4 साल पहले ये सोचना मुश्किल था कि चुनाव हारने, कैपिटल हिल में हंगामा होने, फिर लंबे कानूनी झमेलों में फंसने के बावजूद ट्रंप अगले राष्ट्रपति चुनाव में फिर खड़े होंगे और जबरदस्त जीत दर्ज करेंगे. उनके रिपब्लिकन पार्टी के प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट बनने पर भी संशय था. अब कमला हैरिस को मात देकर डॉनल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल और अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनने के लिए तैयार हैं. ट्रंप 270 इलेक्टोरल वोट्स का जादुई आंकड़ा पार कर चुके हैं.
आखिर ट्रंप ने अमेरिकी राजनीति में ऐसा क्या नुस्खा घोला कि 4 साल पहले हारी बाजी को इस बार वे जीतने में कामयाब रहे. दरअसल ट्रंप की जीत के पीछे वोटर्स में उनकी पर्सनल अपील के साथ-साथ उनकी विदेश नीति, अमेरिकी इकोनॉमी और मतदाताओं का मूड, ट्रंप की इमिग्रेशन पॉलिसी और कैंपेन से जुड़ी दूसरी चीजें जिम्मेदार रही हैं. स्विंग स्टेट्स में भी ट्रंप के उठाए मुद्दों ने अहम अंतर बनाया. यहां हम इन्हीं मुद्दों पर चर्चा करने वाले हैं.
एंटी इमिग्रेशन पॉलिसी
ट्रंप इमिग्रेशन पॉलिसी को लेकर बेहद सख्त रहे हैं और ये मुद्दा उनकी राजनीति के केंद्र में रहा है. वे लगातार अवैध प्रवास से उपजे खतरे और अव्यवस्था को लेकर चेतावनी देते रहे. अपने पहले चुनाव में तो वे मेक्सिको की बॉर्डर पर दीवार बनाने की बात तक कह चुके थे. इस चुनाव में भी उन्होंने अवैध प्रवासियों द्वारा कानून उल्लंघन के कुछ मामलों में मृत्यु दंड दिए जाने की तक वकालत की.
उन्होंने H-1B वीजा में कटौती की वकालत भी की, उनके पहले कार्यकाल में इसकी अप्रूवल रेट में भी काफी गिरावट आई थी. हालांकि उनपर वोटों की लामबंदी के लिए प्रवासियों के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर स्थानीय आबादी में डर बढ़ाने के आरोप लगते रहे हैं.
कुलमिलाकर उन्होंने इस मुद्दे का वोटबंदी के लिए सफल इस्तेमाल किया है. इसका पता न्यूयॉर्क टाइम्स/सिएना कॉलेज नेशनल पोल में भी पता चलता है, जिसमें 15% लोगों ने माना था कि उनके लिए इमिग्रेशन सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है, जो उनके वोट डालने के पैटर्न को प्रभावित करेगा.
विदेश नीति पर बेहद स्पष्ट ट्रंप
अमेरिकी जनता का एक बड़ा हिस्सा बाकी दुनिया के युद्धों में अमेरिकी पैसे के इस्तेमाल को बर्बादी मानता रहा है.
डॉनल्ड ट्रंप बाहरी युद्धों, यहां तक कि नाटो में भी अमेरिकी पैसे के बेतहाशा इस्तेमाल का विरोध करते रहे हैं. उनके दबाव के चलते ही पिछले कार्यकाल के दौरान नाटो देशों और ईस्ट एशियन देशों ने अपना रक्षा बजट बढ़ाया था. कुलमिलाकर उन्होंने इस मुद्दे से भी जनता की नब्ज पकड़ने की कोशिश की, जो दुनिया के तमाम संकटों से खुद को दूर रखना चाहती है.
ट्रंप यूक्रेन युद्ध, इजरायल समेत तमाम विदेश नीति के मुद्दों पर काफी मुखर रहे हैं. ट्रंप ने कई बार ये दावा किया है कि वे सत्ता में आते ही यूक्रेन में जंग रुकवाने की दिशा में ठोस कोशिश करेंगे. अमेरिकी जनता के एक बड़े हिस्से में यूक्रेन युद्ध पर बाइडेन प्रशासन के रवैये को लेकर नाराजगी रही है, जिसका लाभ भी ट्रंप को मिला.
