केंद्रीय कैबिनेट की मीटिंग में यूनिफाइड पेंशन स्कीम को मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने NPS को लेकर लंबे समय से चली आ रही केंद्रीय कर्मियों की नाराजगी दूर कर दी है. UPS के तहत सरकारी कर्मियों को OPS यानी ओल्ड पेंशन स्कीम की तरह ही सैलरी का 50% अमाउंट एश्योर्ड पेंशन के तौर पर मिलेगा.
साल 2004 में सरकार, OPS की जगह NPS यानी न्यू पेंशन स्कीम लेकर आई थी, जिसमें एश्योर्ड पेंशन को हटा दिया गया था. इसमें सरकारी कर्मी का कंट्रीब्यूशन जोड़ा गया था. साथ ही ये मार्केट लिंक पेंशन स्कीम बना दी गई थी.
समीक्षा, सिफारिशें और मंजूरी
पेंशन स्कीम को मार्केट से लिंक बनाए जाने और कुछ अन्य बदलावों को लेकर केंद्रीय कर्मी लंबे समय से विरोध कर रहे थे. इसके बाद केंद्र सरकार ने पेंशन सिस्टम की समीक्षा के लिए कैबिनेट सचिव (तत्कालीन वित्त सचिव) TV सोमनाथन की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थी.
इस कमिटी ने अलग-अलग राज्यों के स्टेकहोल्डर्स के साथ 100 से ज्यादा बैठकों के बाद अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी, जिसके बाद सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम को इंट्रोड्यूस किया.
NDTV से बातचीत में कैबिनेट सचिव सोमनाथन ने UPS को सरकारी कर्मियों के हित वाली स्कीम बताया है. उन्होंने कहा कि उन्हें ज्वाइंट कंसल्टेटिव सिस्टम में राज्य सरकारों और कर्मचारियों से उत्कृष्ट सहयोग मिला. उन्होंने कहा कि सरकार का ये फाइनेंशियल दृष्टि से विवेक भरा फैसला है. ये नागरिकों और कर्मचारियों के लिए परफेक्ट है.
क्या है NPS, क्यों लाया गया था?
NPS यानी न्यू पेंशन स्कीम सरकारी कर्मियों को पेंशन देने की ऐसी व्यवस्था है, जिसमें सरकार के साथ-साथ कर्मियों का भी कंट्रीब्यूशन होता है. इसमें जमा राशि को मार्केट में लगाया जाता है और रिटर्न के आधार पर पेंशन तय होती है.
20 साल पहले तक चली आ रही ओल्ड पेंशन स्कीम अन-फंडेड थी. यानी सरकार पेंशन के तौर पर आखिरी सैलरी का 50% दे तो रही थी, लेकिन इसके लिए अलग से कोई रिजर्व राशि नहीं निकालती थी, न ही कोई फंड जुटाती थी. ऐसे में केंद्र हो या राज्य सरकार, उनके बजट का एक बड़ा हिस्सा पेंशन पर खर्च हो जाता था.
आंकड़ों से पता चलता है कि 1990-91 में केंद्र का पेंशन बिल जो करीब 3,272 करोड़ रुपये था, 2020-21 तक 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गया. वहीं पेंशन पर सभी राज्यों का कुल खर्च 3,131 करोड़ रुपये से 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया. ऐसे में NPS से भार काफी हद तक कम हुआ.
2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में देश की पेंशन नीतियों में सुधार के लिए नीतियां तय हुईं और जनवरी 2004 से NPS लागू कर दिया गया. जनवरी 2004 के बाद NPS ने OPS की जगह ले ली. इस तारीख के बाद सरकारी सेवा में शामिल होने वाले लोगों को न्यू पेंशन स्कीम में डाल दिया गया था.
NPS को लेकर क्यों था असंतोष?
ओल्ड पेंशन स्कीम में सरकारी कर्मी निश्चिंत रहते थे. 50% एश्योर्ड पेंशन, कोई कंट्रीब्यूशन नहीं और भी फायदे. लेकिन इससे सरकारी फंड पर बहुत बड़ा बोझ पड़ता था. इसके लिए सरकार NPS लेकर आई तो कर्मियों का विरोध सामने आने लगा.
