अलविदा मनमोहन सिंह: अकादमिक जगत से निकला सितारा, जिसे राजनीति में शराफत और अर्थव्यवस्था में सुधारों के लिए याद किया जाएगा

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में नई दिल्ली में निधन हुआ. वे लंबे समय से बीमारियों से जूझ रहे थे.

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पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में दिल्ली में निधन हो गया है. उनकी तबियत बिगड़ने के बाद उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया था.

मनमोहन सिंह के परिवार ने विभाजन, उसके बाद विस्थापन का दंश झेला. लेकिन इसके बावजूद होनहार मनमोहन देश-विदेश में पढ़े, खूब पढ़े. यहीं से उनकी योग्यता को कद्रदान पहचानते रहे. शैक्षणिक जगत से होते हुए, पहले प्रशासन में पहुंचे, वहां से सरकार के हिस्सेदार बने. फिर तो पूरी कहानी है.

राजनीति में उनकी शराफत की तो मिसाल दी जाती हैं. 1993 में एक घोटाले का अनुमान ना लगाने के चलते विपक्ष की जोरदार आलोचना से खफा होकर वे इस्तीफा देने पर अड़ गए थे. हालांकि PM राव ने उनका इस्तीफा लेने से इनकार कर दिया.

तो ऐसे थे मनमोहन सिंह. यहां हम उनकी जिंदगी के सफर पर एक नजर डालते हैं.

शुरुआती जीवन और विदेश में पढ़ाई

मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत में पंजाब प्रांत के गाह (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. वे जब बहुत छोटे थे, तभी उनकी मां गुजर गईं थीं. ऐसे में मनमोहन सिंह का लालन पोषण उनकी दादी ने किया.

बंटवारे के बाद मनमोहन सिंह का परिवार भारत आ गया और अमृतसर में सेटल हो गया. वहीं हिंदू कॉलेज में मनमोहन सिंह की पढ़ाई हुई. इसके बाद वे होशियारपुर में पंजाब यूनिवर्सिटी पहुंचे. वहां उन्होंने इकोनॉमिक्स में बैचलर्स और मास्टर्स की डिग्री की. इसके बाद वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी पढ़ाई करने पहुंचे. यहां से वे डी-फिल करने ऑक्सफोर्ड पहुंचे.

शैक्षणिक से प्रशासनिक क्षेत्र तक का सफर

1957 में मनमोहन सिंह भारत वापस लौटे. इसके बाद उन्होंने अगले कुछ साल पंजाब यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स पढ़ाया. 1966 में वे UNCTAD के साथ काम करने चले गए.

1969 से 1971 के बीच मनमोहन सिंह DSE, DU में इंटरनेशनल ट्रेड के प्रोफेसर थे. इस दौरान उन्हें सरकार में सलाहकार की भूमिका भी मिल गई. 1972 में मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त कर दिया गया. 1980 में इंदिरा गांधी सरकार की वापसी के साथ उन्हें प्लानिंग कमीशन का सदस्य बनाया गया. वे 1982 तक इस पद पर बने रहे.

रिजर्व बैंक के गवर्नर, फिर PM के सलाहकार बने

1982 में मनमोहन सिंह के जीवन में तब बड़ा मोड़ आया, जब उन्हें रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया गया. तब वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी थे. वे 1985 तक इस पद पर रहे.

रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने कुछ समय जेनेवा स्थित एक थिंकटैंक में काम किया. नवंबर 1990 में वे वापस लौटे और चंद्रशेखर सरकार में उन्हें प्रधानमंत्री का सलाहकार नियुक्त किया गया. 1991 में उन्हें UGC का चेयरमैन भी नियुक्त किया गया.

राजनीति में एंट्री और आर्थिक सुधार

1991 में नरसिम्हा राव की सरकार बनी. तब भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद नाजुक दौर से गुजर रही थी. भारत का फिस्कल डेफिसिट 8% से ज्यादा पहुंच गया था. ऐसी स्थिति में नरसिम्हा राव ने अपनी कैबिनेट में वित्त मंत्री का पद एक टेक्नोक्रैट को देने का फैसला किया. इस तरह मनमोहन सिंह की राजनीति में एंट्री हुई. वे वित्त मंत्री बने. उन्हें असम से राज्यसभा भेजा गया.

