आप किसी शहर में नौकरी करते हैं और किराये का फ्लैट लेकर रहते हैं, अक्सर आपका खाना बनाने का मन नहीं कर रहा है. ऐसा आमतौर पर हर अकेले रहने वाले नौकरीपेशा के साथ होता है. आप फोन पर उंगलियों घुमाते हैं और स्विगी या जोमैटो आपका पसंदीदा खाना लेकर हाजिर हो जाते हैं. ये तरीका आसान तो है ही, साथ ही ऑनलाइन ट्रांजैक्शन होने से पैसों से जुदाई भी उतनी महसूस नहीं होती.
पर क्या कभी आपने सोचा है कि ये ऑनलाइन खाना मंगवाना आपकी जेब पर कितना असर डालता है?
9 से 5 की दौड़-भाग भरी जिंदगी से वापस अपने फ्लैट पर आते ही अगर लजीज बिरयानी मिल जाए या छोले- भटूरे के साथ लस्सी हो जाए तो बात ही क्या. मुंबई में रहने वाला अमर भी इसी स्थिति में काम करने वाला एक 26 साल का लड़का है. यूट्यूब शॉर्ट्स पर लजीज खाना देखकर वो मनपसंद खाना मंगवाता है. पहले ये आदत कभी- कभी की थी, पर अमर ने पाया कि ये अब हर दूसरे दिन ही होने लगा है. कुछ ही महीनों में अमर ने जब खाने पर अपना खर्च देखा, तो वो हैरान रह गया.
ये कहानी सिर्फ अमर की ही नहीं है, अधिकतर लोग इसी चीज से जूझ रहे हैं. बढ़ते ऑनलाइन फूड डिलीवरी ऐप्स के चलन से अमर जैसे कई नौजवानों का बजट बिगड़ रहा है.
कैशलेस ट्रांजैक्शंस से बढ़ रहा है खर्च ?
कैशलेस ट्रांजैक्शंस की सहूलियत से आम आदमी का वित्तीय व्यवहार बदला है. UPI से ई-वॉलेट जैसे डिजिटल पेमेंट्स ने लेनदेन को काफी आसान बना दिया है.
साल 2024 में अमेजॉन पे और Kearney India की एक रिपोर्ट में सामने आया कि करीब 90% भारतीय उपभोक्ता ऑनलाइन खरीदारी के लिए ऑनलाइन पेमेंट करना पसंद करते हैं.
एडिलेड विश्वविद्यालय और मेलबर्न विश्वविद्यालय की एक रिसर्च के मुताबिक लोग कैश के मुकाबले क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड से 30% ज्यादा खर्च करते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि पैसे से अलग होने की भावना इसमें नहीं होती.
एसोसिएशन फॉर कंज्यूमर रिसर्च के जर्नल में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि केवल कुछ टैप से खाना ऑर्डर करना, खर्च से जुड़ी मनोवैज्ञानिक बाधाओं को खत्म कर देता है और खर्च बढ़ जाता है.
IIM बेंगलुरु की एक स्टडी के मुताबिक अतिरिक्त चार्ज जिसमें डिलीवरी फीस, सर्विस चार्ज और पैकिंग की लागत से पूरे बिल में 20% का इजाफा हो जाता है. प्रिंटेड प्राइस भले ही कम हो पर ओवरटाइम आदि मिलाकर जेब पर बोझ डालते हैं. साथ ही प्रोमोशनल ऑफर और डिस्काउंट भी बहुत बार बिना जरूरतों के सामान को खरीदने का कारण बन जाते हैं.
बोरडम मील
क्या आपने कभी सिर्फ इसलिए खाना मंगाया है क्योंकि आप बोर हो रहे हैं ? इस व्यवहार को ‘बोरडम मील’ कहते हैं. साल 2023 में जोमैटो के एक सर्वे में ये सामने आया कि 25% भारतीय लोग खाना रात 8 बजे से 11 बजे के बीच ही मंगाते हैं.
जब लोग बोरियत दूर करने के उपाय के रूप में फूड डिलीवरी ऐप्स का उपयोग करते हैं, तो वे न केवल खाने के लिए भुगतान करते हैं, बल्कि तत्काल संतुष्टि के लिए भी भुगतान करते हैं. रूंगटा सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड के CEO हर्षवधन रूंगटा के मुताबिक इमोशन के जोर में ज्यादा खर्च हो सकता है और पूरा बजट भी बिगड़ सकता है.
फूड ऐप्स को इस्तेमाल करने के लिए किया जाता है प्रेरित
अंत में स्विगी और जोमैटो एक व्यापार हैं और प्रॉफिट में रहना ही उनका लक्ष्य है. जिसके लिए वे नोटिफिकेशंस, लिमिटेड टाइम ऑफर और पर्सनलाइज्ड रिकमेंडेशन जैसी तकनीक इस्तेमाल करते हैं, जिससे लोगों में लालसा बढ़ती है और वे खाना मंगाते हैं.
तो अगली बार जब आप देर रात बिरयानी ऑर्डर करें या दोपहर में पिज्जा मंगाए, तो एक बार अमर के कम होते बैंक बैलेंस को जरूर याद कर लीजिएगा. आपकी थोड़ी सी सूझबूझ से आप अपनी गाढ़ी कमाई को पहले से बेहतर ढंग से बचा पांएगे.