सर! अभी दो दिन पहले ही जब आपके अस्पताल में भर्ती होने की खबर आई तो दुआओं में अनगिनत हाथ उठने लगे थे. प्रार्थनाएं की जाने लगीं. उल्टी-सीधी आशंकाओं के बीच एक पोस्ट सामने आया, जिसमें कहा गया कि 'आप ठीक हैं और चिंता की कोई बात नहीं. ये सब बस एक रूटीन चेकअप है.' ऐसा लगा, जैसे दुआओं का असर हो गया हो.
इस पोस्ट ने अभी दिल को सुकून दिया ही था कि वही शंका, मनहूस खबर की शक्ल में सामने आ खड़ी हुई. देश के बेशकीमती 'रतन' ने दुनिया को 'टाटा' कह दिया.
आप अपने जीवन के 86 वसंत देख चुके थे. सबको मालूम है कि उम्र के साथ शरीर ढीला पड़ने लगता है. लेकिन पिछले कई वर्षों से आपके हर जन्मदिन पर लाखों लोग आपके शतायु होने की कामना भी तो किया करते थे. आपको थोड़ा और ठहरना था...
बताया जाता है कि पारसी, ईरान से भारत आए. जिस तरह, ये आपका सौभाग्य था कि आपकी पैदाइश यहां हुई. उसी तरह इस देश और देश के लोगों का सौभाग्य ही था कि आप यहां पैदा हुए. आप जैसे शख्स धरती पर आते ही कहां हैं! वो अल्लामा इकबाल का एक शेर है न...
हजारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
उद्योग जगत की कई और भी हस्तियों ने इस दुनिया को अलविदा कहा है, लेकिन आपका यूं जाना देश को अखर गया, टाटा! बच्चे-बच्चे की जुबां पर आज आपका नाम है. अनगिनत आंखों में आंसुओं का सैलाब!
शायद आप जैसी शख्सियतों के लिए ही खालिद शरीफ ने लिखा है कि
'बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई,
इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया.'
उद्योग जगत में आपकी उपलब्धियों का कितना ही बखान किया जाए, कम है. लेकिन इससे इतर एक व्यक्ति के रूप में, एक ह्यूमन बीइंग के तौर पर, दुनियाभर के लोग आपसे प्रेरित होते हैं. आपके किस्से सुना-सुना कर बुजुर्ग अपने घर के बच्चों में संस्कार और अनुशासन के बीज बोते हैं.
रतन टाटा, आप एक ही थे 'वन पीस'. आप जैसा शख्स भला हुआ कहीं!
दोस्ती की तो ऐसी निभाई कि खुद से 55 साल छोटे युवक को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया.
प्यार किया तो ऐसे किया कि स्वार्थ नहीं दिखाया, ताउम्र शादी नहीं की और त्याग के मिसाल बन गए.
सादगी ऐसी, जिसकी दुनिया कायल रही और समर्पण ऐसा कि खुद के लिए बहुत कम वक्त निकाल पाए.
दानवीर ऐसे कि 2008 की मंदी के दौर में भी अपनी यूनिवर्सिटी को 50 मिलियन डॉलर दान कर दिए.
दयालु इतने कि इंसान तो इंसान, बेजुबान जानवरों के लिए भी मसीहा बन गए. एनिमल हॉस्पिटल भी खोला.
करुणा दिखाई तो ऐसी कि कुत्ते के बीमार पड़ने पर ब्रिटेन के प्रिंस से मिलने वाले सम्मान को किनारे कर दिया.
परोपकारी ऐसे कि शिक्षा और स्वास्थ्य समेत आम लोगों के हित से जुड़े सैकड़ों फैसले लिए, अनगिनत काम किए.
राष्ट्रभक्ति का कभी दिखावा नहीं किया, बल्कि अपनी रफ्तार से देश के लिए वो सब करते चले गए, जो जरूरी था.
1991 में टाटा ग्रुप की ड्राइविंग सीट पर बैठे तो ये वही दौर था, जब भारत ने अपनी इकोनॉमी के दरवाजे खोले और देखते ही देखते तत्कालीन चेयरमैन के रूप में आपने 'एक छोटी फर्म से शुरुआत करने वाले'' टाटा ग्रुप को 'वैश्विक महाशक्ति' में बदल दिया.
आपने बिजनेसमैन और इंडस्ट्रियलिस्ट यानी एक व्यवसायी और उद्योगपति के बीच का फर्क समझाया. उद्योगपति के तौर पर आप देश की थाती रहे.
आपने जो किया, वो यूं ही कोई उद्योगपति नहीं कर पाता, बल्कि राष्ट्र के प्रति, मानवता के प्रति वो भावनाएं जरूरी हैं, वो दृढ़ इच्छा शक्ति चाहिए होती है, जो आपके पास थीं. और तभी तो हम देशवासियों के दिल में उतर गए. लेकिन अफसोस यही कि जैसा रईस फरोग लिखते हैं-
लोग अच्छे हैं बहुत, दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है, तो बस ये है कि मर जाते हैं
अपने टाटा ग्रुप की ही तरह आपने देश को गढ़ने की परंपरा को जारी रखा. टाटा ग्रुप ने ही तो टाटा स्टील के रूप में देश को पहली स्टील कंपनी दी. ताज के रूप में देश को पहला 5 स्टार होटल दिया. पहली IT सर्विस कंपनी, पहली कॉस्मैटिक कंपनी, पहला आयोडाइज्ड नमक, पहली घड़ी, पहला AC और यहां तक कि पहली एयरलाइन भी टाटा ग्रुप ने ही दी. और मानद चेयरमैन रहते हुए आप एयर इंडिया की घर वापसी के भी सूत्रधार बने.
आपने एक आम आदमी बन कर उनके खास सपने देखे और एक उद्योगपति की भूमिका में उन सपनों को पूरा करने में लग गए.
एंटरप्रेन्योरशिप का दौर चला तो आपने 30 से ज्यादा स्टार्टअप में निवेश कर युवा उद्यमियों को आगे बढ़ाया.
जाने कितनी ही प्रेरणाएं, कितनी ही कहानियां आपके भीतर समाहित रही हैं. दरअसल आपका पूरा जीवन एक ऐसी कहानी की तरह है, जो देश-दुनिया के लोगों को प्रेरित करती रहेगी. ये कहानी हमें और सुननी थी, आदरणीय! लेकिन आप तो...
आपके लिए साकिब लखनवी के लिखे को थोड़ा बदलें तो यूं होगा कि
'बड़े शौक से सुन रहा था जमाना,
तुम ही सो गए दास्तां कहते-कहते.'
रतनजी टाटा, आपको लेकर अभी जो दिल का हाल है, वही दिल्ली का हाल है, मुंबई का हाल है और वही देश-दुनिया में आपके चाहने वालों का हाल है.
रहमान फारिस के लिखे के साथ विराम लेता हूं कि
कहानी खत्म हुई और ऐसी खत्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियां बजाते हुए.
अलविदा देश के रत्न! अलविदा हमारे कोहिनूर! अलविदा रतन टाटा!