उन कठिन स्थितियों में मनमोहन सिंह और पी चिंदबरम बहुत अच्छे से भारतीय अर्थव्यवस्था के हालातों को समझ रहे थे. IMF भारत को कर्ज देने के लिए तैयार था, लेकिन साथ ही कुछ शर्तें भी लगाना चाहता था. इन शर्तों से भारतीय अर्थव्यवस्था को बाहरी कंपनियों और पूंजी के लिए और ज्यादा खोला जाना था. लेकिन सरकार में इसका विरोध था.

तब मनमोहन सिंह और उनके साथ पी चिदंबरम ने सरकार और प्रधानमंत्री को समझाया कि ये सुधार कितने जरूरी हैं और अगर उन्हें नहीं किया जाता तो भारतीय अर्थव्यवस्था ढह जाएगी.

इन्हीं सुधारों को उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण (LPG) कहा जाता है. परमिट राज खत्म किया गया. इस तरह भारत की अर्थव्यवस्था को सोशलिस्ट से कैपिटलिस्ट इकोनॉमी की तरफ मोड़ा गया. रूपये का 20% तक अवमूल्यन किया गया, ताकि 'बैलेंस ऑफ पेमेंट' संकट का समाधान किया जा सके. ऐसी ही तमाम सुधारों की एक श्रृखंला चलाई गई.

1991 के बाद 1995, 2001, 2007 और 2013 में भी मनमोहन सिंह असम से ही राज्यसभा गए. 1998 से 2004 के बीच वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी रहे. 1999 में उन्होंने दिल्ली से लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन वे हार गए.

... जब बने प्रधानमंत्री

2004 में इंडिया शाइनिंग के नारे के बावजूद अटल बिहारी सत्ता में वापसी करने में नाकामयाब रहे. सोनिया गांधी और कांग्रेस लीडरशिप ने अपने वफादार, साफ छवि वाले मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला किया. पहली बार एक ऐसा टेक्नोक्रैट प्रधानमंत्री बनने जा रहा था, जिसने कभी कोई सीधा चुनाव नहीं लड़ा.

उनके कार्यकाल में अर्थव्यवस्था ने और रफ्तार पकड़ी. भारतीय इकोनॉमी 8% के आसपास की रफ्तार से लगातार आगे बढ़ी. 2007 में वो वक्त भी आया, जब भारतीय ग्रोथ रेट 9% पहुंच गई. इस तरह भारत दुनिया का पावरहाउस बनने की तरफ तेजी से आगे बढ़ा. इतना ही नहीं, 2008 में अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील में उनकी मजबूती को भी देश ने देखा. अमेरिका के साथ डील कराने के लिए वे अपने गठबंधन के सहयोगियों के खिलाफ गए, लेफ्ट दलों ने समर्थन वापस ले लिया, उनकी सरकार दांव पर लग गई. फिर भी ये करार हुआ.

मनमोहन सिंह 2008 की वैश्विक मंदी की लहरों में भी भारतीय अर्थव्यवस्था की नाव को पार लगाने में कामयाब रहे और भारत की ग्रोथ रेट बाद के सालों में भी अच्छी बनी रही.

नतीजा ये रहा कि 2009 में फिर UPA सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहा. मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने. कुल मिलाकर वे 10 साल प्रधानमंत्री रहे. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी के बाद वे भारत के सबसे लंबे वक्त तक प्रधानमंत्री रहने वाले शख्स हैं.

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए बड़े कदम तो उठाए गए, लेकिन अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील, मनरेगा, RTI कानून, शिक्षा का अधिकार कानून, खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे अहम काम भी हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गए.

कहा जा सकता है मनमोहन सिंह ने लंबा जीवन जिया, खूब जीवन जिया. विभाजन की पीड़ा झेलने वाले मामूली परिवार से देश के सिरमौर बनने वाले मनमोहन सिंह में हमेशा देश को एक विनम्र और शराफत भरा गार्जियन देखने को मिला. आगे भी सौम्य छवि वाले मनमोहन इस देश को याद आते रहेंगे.

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