गठबंधन की राजनीति मजबूती या मजबूरी? 35 साल से भारत में गठबंधन सरकारें, VP सिंह ने की थी शुरुआत

1989 में नेशनल फ्रंट की सरकार बनी, जिसने गठबंधन युग की शुरुआत की. नेशनल फ्रंट से VP सिंह और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री रहे.

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लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद एक बार फिर सत्ता हासिल करने के लिए क्षेत्रीय पार्टियां अहम हो गई हैं. BJP को सरकार में आने के लिए TDP और JDU के समर्थन की सख्त दरकार है.

दरअसल भारत जैसे बड़े देश में आज राज्यों की अलग-अलग समस्याएं और जरूरतें हैं. उनकी अलग-अलग सांस्कृतिक-भाषायी बुनावट है. ऐसे में उनके स्थानीय मुद्दे उठाने वाली पार्टियां अहम हो जाती हैं. यही वजह है कि आज BJP, कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टियों के बीच भी क्षेत्रीय पार्टियां दिल्ली में सत्ता के ताले की चाबी बनी हुई हैं.

क्षेत्रीय पार्टियों की केंद्र में भूमिका पर तमाम बहस हैं. कुछ लोग इन्हें ताकत पर लगाम लगाने की भूमिका के चलते लोकतंत्र के लिए बेहतर बताते हैं. कहते हैं कि ताकत का विकेंद्रीकरण जरूरी है. वहीं दूसरे मत इन्हें कड़े फैसले ना होने, या उन्हें लेने में देरी के लिए जिम्मेदार बनाते हैं, जहां गठबंधन धर्म सभी पार्टियों में एकमत बनाने के लिए बाध्य करता है. जिसमें समय लगता है.

खैर आपका जो भी मत हो, सच्चाई यही है कि भारत में बीते 35 साल, मतलब 1989 से लगातार गठबंधन की सरकारें ही बनी हैं. भले 2014 और 2019 में BJP को दरकार ना रही हो, फिर भी गठबंधन जारी रहे और आज 2024 में फिर गठबंधन की जरूरत केंद्र में है.

1977 में पड़ी नींव

1952 के आम चुनाव से लेकर 1971 तक कांग्रेस की सरकारें बहुमत के साथ रहीं. 1975 में इंदिरा गांधी के इमरजेंसी लगाने के बाद, 1977 के चुनाव के लिए विपक्षी पार्टियों की जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में लामबंदी शुरू हुई, लेकिन इसे गठबंधन कहना सही नहीं होगा.

1977 के चुनाव के लिए अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियों का जनता पार्टी में विलय किया गया. चुनाव में जनता पार्टी को 295 सीटें मिलीं. जबकि कांग्रेस 154 सीटों पर सिमट गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली बार देश को गैर-कांग्रेसी केंद्र सरकार मिली.

80 के दशक के आखिर में शुरू हुई गठबंधन की राजनीति

1984 से 1989 का दौर देश के इतिहास में बेहद अहम है. इसी दौर में 'कमंडल' राजनीति की नींव पड़ रही थी. उग्रवाद, पंजाब में विद्रोह, श्रीलंकाई गृह युद्ध जैसी चीजों में सरकार फंसी थी. प्रधानमंत्री राजीव गांधी का अपने मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ 36 का आंकड़ा बना, जो तमाम राजनीतिक उठापटक के बाद VP की कांग्रेस से विदाई के साथ और तेज हो गया.

VP सिंह ने अरुण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खान के साथ पहले जनमोर्चा बनाया, जो बाद में जनता पार्टी के बचे-हुए छोटे-छोटे हिस्सों (जैसे लोक दल, कांग्रेस (जगजीवन) आदि) के साथ मिलकर जनता दल बना.