इकोनॉमी और वोटर्स
न्यूयॉर्क टाइम्स/सिएना कॉलेज पोल में अक्टूबर में 75% अमेरिकी वोटर्स ने माना था कि इकोनॉमी की हालत खराब है. जबकि रविवार सुबह रिलीज हुए ABC/Ipsos पोल में 74% वोटर्स ने माना था कि देश गलत दिशा में जा रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक 1980 से ये आंकड़ा अमेरिकी चुनाव की दिशा बताने में सफल रहा है. स्पष्ट है कि बाइडेन प्रशासन को लेकर अमेरिकी लोगों के एक बड़े हिस्से में नाराजगी रही. जबकि ग्रोथ और महंगाई के मामले में अमेरिकी अर्थव्यवस्था बहुत बुरा नहीं कर रही है.
लेकिन ट्रंप ने लोगों में घर कर चुकी इस नाराजगी को ना केवल भुनाया, बल्कि इसे अपने भाषणों से बढ़ाया भी. वे अपने पिछले कार्यकाल को अर्थव्यवस्था के लिए बाइडेन प्रशासन से बेहतर बताते रहे. उन्होंने अमेरिकी हितों की रक्षा करने के लिए टैरिफ बढ़ाने की नीति की वकालत की. इसी तरह उन्होंने अमेरिकी कर्मियों को ज्यादा बेहतर रोजगार के लिए H-1B वीजा की संख्या कम करने पर भी जोर दिया.
ट्रंप की वोटर्स में पर्सनल अपील
डेमोक्रेट्स के खेमे में इस चुनाव में काफी वक्त तक कंफ्यूजन बना रहा. बाइडेन आखिर तक बहुत सक्रिय नजर नहीं आ रहे थे. आखिरकार बाइडेन ने कमला हैरिस के लिए जगह खाली की. लेकिन रिपब्लिकन खेमे में ट्रंप को लेकर शुरू से ही साफगोई रही. अपने समर्थक वर्ग में ट्रंप की अपील भी जबरदस्त है. उनकी जीत इसकी गवाह भी है.
पेंसिल्वेनिया गोली कांड, उसमें ट्रंप द्वारा हाथ उठाकर अपनी मजबूती दिखाना, फिर अगला हमला, इन सबने कुल मिलाकर ट्रंप के पक्ष में भावनाओं को मजबूत किया. जबकि उनकी तुलना में कमला हैरिस के पास कोई प्रतिबद्ध समर्थक ग्रुप नजर नहीं आता.
स्विंग स्टेट्स में ट्रंप ने बनाई पकड़
2020 में ट्रंप इन 7 स्विंग स्टेट्स में सिर्फ नॉर्थ कैरोलीना ही जीते थे. जबकि इस बार वे स्विंग स्टेट्स में क्लीन स्वीप करते नजर आ रहे हैं. लेख लिखे जाने तक ट्रंप पेंसिल्वेनिया, जॉर्जिया और नॉर्थ कैरोलीना में जीत दर्ज कर चुके हैं. जबकि नेवादा में 4 प्वाइंट, विस्कॉन्सिन में 4 प्वाइंट और मिशीगन में 6 प्वाइंट की बढ़त बना चुके हैं.
इमिग्रेशन और इकोनॉमी इस अमेरिकी चुनाव के सबसे अहम मुद्दे रहे. स्विंग स्टेट्स में लोगों के इन मुद्दों पर रुझान से ही उनके वोटिंग पैटर्न और अब आए नतीजों की वजह पता चलती है.
मॉर्निंग कंसल्ट के सर्वे से स्पष्ट पता चलता है कि स्विंग स्टेट्स में लोगों ने दोनों मुद्दों से बेहतर निपटने के लिए ट्रंप को हैरिस पर वरीयता दी.
सर्वे के मुताबिक इमिग्रेशन के मामले से निपटने के लिए एरिजोना में 51%, जॉर्जिया में 54%, मिशिगन में 51%, नेवादा में 54%, नॉर्थ कैरोलीना में 55%, पेंसिल्वेनिया में 55% और विस्कॉन्सिन में 53% लोगों ने ट्रंप पर विश्वास जताया. जबकि इन राज्यों में महज 37-42% लोगों ने ही कमला हैरिस पर इमिग्रेशन के मुद्दे को बेहतर ढंग से डील करने का विश्वास जताया.
अगर इकोनॉमी को बेहतर करने की बात करें तो एरिजोना में 49%, जॉर्जिया में 51%, मिशिगन में 48%, नेवादा में 52%, नॉर्थ कैरोलीना में 51%, पेंसिल्वेनिया में 49% और विस्कॉन्सिन में 50% लोगों ने ट्रंप पर भरोसा जताया. कमला हैरिस एक भी राज्य में ट्रंप से आगे नहीं रहीं.
यही वो अंतर रहा, जिसने एक बार फिर डॉनल्ड ट्रंप के लिए सत्ता के दरवाजे खोल दिए.