डिप्रेशन (Depression) या अवसाद एक आम मानसिक बीमारी (Mental Illness) है जो हर उम्र और वर्ग के लोगों को हो सकती है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक हाल में आई रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले डिप्रेशन का खतरा अधिक होता है और गर्भवती महिलाओं के डिप्रेशन में चले जाने की आशंका और भी ज्यादा होती है.
यह बात काफी चिंताजनक है, क्योंकि प्रेगनेंसी के दौरान डिप्रेशन का मां के साथ ही साथ उसके बच्चे पर भी बुरा असर पड़ सकता है. महिलाओं में डिप्रेशन के खतरे को कम करने के लिए उसके कारणों को अच्छी तरह समझना जरूरी है. लेकिन उससे पहले जानते हैं कि आखिर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन यानी WHO की रिपोर्ट में डिप्रेशन के बारे में और क्या जानकारी दी गई है.
क्या बताती है WHO की रिपोर्ट?
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के करीब 5% एडल्ट लोगों को जीवन में कभी न कभी डिप्रेशन का सामना करना पड़ता है. जबकि 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में अवसाद से पीड़ित लोगों की संख्या 5.7% है. चिंता की बात यह है कि पुरुषों के मुकाबले 50% ज्यादा महिलाओं को डिप्रेशन की बीमारी होती है. गर्भवती महिलाओं में तो अवसाद का अनुपात और भी अधिक है.
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 10% से भी ज्यादा प्रेगनेंट महिलाएं डिप्रेशन में चली जाती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के गरीब या मध्यम आय वाले देशों में डिप्रेशन के 75% से ज्यादा मरीजों को कोई इलाज नसीब नहीं होता. जाहिर है, बिना इलाज डिप्रेशन से जूझने वाले इन लोगों में बड़ी तादाद प्रेगनेंट महिलाओं की भी होगी. इन हालात में सुधार के लिए महिलाओं में डिप्रेशन की वजह को समझकर उसे दूर करना और सही वक्त पर इलाज मुहैया कराना बेहद जरूरी है.
गर्भवती महिलाओं में क्यों अधिक होते हैं डिप्रेशन के मामले?
ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से प्रेगनेंसी के दौरान महिला में डिप्रेशन के मामले बढ़ जाते हैं. इनमें कुछ वजहें शारीरिक हैं तो कुछ महिलाओं के सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक हालात और भावनाओं से जुड़ी होती हैं.
हार्मोन्स में बदलाव
प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में महत्वपूर्ण हार्मोनल बदलाव होते हैं. एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन काफी बढ़ जाते हैं, जो घबराहट, चिड़चिड़ेपने, चिंता और डिप्रेशन की वजह बन सकते हैं. इसके अलावा कॉर्टिसोल जैसे हार्मोन्स में भी प्रेगनेंसी के दौरान काफी उतार-चढ़ाव होते हैं, जिससे मानसिक तनाव बढ़ता है और महिलाएं कई बार डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं.
भावनात्मक बदलाव
प्रेगनेंसी के दौरान महिलाएं शारीरिक बदलावों के साथ ही साथ भावनात्मक रूप से भी कई तरह के उतार-चढ़ाव का सामना करती हैं. बच्चे के सही सलामत और स्वस्थ रहने की चिंता से लेकर आर्थिक जिम्मेदारी बढ़ने और अपने तमाम रिश्तों में आने वाले बदलावों तक, तमाम बातें ऐसी होती हैं, जो होने वाली मां को भावनात्मक रूप से विचलित कर सकती हैं और डिप्रेशन की तरफ ले जा सकती हैं.
पारिवारिक-सामाजिक सहयोग की कमी
प्रेगनेंसी के दौरान महिला को अपने परिवार, दोस्तों और आस-पास मौजूद समाज के सहयोग और समर्थन की ज्यादा जरूरत पड़ती है. यह सहयोग महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले शारीरिक और भावनात्मक बदलावों से निपटने में मदद कर सकता है. लेकिन जिन गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त पारिवारिक और सामाजिक सहयोग-समर्थन नहीं मिलता, उन्हें डिप्रेशन होने का खतरा अधिक रहता है.
डिप्रेशन की पुरानी हिस्ट्री
जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी से पहले भी डिप्रेशन की समस्या रह चुकी है, उन्हें गर्भावस्था के दौरान फिर से डिप्रेशन होने की आशंका अधिक रहती है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि कई प्रेगनेंसी पुरानी तकलीफों को फिर से उभार देती है. जिन महिलाओं को पहले डिप्रेशन रहा है, वे प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलावों के प्रति भी ज्यादा संवेदनशील हो सकती हैं.
प्रेगनेंसी से जुड़ी मेडिकल समस्याएं
जिन महिलाओं की प्रेगनेंसी में कोई दिक्कत होती है, खासकर उनकी अपनी सेहत या होने वाले बच्चे की सेहत से जुड़ी कोई मेडिकल समस्या होती है, उन्हें डिप्रेशन होने का खतरा अधिक रहता है. प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले डायबिटीज और वक्त से पहले डिलीवरी जैसी जटिलताओं से भी महिलाओं में डिप्रेशन का खतरा बढ़ सकता है. ये समस्याएं शारीरिक दिक्कतों के साथ ही साथ तनाव और चिंता भी पैदा कर सकती हैं, जिससे डिप्रेशन हो सकता है.
डिप्रेशन का मां और बच्चे पर असर
प्रेगनेंसी के दौरान डिप्रेशन का मां और उसके अजन्मे बच्चे दोनों पर बुरा असर पड़ सकता है. अब तक इस बारे में हुई रिसर्च से पता चलता है कि प्रेगनेंसी के दौरान डिप्रेशन के कारण समय से पहले डिलीवरी, जन्म के समय कम वजन और विकास में देरी जैसी समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा प्रेगनेंसी के दौरान डिप्रेशन के चलते कई बार मां और बच्चे की आपसी बॉन्डिंग में भी अड़चन आती है, जिसकी वजह से लंबे अरसे तक बच्चे की मानसिक सेहत और डेवलपमेंट पर बुरा असर पड़ सकता है.
प्रेगनेंसी के दौरान डिप्रेशन का इलाज
प्रेगनेंसी के दौरान डिप्रेशन का इलाज मां और उसके अजन्मे बच्चे दोनों के लिए बेहद जरूरी है. बीमारी की गंभीरता के हिसाब से मनोवैज्ञानिक सलाह, काउंसलिंग या दवा की जरूरत पड़ सकती है. गर्भवती महिलाओं के डिप्रेशन की शुरुआत में ही पहचान हो जाए तो इलाज में आसानी रहती है. इसके लिए डॉक्टर्स और गर्भवती महिलाओं की देखभाल करने वाले हेल्थ केयर वर्कर्स को तो ध्यान देने की जरूरत है ही, साथ ही घर-परिवार के लोगों, दोस्तों का ध्यान देना भी जरूरी है.
भारत में डिप्रेशन के बारे में जागरूकता बढ़ाना बेहद जरूरी है, क्योंकि आम तौर पर मानसिक अवसाद को या तो लोग समझ ही नहीं पाते या फिर समझने के बाद भी उसे छिपाने की कोशिश करते हैं. प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को होने वाले डिप्रेशन की समस्या से सही ढंग से निपटने के लिए उसके आसपास मौजूद पूरे समाज में यह समझदारी विकसित करना जरूरी है कि अवसाद भी किसी अन्य बीमारी की तरह एक मेडिकल समस्या है, जिसे सही इलाज और देखभाल से ठीक किया जा सकता है.