारने के लिए CBSE की 'शुगर बोर्ड' पहल, क्‍या बोले एक्‍सपर्ट्स?

शुगर बोर्ड से जुड़ा CBSE का ये रचनात्‍मक फैसला ऐसे वक्त आया है, जब बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

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बच्चों की सेहत और खानपान की आदतों को लेकर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने एक अहम कदम उठाया है. 17 मई को CBSE ने देशभर के संबद्ध स्कूलों को निर्देश दिए कि वे 'शुगर बोर्ड' स्थापित करें ताकि छात्रों में चीनी के अधिक सेवन को रोका जा सके. इस फैसले पर शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों ने स्कूलों की भूमिका को बेहद जरूरी बताया है.

संस्कृति स्कूल्स के ट्रस्टी प्रणीत मुंगली ने NDTV Profit से बातचीत में कहा, 'स्कूल का काम सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चों और अभिभावकों को भी जागरूक करना चाहिए. बच्चों की पौष्टिकता से जुड़ी आदतों को सुधारने में स्कूल की भूमिका बहुत अहम है.'

शुगर बोर्ड से जुड़ा CBSE का ये रचनात्‍मक फैसला ऐसे वक्त आया है, जब बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पहले ये बीमारी सिर्फ वयस्कों में देखी जाती थी, लेकिन अब पिछले एक दशक में बच्चों में भी इसके मामले बढ़े हैं.

बिगड़ता खानपान और बढ़ता मोटापा

फूडफार्मर के नाम से मशहूर यूट्यूबर रेवंत हिमतसिंका भी इस बात पर जोर देते रहे हैं कि भारत में बच्चों में मोटापा बहुत तेजी से बढ़ रहा है. इसका बड़ा कारण स्कूलों में आसानी से मिलने वाले मीठे स्नैक्स, डिब्बाबंद खाने और शक्कर वाले ड्रिंक्स हैं.

CBSE ने स्कूलों को भेजी गई चिट्ठी में कहा, 'चीनी का अधिक सेवन न केवल डायबिटीज का खतरा बढ़ाता है, बल्कि मोटापा, दांतों की समस्या और कई मेटाबोलिक बीमारियों को भी जन्म देता है. इसका असर बच्चों की सेहत और पढ़ाई दोनों पर पड़ता है.'

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क्या है 'शुगर बोर्ड' इनिशिएटिव?

CBSE ने स्कूलों को कहा है कि वे कैंटीन या प्रमुख स्थानों पर 'शुगर बोर्ड' लगाएं, जहां शुगर से होने वाले नुकसानों की जानकारी रोचक और सरल तरीके से दी जाए. इसका मकसद यह है कि बच्चे कम उम्र से ही चीनी से होने वाले नुकसानों को समझ सकें.

फूडपार्मर हिमतसिंका ने कहा, 'मैं चाहता था कि यह कांसेप्ट इतना आसान हो कि 6-8 साल के बच्चे भी इसे समझ सकें. जब आप किसी को छोटी उम्र में सिखाते हैं, तो गलत आदतों को बदलना आसान हो जाता है. शुगर बोर्ड में ग्राफिक्स और विजुअल्स के जरिए यह दिखाया जाएगा कि किन चीजों में कितनी शक्कर होती है.'

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कितनी कारगर साबित होगी ये कोशिश?

प्रणीत मुंगली ने कहा, 'हमें बच्चों को सेहतमंद विकल्प चुनने के लिए प्रेरित करना होगा और उन्हें तुरंत मिलने वाले अनहेल्दी विकल्पों से दूर रहने की आदत सिखानी होगी.' उन्होंने कहा कि एक साल बाद स्कूलों के खाने की आदतों में बदलाव को लेकर एक राष्ट्रीय स्तर पर मूल्यांकन भी किया जाएगा.

फोर्टिस C-DOC के चेयरमैन डॉ अनुप मिश्रा ने कहा, 'अगर हम सिर्फ चीनी पर ध्यान दे रहे हैं, तो हम सिर्फ 20% जंक फूड पर फोकस कर रहे हैं. अगर बच्चों की सेहत सुधारनी है, तो इसमें माता-पिता, शिक्षकों और सरकारी स्तर पर प्रयास भी जरूरी हैं.'

उन्होंने कहा कि सैचुरेटेड फैट (saturated fat) और शुगर युक्त पेय पदार्थों को कम करने की दिशा में भी नीति होनी चाहिए. साथ ही, उन्होंने सुझाव दिया कि स्कूलों में वजन और कमर की माप जैसे पैरामीटर्स को 6 महीने तक मापा जाए, ताकि ये समझा जा सके कि शुगर बोर्ड जैसी पहल से असल में कितना असर हो रहा है.

CBSE की ये पहल बच्चों के स्वास्थ्य सुधार की दिशा में एक अहम शुरुआत है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके सफल होने के लिए स्कूलों के साथ-साथ अभिभावकों, शिक्षकों और नीतियों का भी सहयोग जरूरी है.

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