केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बुधवार को चेताया कि कच्चे तेल की कीमत अगर 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाती है तो इससे ‘संगठित अराजकता’ फैल सकती है.
केंद्रीय मंत्री की ये प्रतिक्रिया UAE के अबूधाबी में चल रहे 'ADIPEC तेल और गैस सम्मेलन' में सऊदी अरब और रूस द्वारा इस साल के अंत तक तेल के उत्पादन में कटौती जारी रखने की घोषणा के बाद आई है.
3 महीने में $25 प्रति बैरल बढ़ गए भाव
केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'OPEC और OPEC+ ने 2022 के बाद से बाजार से तेल की उपलब्धता 4.96 मिलियन बैरल प्रतिदिन कम कर दी है, जिसमें वैश्विक तेल मांग का 5% शामिल है. इसके चलते ब्रेंट की कीमतें जून में 72 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर सितंबर 2023 में 97 डॉलर प्रति बैरल हो गई हैं. इन कदमों के अनायास नतीजे सामने आते हैं.'
'किसी का हित नहीं होगा'
केंद्रीय मंत्री पुरी ने कहा, ‘अगर कीमत 100 डॉलर से ऊपर जाती है तो ये तेल उत्पादक देशों या अन्य किसी के भी हित में नहीं है. ऐसे में व्यापक और संगठित अव्यवस्था पैदा होगी.’
उन्होंने कहा कि पिछले 18 महीने से कीमत बढ़ रही है, जिसके चलते दुनियाभर के विकासशील देशों के तमाम इलाकों में करीब 10 करोड़ लोग गरीबी की चपेट में आ गए हैं.
OPEC+ देशों से की सहयोग की अपील
केंद्रीय मंत्री ने संभावित संकट से निपटने के लिए OPEC+ देशों से सहयोग की अपील की है. उन्होंने कहा, 'वैश्विक ऊर्जा बाजारों को इस हद तक संतुलित करना होगा कि कच्चे तेल की कीमतें कंज्यूमर देशों की भुगतान क्षमता से आगे न बढ़े. ये सुनिश्चित करना, उत्पादकों के भी हित में होगा.' उन्होंने OPEC+ से तेल बाजारों में व्यवहारिकता, संतुलन और सामर्थ्य की भावना पैदा करने के लिए वर्तमान आर्थिक स्थिति की गंभीरता पर ध्यान देने और समझने की अपील की.
'तेल के भाव बढ़े तो इतिहास खुद को दोहराएगा!'
हरदीप सिंह पुरी ने कहा, 'तेल की ऊंची कीमतें 2008 की पुनरावृत्ति का कारण बन सकती हैं, जब तेल बाजार क्रैश हो गया था.' ब्लूमबर्ग के साथ चर्चा में केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'एक प्रसिद्ध शख्सियत (जो अब उतने लोकप्रिय नहीं हैं) हेगेल ने 19वीं सदी के मध्य में लिखा था, 'इतिहास खुद को दोहराता है.' उन्होंने कहा, 'हेगेल को इसे पहली बार 'त्रासदी' और दूसरी बार 'प्रहसन' के रूप में जोड़ना चाहिए था.'
'जब गिरे थे तेल के भाव, तब दुनिया ने किया था सहयोग'
एक दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री पुरी ने कहा था कि तेल उत्पादक देशों को तेल की खपत करने वाले देशों की तरह ही संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है, जैसा कि दुनिया के अन्य देशों ने कोविड काल के दौरान दिखाई थी.
पुरी ने कहा, 'महामारी के दौरान जब कच्चे तेल की कीमत गिर गई थीं तब कीमतों को स्थिर करने के लिए दुनिया सामने आई थी, जिससे उत्पादकों के लिए यह टिकाऊ स्तर पर बनी रहे.'
महामारी के दौरान कच्चे तेल की कीमत 20 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गई थी और कीमत 50 डॉलर प्रति बैरल से कम पर आ गई थी.
बता दें कि भारत अपने कच्चे तेल की जरूरत का 60% आयात करता है, जिसकी कीमत 101 बिलियन डॉलर के करीब है.