जनवरी 2004 में लाई गई न्यू पेंशन स्कीम से एश्योर्ड पेंशन हटा दिया गया था. यानी जनवरी 2004 से पहले OPS के तहत पेंशनर्स को आखिरी सैलरी का जो 50% हिस्सा पेंशन के तौर पर मिलता था, उसमें बदलाव करके एश्योर्ड पेंशन हटा दी गई थी.
दूसरा बदलाव कंट्रीब्यूशन से जुड़ा था. इसके तहत सरकारी कर्मचारी की सैलरी (Basic+DA) में से 10% काट लिए जाने का प्रावधान किया गया. यानी किसी कर्मी की सैलरी 50,000 रुपये है तो उसमें से 5,000 रुपये काट कर पेंशन फंड में जमा कर दिया जाता था. सरकार भी अपनी ओर से इसमें पैसे डालती थी.
साल 2019 में सरकार की ओर से कंट्रीब्यूशन बढ़ाकर 14% कर दिया गया. कुल 24% यानी कर्मी की ओर से 5,000 रुपये और सरकार की ओर से 7,000 रुपये, कुल 12,000 रुपये पेंशन फंड में जाता था.
पेंशन फंड में जाने वाली रकम को सरकारी बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों की स्कीम्स में इन्वेस्ट किया जा रहा था. यानी NPS को मार्केट लिंक स्कीम बना दिया गया.
NPS के तहत पेंशन फंड की राशि 9 फंड मैनेजरों की ओर से मार्केट में लगाई जा सकती हैं. इनमें SBI, LIC, UTI, HDFC, ICICI, कोटक महिंद्रा, आदित्य बिड़ला, टाटा (Tata) और मैक्स (Max) शामिल हैं. इनकी ओर से हाई रिस्क और लो रिस्क स्कीम्स में निवेश का विकल्प रहता है. इन स्कीम्स में रिटर्न 8% से लेकर 15% तक रह सकता है.
इन्वेस्टमेंट और रिटर्न की रकम को NPS के तहत रिटायरमेंट के बाद पेंशन के तौर पर दिए जाने का प्रावधान का भी लंबे समय से कर्मचारी विरोध करते आ रहे थे. अब सरकार कर्मचारियों के लिए नई पेंशन स्कीम UPS लेकर आई है.
NPS से कितना अलग है UPS?
NPS में एश्योर्ड पेंशन की व्यवस्था नहीं थी, जबकि UPS में एश्योर्ड पेंशन के तहत OPS की तरह सैलरी की 50% राशि दिए जाने का प्रावधान है.
सेवाकाल के अंतिम 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50% अमाउंट, पेंशन के तौर पर दिए जाएंगे. न्यूनतम 25 वर्ष की सर्विस जरूरी होगी, जबकि सर्विस पीरियड कम होने पर पेंशन अनुपातिक रूप से कम होती जाएगी.
NPS में एश्योर्ड न्यूनतम पेंशन का भी प्रावधान नहीं है, जबकि UPS में कम सर्विस पीरियड होने के बावजूद 10,000 रुपये/महीने के न्यूनतम पेंशन का प्रावधान है.
UPS में सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन का भी प्रावधान है. पेंशनर के निधन के बाद उनके आश्रित को सरकारी कर्मी के पेंशन की 60% रकम फैमिली पेंशन के तौर पर दी जाएगी.
UPS में महंगाई राहत (Dearness Relief) की भी व्यवस्था की गई है, जिसका कैलकुलेशन DA की तरह इंडस्ट्रियल लेबर के लिए कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के आधार पर किया जाएगा.
ग्रेच्युटी के अलावा कर्मियों को रिटायरमेंट पर लंप-सम राशि मिलेगी. इसका कैलकुलेशन प्रत्येक 6 महीने की सेवा के लिए रिटायरमेंट के समय मासिक पारिश्रमिक (वेतन+ महंगाई भत्ता) के 10वें हिस्से के रूप में किया जाएगा.
UPS में कर्मियों के लिए फायदे तो खूब बढ़े हैं, लेकिन इस एवज में उनका कंट्रीब्यूशन नहीं बढ़ाया गया है. वे अभी भी अपने वेतन का 10% ही देंगे, जबकि सरकार 14% की बजाय 18.5% कंट्रीब्यूट करेगी. इससे सरकारी खजाने पर थोड़ा ज्यादा बोझ बढ़ेगा.