प्राइमरी मार्केट में लगातार हलचल के बावजूद भारत के IPO में रिटेल इन्वेस्टर्स की दिलचस्पी घटती जा रही है. ऐसा घाटे में चल रही कंपनियों के बड़े इश्यू के कारण हुआ है. ऐसी कंपनियों के IPO की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिनमें रिटेल का रिजर्व हिस्सा कम हो गया है.
प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के मेनबोर्ड IPO इश्यू में रिटेल सेगमेंट के लिए कुल अलॉटमेंट पिछले वर्ष 27.42% की तुलना में अभी तक ये घटकर 2024 में 21.6% रह गया है. प्राइमरी रूट से जुटाए गए फंड की कुल वैल्यू 2024 में अब तक 52,618 करोड़ रुपये रही है, जबकि 2023 में ये 49,435 करोड़ रुपये थी. इस सेगमेंट के फ्लो में गिरावट मार्केट रेगुलेटर द्वारा रिटेल इन्वेस्टर्स के जोखिम को कम करने के लिए बनाये गए स्टैच्यूटरी रेगुलेशन का परिणाम है.
मार्केट रेगुलेटर SEBI ने ये अनिवार्य किया है कि किसी भी बुक बिल्ड इश्यू के लिए पब्लिक को दिए जाने वाले नेट ऑफर का कम से कम 35% रिटेल इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स को एलोकेशन के लिए उपलब्ध होना चाहिए. कम से कम 15% हिस्सा NII द्वारा लिया जाएगा और शेष 50% हालांकि इससे अधिक नहीं QIB द्वारा लिया जाएगा.
अगर पब्लिक होने वाली कंपनी ने पिछले तीन वर्षों में प्रॉफिट दर्ज नहीं किया है, तो रिटेल इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स को नेट ऑफर का केवल 10% ही उपलब्ध होगा. QIB बढ़ा हुआ जोखिम उठा सकते हैं क्योंकि उन्हें नेट ऑफर का 75% हिस्सा लेने की अनुमति होती है.
1,000 करोड़ रुपये से अधिक की बड़ी फंड जुटाने वाली 17 कंपनियों में से आठ या लगभग 47% का 2024 में प्रॉफिटेबल ट्रैक रिकॉर्ड नहीं रहा है. इसकी तुलना पिछले वर्ष में 16 कंपनियों में से केवल तीन या 19% कंपनियों का ट्रैक रिकॉर्ड प्रॉफिटेबल नहीं था.
इंस्टीट्यूशनल बायर्स द्वारा उठाया जाने वाला जोखिम इस वर्ष कुल अलॉटमेंट में बढ़ोतरी से स्पष्ट है. जबकि रिटेल इन्वेस्टर्स के कुल अलॉटमेंट में गिरावट आई, इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स के लिए ये 2024 में 56.95% से बढ़कर 63.5% हो गया है.
आनंद राठी एडवाइजर्स के इन्वेस्टर्स बैंकिंग CEO समीर बहल के मुताबिक, इस प्रवृत्ति को पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि घाटे में चल रही कंपनियों में रिटेल भागीदारी में कमी उन्हें संभावित नुकसान से बचा सकती है, लेकिन रिटेल इन्वेस्टर्स को संभावित रूप से हाई-ग्रोथ वाली कंपनियों से वंचित कर सकती है.
बहल ने कहा, 'मार्केट को रिटेल इन्वेस्टर्स को वेल्थ क्रिएशन के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ उनको प्रोटेक्ट करने की भी जरूरत है.'
उन्होंने कहा कि रेगुलेटरी बॉडीज को भी ओवरसाइट और एनफोर्समेंट के माध्यम से इन्वेस्टर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इस संतुलन को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए.
गो डिजिट जनरल इंश्योरेंस, प्रीमियर एनर्जीज, ब्रेनबीज सॉल्यूशंस, ओला इलेक्ट्रिक मोबिलिटी इस साल के बड़े इश्यू में से थे, जो पिछले तीन वर्षों में से किसी एक में घाटे में चल रहे थे. शेयर बाजारों में पहली बार लिस्ट होने वाली अन्य घाटे वाली कंपनियों में जुनिपर होटल्स और अकम्स ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल्स शामिल हैं.
