सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की नई सीरीज का करें इंतजार या सेकेंडरी मार्केट के जरिए किया जाए निवेश? समझें नफा-नुकसान

SGB को मैच्योरिटी तक होल्ड करने पर ही टैक्स-फ्री कैपिटल गेन का लाभ मिलेगा. मैच्योरिटी से पहले बेचने पर यह बेनिफिट नहीं मिलेगा. समझें सेकेंडरी मार्केट से खरीदने के नफे नुकसान

प्रतीकात्मक फोटो

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) को सोने में निवेश का सबसे बेहतरीन तरीका माना जाता है. इसकी कई वजहें हैं. एसजीबी से निवेशकों को रिटर्न के मामले में दोहरा लाभ होता है.

एक तरफ उन्हें सोने का भाव बढ़ने पर फायदा होता है और दूसरे, सालाना 2.5 प्रतिशत ब्याज भी मिलता है. तीसरा फायदा ये है कि मैच्योरिटी के समय मिलने वाले कैपिटल गेन यानी मुनाफे पर इनकम टैक्स नहीं देना पड़ता. साथ ही सॉवरेन गारंटी की वजह से इंटरेस्ट पेमेंट और रिडेम्पशन पूरी तरह रिस्क-फ्री है. 

SGB में कैसे करते हैं निवेश

SGB की इन खूबियों के बारे में जानकर अगर आप इसमें पैसे लगाना चाहते हैं, तो इसके दो तरीके हैं : 

1. प्राइमरी इश्यू : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया साल में कई बार अलग-अलग सीरीज में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जारी करता है. नई सीरीज सब्सक्रिप्शन के लिए खुलने पर आप उसमें अप्लाई करके SGB खरीद सकते हैं. यानी RBI से सीधे एसजीबी खरीदने के लिए आपको बॉन्ड की नई सीरीज खुलने का इंतजार करना होगा. रिजर्व बैंक ने पिछली सीरीज फरवरी में जारी की थी. उसके बाद से अभी तक कोई नई सीरीज जारी नहीं की गई है. 

2. सेकेंडरी मार्केट : जो निवेशक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड खरीदने के लिए आरबीआई की तरफ से नई सीरीज जारी होने का इंतजार नहीं करना चाहते, उनके लिए सेकेंडरी मार्केट का रास्ता भी खुला है. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड 8 साल में मैच्योर होते हैं. लेकिन जो निवेशक मैच्योरिटी से पहले अपने बॉन्ड बेचना चाहते हैं, वे सेकेंडरी मार्केट का रुख करते हैं और एक्सचेंजों के जरिए अपनी होल्डिंग्स को बेचते हैं. जहां से दूसरे निवेशक उन्हें खरीद सकते हैं. लेकिन सेकेंडरी मार्केट से एसजीबी खरीदने का फैसला करने से पहले इसकी प्राइसिंग और रिटर्न समेत पूरी जानकारी होना जरूरी है. पहले ये जानते हैं कि प्राइमरी इश्यू के समय एसजीबी का भाव कैसे तय होता है.  

कैसे तय होता है भाव

आरबीआई ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स का भाव तय करने का फॉर्मूला फिक्स किया हुआ है. बॉन्ड की कीमत उसके सब्सक्रिप्शन पीरियड से पहले के तीन कामकाजी दिनों (working days) के दौरान सोने के एवरेज बंद भाव के आधार पर तय की जाती है. मिसाल के तौर पर पिछली बार आरबीआई की सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम (2023-24 सीरीज IV) के लिए सब्सक्रिप्शन 12 से 16 फरवरी 2024 तक खुली थी.

लिहाजा बॉन्ड का भाव 7, 8 और 9 फरवरी को सोने के बंद भाव के औसत के आधार पर 6,263 रुपये रखा गया. इस रेट पर आरबीआई ऑनलाइन एप्लीकेशन और डिजिटल पेमेंट के लिए 50 रुपये का डिस्काउंट भी देता है. जिसे घटाने के बाद पिछली बार एसजीबी का इश्यू प्राइस 6,213 रुपये था. बॉन्ड की मैच्योरिटी यानी रिडेम्पशन का रेट तय करने के लिए भी यही फॉर्मूला इस्तेमाल किया जाता है. यह तो बात हुई आरबीआई द्वारा भाव तय करने के फॉर्मूले की. अब जानते हैं कि सेकेंडरी मार्केट में एसजीबी की कीमतें कैसे तय होती हैं.