1988-89: नेशनल फ्रंट (राष्ट्रीय मोर्चा); सत्ता में आने वाला पहला राष्ट्रीय गठबंधन

इसी जनता दल ने 1988 में कांग्रेस के खिलाफ राष्ट्रीय मोर्चा (National Front) बनाया, जिसमें NTR की TDP, करुणानिधि की DMK, कांग्रेस सोशलिस्ट समेत अन्य पार्टियां शामिल थीं. इसे थर्ड फ्रंट भी कहा जाता था.

नेशनल फ्रंट 1989 के चुनाव में 143 सीटें लेकर आया. जबकि कांग्रेस की सीटें पिछले चुनाव में 413 से कम होकर सीधे 197 हो गईं. नेशनल फ्रंट की सरकार को BJP और कम्युनिस्ट पार्टियों के गठबंधन वाम मोर्चा ने बाहर से समर्थन दिया. BJP को इस चुनाव में 85 और वाम मोर्चा को करीब 33 सीटें मिली थीं.

नवंबर 1990 में नेशनल फ्रंट की आपसी राजनीति के बीच, समाजवादी जनता पार्टी के चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने. 1991 में कांग्रेस ने राजीव गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में फिर से सत्ता में वापसी की और नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने. तब AIADMK समेत अन्य दलों ने सरकार को समर्थन दिया था.

1996-97: यूनाइटेड फ्रंट (संयुक्त मोर्चा); एक साल में दो प्रधानमंत्री

1996 के चुनाव में BJP देश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और सरकार बनाने का दावा किया. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी बहुमत नहीं जुटा पाए और 13 दिन के बाद अल्पमत की सरकार गिर गई.

इसके बाद कांग्रेस ने यूनाइटेड फ्रंट को बाहर से समर्थन देकर सरकार बनवाई. इस तरह HD देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने. एक साल चली सरकार में इंद्र कुमार गुजराल, देवगौड़ा के बाद प्रधानमंत्री बने. लेकिन कांग्रेस के समर्थन वापसी के चलते सरकार गिर गई और 1998 में दोबारा आम चुनाव हुए.

1998; NDA का गठन: वर्तमान गठबंधन राजनीति की शुरुआत

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस/राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन/रालोग) का गठन किया गया. इसमें समता पार्टी, शिवसेना (2019 तक साथ) जैसी पार्टियां साथ थीं.

1998 के चुनाव में BJP 161 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि NDA ने 182 सीटें जीतीं. बाद में AIADMK जैसी पार्टियां BJP के साथ आईं और अटल बिहारी प्रधानमंत्री बने. TDP ने बाहर से समर्थन दिया. लेकिन 10 महीने बाद ही AIADMK द्वारा समर्थन वापसी के बाद 1 वोट से सरकार गिर गई और 1999 में फिर से आम चुनाव हुए.

1999 में कारगिल युद्ध के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस की सीटें कम होकर 114 रह गईं. NDA को कुल 270 सीटें मिलीं, जिसने कुछ अन्य पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाई. ये पहली गैर कांग्रेस सरकार थी, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया.

2004: UPA का गठन

2004 का चुनाव NDA के लिए बड़ा झटका था. इंडिया शाइनिंग का थीम चलाने वाली BJP 138 सीटों पर सिमट गई, NDA को कुल 182 सीटें ही हासिल हुईं.

जबकि कांग्रेस को 145 सीटें मिलीं. मतलब सबसे बड़ी पार्टी. अब कांग्रेस ने सरकार बनाने की कोशिश शुरू की, जिसके तहत वामपंथी पार्टियों के साथ-साथ SP, BSP और केरल कांग्रेस जैसी पार्टियों को साथ लाया गया और इस गठबंधन नाम पड़ा UPA (United Progressive Alliance या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन).

2009 में भी यही गठबंधन चुनाव जीता. 2014, 2019 और 2024 के चुनाव में भी इसी गठबंधन ने NDA से दो-दो हाथ किए. इस तरह भारत की राजनीति आज गठबंधनों की अनिवार्यता पर आ टिकी है.

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