रिटेल इन्वेस्टर्स ने लिस्टिंग के बाद पहले सप्ताह के भीतर अपने आवंटित शेयरों में से 42.7% बेच दिए. SEBI के हालिया स्टडी के मुताबिक, अप्रैल 2021 और दिसंबर 2023 के बीच लिस्टेड 144 IPO के डेटा का विश्लेषण किया गया था. इसी अवधि में इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स ने कुल 50.2% आवंटित शेयर बेचे.
इस साल मेनबोर्ड IPO चौथी सबसे बड़ी संख्या दर्ज करने की ओर अग्रसर हैं. ये देश के शेयर बाजार की पॉजिटिव भावना से प्रेरित है, जो घरेलू फ्लो मदद से लाइफ टाइम हाई के आसपास है.
प्राइम डेटाबेस के मुताबिक, अप्रैल 2024 से अब तक 34 IPO लॉन्च किए गए हैं, जिससे ये पांच महीने का दौर कम से कम छह वर्षों में प्राइमरी मार्केट गतिविधि के लिए सबसे सक्रिय समय बन गया है. विदेशी निवेशक भारत के प्राइमरी मार्केट में लिक्विडिटी डाल रहे हैं, जबकि सेकंडरी बाजार में कारोबार करने वाले शेयर महंगे हो गए हैं.
घरेलू IPO में मोमेंटम कमजोर पड़ने की आशंका नहीं है
नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 2024 कैलेंडर वर्ष में विदेशी निवेशकों ने प्राइमरी मार्केट में 58,788.5 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे, जिसमें IPO, प्रेफरेंशियल अलॉटमेंट और बड़े निवेशकों को बिक्री शामिल है. ये 2021 के बाद से सबसे अधिक है.
इस बीच, FPI ने सेकंडरी बाजार में 2,978.7 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं. इस वर्ष में FPI ने 55,801 करोड़ रुपये के नेट खरीदार थे, जिसका नेतृत्व पूरी तरह से प्राइमरी मार्केट निवेश ने किया.
भारतीय IPO में फ्रेश इश्यूज अपवर्ड ट्रेंड की ओर बढ़ रहे हैं. हालांकि ये ग्रोथ कैपिटल डिप्लॉयमेंट में प्रोपोर्सनल बढ़ोतरी नहीं हुई है.
प्राइम डेटाबेस के मुताबिक, FY25 में, सितंबर तक कुल IPO में फ्रेश इश्यू का हिस्सा 45% रहा है. ये पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 34% की बढ़ोतरी है, जो मौजूदा हिस्सेदारी को बेचने के बजाय नई पूंजी जुटाने की ओर बदलाव को दर्शाता है. लेकिन फ्रेश इश्यू के माध्यम से विकास को फंडिंग ग्रोथ करने के बजाय, कंपनियां डेट रीपेमेंट और कैपिटल को मजबूत करने को प्राथमिकता दे रही हैं.
प्रोफिटेबिलिटी में गिरावट की चिंताओं के बावजूद देश का IPO बाजार मजबूत बना हुआ है. आने वाले महीनों में पब्लिक होने की तैयारी करने वाली कंपनियों की एक स्थिर पाइपलाइन है, जिसमें हुंडई मोटर इंडिया, स्विगी और एथर एनर्जी प्राइवेट शामिल हैं.
बहल ने कहा कि भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में कई बड़ी स्टार्ट-अप कंपनियां हैं जो अभी भी घाटे में हैं लेकिन प्राइमरी मार्केट के जरिए कैपिटल जुटाना चाहती हैं. बहल ने कहा कि अगर घाटे में चल रही ये कंपनियां IPO के जरिए जुटाई गई पूंजी का इस्तेमाल विस्तार और ऑपरेशन में सुधार के लिए करती हैं, तो इससे उन्हें मुनाफा कमाने और भविष्य के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स को पूरा करने में मदद मिलेगी.
पैंटोमैथ कैपिटल एडवाइजर्स प्राइवेट के मुताबिक, अगस्त में IPO फंड जुटाने की प्रक्रिया 27 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई, जिसमें 10 कंपनियों ने लगभग 17,047 करोड़ रुपये जुटाए ये मई 2022 के बाद से IPO के लिए सबसे व्यस्त अवधि है.
फर्म ने कहा कि भारतीय IPO बाजार के लिए दृष्टिकोण आशाजनक बना हुआ है. इसने अनुमान लगाया है कि घरेलू कंपनियां अगले 12 महीनों में IPO के जरिए 1.50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा जुटा सकती हैं, जो आगे भी जारी गतिविधि और निवेशकों की मजबूत दिलचस्पी का संकेत है.