DPIIT यानी इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड प्रोमोशन डिपार्टमेंट के पूर्व सचिव रमेश अभिषेक (Ramesh Abhishek) के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में CBI ने सर्च ऑपरेशन चलाया है.
समाचार एजेंसी PTI की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में FIR दर्ज होने के बाद मंगलवार को CBI ने उनके परिसरों की तलाशी ली.
1982 बैच के IAS अधिकारी हैं रमेश
रमेश अभिषेक 1982 बैच के IAS अधिकारी हैं और कई बड़े पदों पर रहने के बाद 2019 में DPIIT के सेक्रेटरी पद से रिटायर हुए थे. वे ओडिशा के रहने वाले हैं. कुछ प्राइवेट कंपनियों में भी सेवा दे चुके रमेश अभिषेक पर आरोप है कि उन्होंने आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की है.
CBI के अधिकारियों ने बताया कि आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने और भ्रष्टाचार के मामले में रमेश अभिषेक के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद दिल्ली में उनके परिसरों पर जांच एजेंसी की कार्रवाई शुरू हुई.
लोकपाल भी कर रहा जांच
रिटायर्ड IAS अधिकारी के खिलाफ एंटी करप्शन इकाई लोकपाल भी आय से अधिक संपत्ति के आरोपों की जांच कर रहा है. उनके खिलाफ मई, 2019 में लोकपाल से शिकायत की गई थी. लोकपाल की तीन सदस्यीय बेंच में शामिल जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष, दिनेश कुमार जैन और इंद्रजीत गौतम ने ED को अधिकारी के खिलाफ जांच का निर्देश दिया था.
5,600 करोड़ के NSEL घोटाले से जुड़े है तार
कमोडिटी एक्सचेंज के लिए पहले एक नियामक इकाई हुआ करती थी- NSEL यानी नेशनल स्पॉट कमोडिटी एक्चेंज लिमिटेड. इसमें 2013 में बड़ा घोटाला सामने आया था. NSEL पर कमोडिटी की खरीदी-बिक्री की जाती थी. इस एक्सचेंज पर निवेशकों और कर्जदारों के ऑर्डर मैच किए जाते थे, जिसमें करीब 15% रिटर्न मिलता था. इसमें दो कॉन्ट्रैक्ट हुआ करते थे, T+2 और T+25.
निवेशक के पैसा लगाने के दो दिन बाद कर्जदार के पास पैसा जाता था और इन्वेस्टर्स को एक्सचेंज की तरफ से एक लेटर मिलता था, जिसमें कमोडिटी वेयर हाउस में रखे होने का वादा होता था. 25 दिन बाद कर्जदार पैसा चुकाता था और अपनी रिसीट वापस ले जाता था. बेहतर रिटर्न के चलते इन्वेस्टर्स पोजिशन को रोलओवर करते रहते थे और ये सिलसिला लंबा चला.
जुलाई 2013 में सरकार ने अचानक NSEL को नया कॉन्ट्रैक्ट जारी करने से मना कर दिया. इसके चलते पोजिशन आगे रोलओवर नहीं हो सकी. सरकार ने एक्चेंज को बंद करा दिया. इस पूरे घोटाले की जड़ में थी फर्जी रिसीट. दरअसल, वेयरहाउस में कोई माल न होने के बावजूद भी रिसीट दे दी गई थी और कर्जदारों ने उधार लिया पैसा अलग-अलग जगह निवेश कर दिया. पूरे मामले में एक्सचेंज की भूमिका सबसे संदिग्ध नजर आई. 29 सितंबर 2015 को फॉरवर्ड मार्केट कमीशन का विलय SEBI यानी सिक्योरिटी एक्सचेंज एंड बोर्ड ऑफ इंडिया में कर दिया गया.
PTI की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक, तब रमेश अभिषेक फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (FMC) के चेयरमैन हुआ करते थे. एक्सचेंज की ओर से जारी बयान में ये दावा किया गया था कि करीब 5600 करोड़ के इतने बड़े घोटाले की वजह फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (FMC) के चेयरमैन की DCA (डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर) को दी गई गलत सलाह है. इसमें FCRA के तहत छूट की कुछ शर्तों को तोड़ा गया था. जिसके बाद DCA ने अप्रैल, 2012 में कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
लोकपाल के 2 बार निर्देश और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर ED रमेश अभिषेक के खिलाफ अवैध कमाई के आरोपों की जांच कर रही है.