भारत के वित्तीय साख परिदृश्य को ‘नकारात्मक’ से ‘स्थिर’ कोटि में रखा फिच ने

रुपये की विनिमय दर में तेज गिरावट से जूझ रही सरकार बुधवार को वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच की ओर से बड़ा मनोवैज्ञानिक सहारा मिला। फिच ने देश के वित्तीय साख परिदृश्य को पहले से अच्छा करार देते हुए इसे ‘नकारात्मक’ से ‘स्थिर’ श्रेणी में डाल दिया दिया है।

रुपये की विनिमय दर में तेज गिरावट से जूझ रही सरकार बुधवार को वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच की ओर से बड़ा मनोवैज्ञानिक सहारा मिला। फिच ने देश के वित्तीय साख परिदृश्य को पहले से अच्छा करार देते हुए इसे ‘नकारात्मक’ से ‘स्थिर’ श्रेणी में डाल दिया दिया है।

राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने के सरकार के प्रयासों पर सरकारात्मक रूप से देखते हुए फिच रेटिंग्स ने देश के साख परिदृश्य को ‘नकारात्मक’ से ‘स्थिर’ करर दिया। एजेंसी ने देश की मौजूदा ‘बीबीबी’ रेटिंग को बरकार रखा है। डॉलर के मुकाबले रुपया कल 58.96 पर चला गया था लेकिन आज यह रिवर्ज बैंक के हस्तक्षेप से 60 पैसे संभल कर 57.79 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।

एजेंसी ने बयान में कहा, ‘‘परिदृश्य को संशोधित करना वित्त वर्ष 2013-14 के बजट में जताई गई प्रतिबद्धता समेत सरकार द्वारा बजटीय घाटा कम करने के लिए उठाए गए कदमों के साथ कुछ ढांचागत बाधाओं के समाधान की दिशा में प्रगति तथा आर्थिक वृद्धि का नतीजा है।’’

फिच ने आगे कहा कि उसे उम्मीद है कि जीडीपी वृद्धि सुधरेगी और यह 2012-13 के पांच प्रतिशत से बेहतर रहेगी।

बयान के अनुसार हालांकि देश का आर्थिक पुनरूद्धार तब तक धीमा रहेगा जबतक कि निवेश के लिए माहौल स्वस्थ नहीं बनता। इससे आर्थिक वृद्धि की संभावना को ऊपर उठाने में मदद मिलेगी।

फिच ने कहा, ‘‘इसके परिणामस्वरूप 2013-14 में 5.7 प्रतिशत तथा वित्त वर्ष 2014-15 में 6.5 प्रतिशत वास्तविक आर्थिक वृद्धि का अनुमान है।’’ उल्लेखनीय है कि पूर्व में फिच के साथ-साथ स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने घाटे पर अंकुश लगाने तथा निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों के अभाव में भारत की साख घटाकर ‘रद्दी’ श्रेणी में रखने की चेतावनी दी थी।

फिच ने दीर्घकालीन विदेशी और स्थानीय मुद्रा रिण के लिये भारत की साख ‘बीबीबी-’ बनाए रखी है। अल्पकालिक विदेशी मुद्रा ऋण के लिए भारत की साख साख ‘एफ-3’ है।

एजेंसी के अनुसार परिदृश्य में सुधार तथा भारत की निवेश स्तर साख यह प्रतिबिंबित करता है कि सरकार कमजोर अर्थव्यवस्था की पृष्ठभूमि में बजटीय घाटे के दबाव पर अंकुश लगाने में सफल रही है। राजकोषीय घाटा 2012-13 में सकल घरेलू उत्पाद का 4.9 प्रतिशत था जो इससे पूर्व वित्त वर्ष में 5.7 प्रतिशत था।

फिच के अनुसार, ‘‘सरकार ने निवेश के वातावरण तथा वृद्धि की संभावनाओं को प्रभावित करने वाले बुनियादी मुद्दों के समाधान की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। इन कारकों में नियामकीय अनिश्चितता, निवेश परियोजनाओं को मंजूरी देने में देरी तथा आपूर्ति संबंधी बाधाएं शामिल हैं। खासकर बिजली तथा खनन क्षेत्र इससे प्रभावित हैं।’’

एजेंसी के अनुसार बिजली तथा खनन क्षेत्रों में ढांचागत मुद्दों के समाधान से निवेश माहौल आगे और मजबूत होगा। वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा निर्धारित साख के स्तर से सरकार और कंपनियों के लिए बाजार से जुटाए जाने वाले ऋण पर ब्याज की दर प्रभावित हो सकती है।

लेखक NDTV Profit Desk
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