सेकेंडरी मार्केट की चुनौतियां  

सेकेंडरी मार्केट में एसजीबी के भाव प्राइमरी इश्यू की तरह किसी फॉर्मूले के आधार पर नहीं, बल्कि एक्सचेंज में सप्लाई और डिमांड के आधार पर तय होते हैं. चूंकि बाजार में अलग-अलग सीरीज के बॉन्ड बिक्री के लिए आते हैं, इसलिए उनकी कीमतें भी अलग अलग होती हैं. यानी अलग-अलग मैच्योरिटी वाले और अलग-अलग कीमत पर खरीदे गए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, एक्सचेंज में अलग-अलग रेट पर खरीदे-बेचे जाते हैं. 

वॉल्यूम और डिमांड का असर

जरूरी नहीं कि निवेशक जिस सीरीज के बॉन्ड बेचना चाहते हों, उसके पर्याप्त खरीदार बाजार में मौजूद हों. अगर सप्लाई की तुलना में डिमांड कम हुई तो, कीमत कम मिलेगी. वहीं, अगर किसी सीरीज के बॉन्ड को बेचने वाले कम हों और खरीदार ज्यादा, तो बॉन्ड की कीमत बेहतर मिलेगी. कम वॉल्यूम और अनिश्चित डिमांड के कारण कई बार किसी खास सीरीज के बॉन्ड में कई दिनों या हफ्तों तक जीरो वॉल्यूम भी देखने को मिल सकता है. 

सोने का आउटलुक और ब्रोकरेज

सेकेंडरी मार्केट की कीमतों पर सोने के मौजूदा भाव के अलावा फ्यूचर आउटलुक का असर भी पड़ता है. इन तमाम वजहों से सेकेंडरी मार्केट में एसजीबी की कीमत का सही अंदाजा लगाना नए निवेशकों के लिए मुश्किल हो सकता है. इसीलिए सेकेंडरी मार्केट से सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड खरीदने का फैसला सिर्फ उनकी कीमत देखकर नहीं करना चाहिए. सेकेंडरी मार्केट से एसजीबी खरीदते और बेचते समय ब्रोकरेज फीस भी देनी पड़ता है. इसका असर भी आपके नेट रिटर्न पर पड़ता है. 

सेकेंडरी मार्केट से SGB खरीदने पर कितना मिलेगा ब्याज?

सेकेंडरी मार्केट से खरीदे गए एसजीबी पर भी सालाना 2.5 प्रतिशत की दर से ही इंटरेस्ट मिलता है. लेकिन इस इंटरेस्ट का कैलकुलेशन बॉन्ड की इश्यू प्राइस पर होगा, सेकेंडरी मार्केट में चुकाई गई कीमत पर नहीं. मिसाल के तौर पर 6,000 रुपये के इश्यू प्राइस वाले एसजीबी को अगर आप सेकेंडरी मार्केट से 7,000 रुपये में खरीदते हैं, तो उस पर 2.5 परसेंट इंटरेस्ट 6,000 रुपये पर जोड़कर 150 रुपये मिलेगा, 7000 रुपये के हिसाब से 175 रुपये नहीं. यानी आपके लिए बॉन्ड का असली यील्ड या रिटर्न 2.5 फीसदी नहीं, बल्कि 2.14 फीसदी होगा. 

सेकेंडरी मार्केट से SGB खरीदें या नहीं?

अब आते हैं इस सवाल पर कि निवेशकों को सेकेंडरी मार्केट से सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड खरीदना चाहिए या नहीं. जो इनवेस्टर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड खरीदने के लिए आरबीआई के अगले इश्यू का इंतजार नहीं करना चाहते, वे सेकेंडरी मार्केट से खरीदने पर विचार कर सकते हैं. लेकिन सेकेंडरी मार्केट से एसजीबी तभी खरीदना चाहिए, जब बॉन्ड को बाकी बचे मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड करना हो. इसकी कई वजह हैं:  

  • सेकेंडरी मार्केट से खरीदे गए बॉन्ड को मैच्योरिटी से पहले बेचा, तो दोबारा ब्रोकरेज देना पड़ेगा, जिससे लागत बढ़ेगी यानी नेट रिटर्न घटेगा.

  • सेकेंडरी मार्केट में डिमांड और वॉल्यूम आमतौर पर कम रहते हैं. लिहाजा बेचते समय अच्छा भाव मिलना आसान नहीं होगा. 

  • एसजीबी को मैच्योरिटी तक होल्ड करने पर ही टैक्स-फ्री कैपिटल गेन का लाभ मिलेगा. मैच्योरिटी से पहले बेचने पर यह बेनिफिट नहीं मिलेगा. 

 सेकेंडरी मार्केट में एसजीबी की प्राइसिंग और डिमांड-वॉल्यूम की पेचीदा बातों को जो निवेशक पूरी तरह नहीं समझते, उनके लिए यही बेहतर है कि वे रिजर्व बैंक की तरफ से सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की नई सीरीज जारी किए जाने का इंतजार करें.

Also Read: सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स (SGBs) क्यों हैं सोना खरीदने का सबसे बेहतर विकल्प?

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